पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और बीजेपी सांसद सुशील मोदी (Sushil Modi) छात्र राजनीति से एक दूसरे के करीब रहे है. जेपी आंदोलन में भी दोनों नेताओं की सक्रिय भूमिका रही. संघर्ष के दिनों से शुरू हुई दोस्ती लंबी चली. वे एनडीए (NDA) के 15 साल की सत्ता में नीतीश कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री भी रहे. दोनों नेताओं के बीच मजबूत बॉन्डिंग ने गठबंधन को काफी मजबूत किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार में उनको यह कह कर आने से रोक देते थे कि बिहार में एक मोदी पहले से ही है, दूसरे मोदी की जरूरत नहीं है. उस दौरान सुशील मोदी लगातार नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़े थे.
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सुशील मोदी कई मुद्दों पर नीतीश कुमार के सुर में सुर मिलाते दिखते थे. उप मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार की पहली पसंद सुशील मोदी होते थे. जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार के बीच राजनीतिक तौर पर जब बखेड़ा खड़ा हुआ था और नीतीश कुमार सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब उस दौरान भी सुशील मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर नीतीश कुमार की मदद की.
2020 विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो इस बार भी नीतीश कुमार सुशील मोदी को ही उप-मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन बीजेपी ने नए चेहरों को सामने लाने का फैसला ले लिया था. रणनीति के तहत सुशील मोदी को केंद्र की राजनीति में शिफ्ट कर दिया गया. राज्यसभा सांसद बनने के बाद से सुशील मोदी और नीतीश कुमार के बीच राजनीतिक तौर पर दूरियां बढ़ने लगी और सुशील मोदी अब नीतीश कुमार को आंख भी दिखाने लगे हैं. विवादास्पद मुद्दों पर सुशील मोदी मुखर होकर बीजेपी के पक्ष में बोलने लगे हैं.
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जातीय जनगणना (Cast Census), जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) और स्पेशल स्टेटस (Special Status) के मुद्दे पर सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को सीधे-सीधे काउंटर किया है. जातिगत जनगणना पर सुशील मोदी ने नीतीश कुमार की मुखालफत की और कहा कि इसे कराना केंद्र के लिए संभव नहीं है, राज्य सरकार अपने खर्चे पर करा सकती है. वहीं जनसंख्या नियंत्रण पर भी सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के स्टैंड के खिलाफ बयान दिया और कहा कि कानून के जरिए ही जनसंख्या नियंत्रण संभव है. खास बात ये है कि कभी सुशील मोदी ने एनडीए के सहयोगी दलों को यह नसीहत भी दी थी कि हिंदू जनसंख्या नियंत्रण पर बयान देने से बचना चाहिए. आपको बता दें कि नीतीश कुमार जागरूकता के जरिए जनसंख्या नियंत्रण की वकालत कर रहे हैं.
वहीं, स्पेशल स्टेटस के मुद्दे पर भी सुशील मोदी ने जेडीयू को दो टूक जवाब दिया और कहा कि बिहार जैसे राज्यों को नियम के मुताबिक स्पेशल स्टेटस नहीं दिया जा सकता है. केंद्र की सरकार ने बिहार को स्पेशल पैकेज दिया है. पेगासस जासूसी कांड पर भी सुशील मोदी ने नीतीश कुमार के बयान को काउंटर किया और कहा कि पेगासस मामले में कोई सच्चाई नहीं है. अगर किसी के पास प्रमाण हो तो वह पेश करें. आपको बता दें कि पेगासस मुद्दे पर नीतीश कुमार जांच की मांग कर रहे थे.
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यूनिफॉर्म सिविल कोड पर भी सुशील मोदी ने कहा कि समान नागरिक संहिता सही अर्थ में न्याय प्रक्रिया को धर्मनिरपेक्ष बनाएगी. उसी धर्म की मूल रीति रिवाज से इसका कोई वास्ता नहीं है. विडंबना यह है कि लोग धर्म की अपेक्षा के पैरोकार बनते हैं और वोट बैंक के दबाव में समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं. धारा 370 पर सुशील मोदी ने कहा था कि जम्मू कश्मीर में धारा 370 बहाल करे, यह किसी की हिम्मत नहीं है. इसके अलावा सुशील मोदी ने सीएए और एनआरसी के पक्ष में मजबूती से आवाज बुलंद किया है.
हालांकि जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा है कि राजनीति में व्यक्ति का विरोध और समर्थन नहीं होता है. सुशील मोदी ने कभी भी राज्य सरकार की नीतियों का विरोध नहीं किया है. हां किसी मुद्दे पर उनकी राय नीतीश कुमार से अलग हो सकती है. जबकि बीजेपी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि सुशील मोदी हमारे बड़े नेता हैं. सुशील मोदी हमेशा पार्टी के विजन और और सिद्धातों के साथ रहे हैं. वे किसी नेता के समर्थन में नहीं रहे हैं, आज भी उनकी निष्ठा भारतीय जनता पार्टी के प्रति है.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि सुशील मोदी जबतक उप मुख्यमंत्री थे. तबतक नीतीश कुमार के प्रति उनका सॉफ्ट कॉर्नर था. अब उनकी भूमिका बदल गई है और वह केंद्र की राजनीति में हैं. ऐसे में सुशील मोदी को यह लगता है कि केंद्र की नीतियों के हिसाब से चलने पर ही राजनीति में उन्हें पद मिल सकता है.