पटनाः 'आया तो बार-बार संदेशा अमीर का, हमसे मगर हो न सका सौदा जमीर का' मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish kumar) ने यही शेर पढ़ा था और भाजपा से राहें जुदा कर ली थी. यह बात साल 2013 की है. गठबंधन छोड़ने की वजह बताते हुए नीतीश कुमार ने कहा था कि 'हमारा यही दर्द था कि बाहरी तत्व अब हम पर हावी हो रहा है. आरएसएस (RSS) ने भी जाहिर कर दिया है कि भाजपा हिन्दुत्व की राह पर ही चलेगी. और इसके बाद 'बड़े भाई' और 'छोटे भाई' की दोस्ती टूट (Nitish Kumar Broke Alliance with NDA in 2013 ) गई.
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आपको याद दिलाने के लिए बता दें कि साल 2013 में भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किए जाने से नाराज होकर नीतीश कुमार ने बीजेपी के मंत्रियों को कैबिनेट से निष्कासित कर दिया. फिर एनडीए से अलग हो गए. 2015 में नीतीश, राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल हो गए. चुनाव में महागठबंधन को बहुमत मिला. राजद ने 80, जदयू ने 71 और कांग्रेस ने 27 सीटें जीतीं. नीतीश कुमार सीएम बने और तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम. ये अलग बात है कि तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सीएम नीतीश महागठबंधन से फिर अलग हो गए और सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.
सीटों का गणित भले ही अलग हो, लेकिन इस साल (2022) में भी बिहार की सियासत की पटकथा फिर एक बार पुराने ढर्रे पर जाती दिख रही है. नीतीश कुमार के लिए पलटीमार शब्द का इस्तेमाल करने वाली आरजेडी अब सॉफ्ट कॉर्नर दिखा रही है. यही कारण है कि नेता प्रतिपक्ष का प्रस्ताव लेकर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष आए और नीतीश के लिए खुला ऑफर रख दिया. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना सहित अन्य मुद्दों पर जिस तरीके से नीतीश कुमार एनडीए के मझधार में फंसे हैं, उन्हें हम निकालने के लिए तैयार हैं.
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जगदानंद सिंह ने कहा कि, बिहार की जनता चाहती है बिहार में जातिगत आधार पर जनगणना हो. अगर भाजपा के मंत्री आपका (नीतीश कुमार) सहयोग नहीं कर रहे हैं तो तुरंत उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कीजिए. अगर सरकार संकट में पड़ी तो महागठबंधन आपका साथ देने को तैयार है.
ये उल्लेखनीय है कि अब तक आरजेडी की तरफ से नीतीश कुमार पर हमलावर रुख ही रहा है. लेकिन जगदानंद सिंह ने इस ऑफर को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव का प्रस्ताव बताया. जगदानंद सिंह ने इस बात का विशेष तौर पर जिक्र किया है कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने पहल की थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद इस बात का जिक्र किया था कि उन्होंने तेजस्वी यादव की पहल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर जातीय जनगणना कराने का प्रस्ताव दिया है.
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जातीय जनगणना पर पीएम से मुलाकात भी हुई लेकिन निराशा ही हाथ लगी. इसके बाद सीएम ने यहां तक कह दिया कि विचार विमर्श के बाद राज्य अपने खर्चे पर जातिगत जनगणना कराएगी. यह अकेला मुद्दा नहीं है जिसपर जदयू और बीजेपी का मत एक नहीं है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा सहित अन्य मुद्दों पर दोनों दलों के बीच मतभेद देखने को मिलती है. यही कारण है कि अब 2013 वाली सियासी कहानी दोहराई जाने की आशंका है. नजरें जदयू खेमे पर टिकी है. इस ऑफर को वे कितनी संजीदगी से लेते हैं.
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