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सरकार चाहिए लेकिन सरकारी व्यवस्था का इलाज नहीं, एक जैसी है चाचा भतीजे की ठाट

बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) एक साथ दिखाई पड़ते हैं. क्योंकि नीतीश अपनी आंखों के इलाज के लिए दिल्ली का रुख करते हैं, वहीं तेजस्वी प्राइवेट अस्पताल में जाकर वैक्सीनेशन करवाते हैं. दोनों को ही बिहार के सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है. देखिए ये रिपोर्ट.

पटना
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Published : Jun 30, 2021, 6:58 PM IST

पटना: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को बिहार सरकार (Bihar Government) की बागडोर तो चाहिए, लेकिन सरकारी व्यवस्था का इलाज नहीं चाहिए. वहीं, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) चाचा को गद्दी से उतारकर सत्ता तो पाना चाहते हैं, लेकिन सरकारी व्यवस्था (Government System) का इलाज नहीं चाहते हैं. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दोनों चाचा-भतीजा एक साथ नजर आते हैं, ये बात इसलिए भी हो रही है, क्योंकि दोनों को ही सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी-तेज प्रताप ने लगवाया कोरोना टीका, देसी छोड़ 'विदेशी' पर जताया भरोसा

एक राह पर चाचा और भतीजा
लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कहा जाता है कि विपक्ष जनता की आवाज होता है. लेकिन बिहार में यह सब कुछ बेमानी है. दरअसल, बिहार की राजनीति में चाचा और भतीजे के गठजोड़ की जो राजनीतिक कहानी लिखी जा रही है, उसमें एक-दूसरे के कदम पर चलने की रिश्ते वाली वह कसम है कि अगर चाचा डाल-डाल तो भतीजा पात-पात.

सरकारी व्यवस्था पर नहीं है विश्वास
ये बात इसलिए शुरू हो रही है क्योंकि नीतीश कुमार कहते हैं कि बिहार में सब कुछ बदल गया, अस्पतालों में सब कुछ ठीक है. तेजस्वी यादव कहते हैं कि बिहार में विकास हुआ ही नहीं और जो कुछ हुआ भी था वह उनके पिताजी ने किया था. लेकिन, एक ऐसी भी कड़ी है जहां नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक ही जगह आकर खड़े होते हैं और वह है बिहार के सरकारी अस्पतालों पर उनका भरोसा. नीतीश कुमार को बिहार के सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं है, तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी सरकारी व्यवस्था पर कतई विश्वास नहीं करते हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

तेजस्वी और तेज प्रताप ने लगाया टीका
दरअसल, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि एक लंबी लड़ाई के बाद तेजस्वी यादव ने कोरोना वैक्सीन का टीका अपने बड़े भाई तेज प्रताप के साथ लगवा लिया. अफवाहों पर ध्यान न देना, कई तरह की बीमारियां टीका लगवाने से नहीं होती हैं, इन तमाम बड़े सरकारी दावों के बाद भी अपनी निजी राजनीतिक जिद्द में दोनों भाई सियासत में अलग-अलग बात कहते रहे, लेकिन जब उनकी बातों पर सियासत होने लगी तो उन्होंने कोविड-19 का टीका लगवा लिया.

वैक्सीनेशन के बाद सवालों के घेरे में तेजस्वी
लेकिन, जिस कोरोना वैक्सीन को तेजस्वी और तेजप्रताप ने लगवाया उससे एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है. बिहार की जनता ठगी सी महसूस कर रही है कि जिस गरीब बिहार की दुहाई देकर लालू यादव 'गैया भैंसिया मुनिया मुनिया' की बात करते हैं, उनके बेटे विदेशी टीका लगाते हैं. भारत के टीके पर उन्हें भरोसा नहीं है. चलिए यह बात तो इस आधार पर भी कही जा सकती है, इसे मान्यता भारत सरकार ने ही दी है तो इसलिए विदेशी टीके को लगवाना भी कोई गलत बात नहीं है.

ये भी पढ़ें- आठ दिनों बाद दिल्ली से पटना लौटे CM नीतीश कुमार, बोले- सब ठीक है

IGIMS में थी माननीयों के टीके की व्यवस्था
तेजस्वी यादव और तेज प्रताप ने मेदांता अस्पताल में जाकर टीका लगवाया है. सवाल यहीं से उठ रहा है कि जब बिहार विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था तो नीतीश कुमार ने स्वयं यह कहा था कि जो भी विधानसभा के माननीय सदस्य हैं, उनके लिए इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (IGIMS) में अलग से व्यवस्था दी गई है. जहां वे टीका लगवा सकते हैं.

सरकारी व्यवस्था पर नहीं है भरोसा
व्यवस्था सरकारी थी तो उस पर भरोसा तेजस्वी यादव करते कैसे. इसलिए एक बड़े निजी अस्पताल में विदेशी वैक्सीन लगवाकर दोनों भाइयों ने नीतीश कुमार को जवाब दे दिया कि उन्होंने भी टीका लगवा लिया है. सुकून बिहार के उन करोड़ों तेजस्वी और तेजप्रताप के प्रेमियों को जरूर हुआ होगा कि उनके नेता ने टीका लगवा लिया, चाचा भी थोड़ा खुश हुए होंगे कि भतीजे सुरक्षित हो गए.

विधायक तेज प्रताप
विधायक तेज प्रताप यादव

ये बिहार की हकीकत है. बिहार में जो व्यवस्था है, वहीं राजनेताओं को रास नहीं आ रही है क्योंकि अस्पताल में न चल पाने वाले व्हीलचेयर और स्ट्रेचर उनके लिए है, जिनके लिए बाढ़ में चारपाई एंबुलेंस है और अस्पतालों की बिल्डिंग के बगल में किराए पर चूल्हा लेकर चार रोटी बना लेने वाली जिंदगी जिन बिहारियों की नियति है. दरअसल, बिहार के साथ में ये कोई नया मजाक नहीं है. जब लालू यादव थे तो 'गैया भैंसिया मुनिया मुनिया' थी. अब नीतीश कुमार हैं तो सब कुछ मन का है, क्योंकि जन-जन का तो कुछ हो नहीं रहा बस मन और मन की बात का ही सब कुछ चल रहा है.

ये भी पढ़ें- 'BJP ने जोड़-तोड़ के माहिर नीतीश कुमार को दिखा दिया आईना'

जो समर्थ हैं उसके पास सब कुछ सहज है. जिंदगी जीने के लिए जद्दोजहद उन्हें करनी है जिनके पास इसी अभाव वाली व्यवस्था के अलावा कोई इंतजाम ही नहीं है. अब वह भरोसा करें, तो भी यही है और भरोसा ना करें, तो भी यही है. बिहार की जनता को जो लोग बेहतर देने की बात कह कर वोट लेने के लिए आते हैं, अब उन पर कहां तक भरोसा किया जाए. उनका क्या है, उनके पास तो बड़ी पार्टी है. अकाउंट में धन भी है, तो कहीं भी इलाज हो सकता है और सियासत तो हो ही रही है. अब देखिए बिहार फिर क्या सोचता है.

पटना: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को बिहार सरकार (Bihar Government) की बागडोर तो चाहिए, लेकिन सरकारी व्यवस्था का इलाज नहीं चाहिए. वहीं, तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) चाचा को गद्दी से उतारकर सत्ता तो पाना चाहते हैं, लेकिन सरकारी व्यवस्था (Government System) का इलाज नहीं चाहते हैं. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दोनों चाचा-भतीजा एक साथ नजर आते हैं, ये बात इसलिए भी हो रही है, क्योंकि दोनों को ही सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं है.

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एक राह पर चाचा और भतीजा
लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह कहा जाता है कि विपक्ष जनता की आवाज होता है. लेकिन बिहार में यह सब कुछ बेमानी है. दरअसल, बिहार की राजनीति में चाचा और भतीजे के गठजोड़ की जो राजनीतिक कहानी लिखी जा रही है, उसमें एक-दूसरे के कदम पर चलने की रिश्ते वाली वह कसम है कि अगर चाचा डाल-डाल तो भतीजा पात-पात.

सरकारी व्यवस्था पर नहीं है विश्वास
ये बात इसलिए शुरू हो रही है क्योंकि नीतीश कुमार कहते हैं कि बिहार में सब कुछ बदल गया, अस्पतालों में सब कुछ ठीक है. तेजस्वी यादव कहते हैं कि बिहार में विकास हुआ ही नहीं और जो कुछ हुआ भी था वह उनके पिताजी ने किया था. लेकिन, एक ऐसी भी कड़ी है जहां नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक ही जगह आकर खड़े होते हैं और वह है बिहार के सरकारी अस्पतालों पर उनका भरोसा. नीतीश कुमार को बिहार के सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं है, तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी सरकारी व्यवस्था पर कतई विश्वास नहीं करते हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

तेजस्वी और तेज प्रताप ने लगाया टीका
दरअसल, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि एक लंबी लड़ाई के बाद तेजस्वी यादव ने कोरोना वैक्सीन का टीका अपने बड़े भाई तेज प्रताप के साथ लगवा लिया. अफवाहों पर ध्यान न देना, कई तरह की बीमारियां टीका लगवाने से नहीं होती हैं, इन तमाम बड़े सरकारी दावों के बाद भी अपनी निजी राजनीतिक जिद्द में दोनों भाई सियासत में अलग-अलग बात कहते रहे, लेकिन जब उनकी बातों पर सियासत होने लगी तो उन्होंने कोविड-19 का टीका लगवा लिया.

वैक्सीनेशन के बाद सवालों के घेरे में तेजस्वी
लेकिन, जिस कोरोना वैक्सीन को तेजस्वी और तेजप्रताप ने लगवाया उससे एक बार फिर सवाल उठ खड़ा हुआ है. बिहार की जनता ठगी सी महसूस कर रही है कि जिस गरीब बिहार की दुहाई देकर लालू यादव 'गैया भैंसिया मुनिया मुनिया' की बात करते हैं, उनके बेटे विदेशी टीका लगाते हैं. भारत के टीके पर उन्हें भरोसा नहीं है. चलिए यह बात तो इस आधार पर भी कही जा सकती है, इसे मान्यता भारत सरकार ने ही दी है तो इसलिए विदेशी टीके को लगवाना भी कोई गलत बात नहीं है.

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IGIMS में थी माननीयों के टीके की व्यवस्था
तेजस्वी यादव और तेज प्रताप ने मेदांता अस्पताल में जाकर टीका लगवाया है. सवाल यहीं से उठ रहा है कि जब बिहार विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था तो नीतीश कुमार ने स्वयं यह कहा था कि जो भी विधानसभा के माननीय सदस्य हैं, उनके लिए इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (IGIMS) में अलग से व्यवस्था दी गई है. जहां वे टीका लगवा सकते हैं.

सरकारी व्यवस्था पर नहीं है भरोसा
व्यवस्था सरकारी थी तो उस पर भरोसा तेजस्वी यादव करते कैसे. इसलिए एक बड़े निजी अस्पताल में विदेशी वैक्सीन लगवाकर दोनों भाइयों ने नीतीश कुमार को जवाब दे दिया कि उन्होंने भी टीका लगवा लिया है. सुकून बिहार के उन करोड़ों तेजस्वी और तेजप्रताप के प्रेमियों को जरूर हुआ होगा कि उनके नेता ने टीका लगवा लिया, चाचा भी थोड़ा खुश हुए होंगे कि भतीजे सुरक्षित हो गए.

विधायक तेज प्रताप
विधायक तेज प्रताप यादव

ये बिहार की हकीकत है. बिहार में जो व्यवस्था है, वहीं राजनेताओं को रास नहीं आ रही है क्योंकि अस्पताल में न चल पाने वाले व्हीलचेयर और स्ट्रेचर उनके लिए है, जिनके लिए बाढ़ में चारपाई एंबुलेंस है और अस्पतालों की बिल्डिंग के बगल में किराए पर चूल्हा लेकर चार रोटी बना लेने वाली जिंदगी जिन बिहारियों की नियति है. दरअसल, बिहार के साथ में ये कोई नया मजाक नहीं है. जब लालू यादव थे तो 'गैया भैंसिया मुनिया मुनिया' थी. अब नीतीश कुमार हैं तो सब कुछ मन का है, क्योंकि जन-जन का तो कुछ हो नहीं रहा बस मन और मन की बात का ही सब कुछ चल रहा है.

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जो समर्थ हैं उसके पास सब कुछ सहज है. जिंदगी जीने के लिए जद्दोजहद उन्हें करनी है जिनके पास इसी अभाव वाली व्यवस्था के अलावा कोई इंतजाम ही नहीं है. अब वह भरोसा करें, तो भी यही है और भरोसा ना करें, तो भी यही है. बिहार की जनता को जो लोग बेहतर देने की बात कह कर वोट लेने के लिए आते हैं, अब उन पर कहां तक भरोसा किया जाए. उनका क्या है, उनके पास तो बड़ी पार्टी है. अकाउंट में धन भी है, तो कहीं भी इलाज हो सकता है और सियासत तो हो ही रही है. अब देखिए बिहार फिर क्या सोचता है.

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