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एक राह पर फिर खड़े हो गए 'बड़े और छोटे मियां', जानें क्या है सीक्रेट?

बिहार एनडीए (Bihar NDA) में जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है. इस मुद्दे पर एक बार फिर सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के साथ नजर आ रहे हैं. आखिर क्या है इसकी वजह, पढ़ें ये रिपोर्ट..

पटना
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Published : Aug 3, 2021, 9:25 PM IST

Updated : Aug 3, 2021, 10:11 PM IST

पटना: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर दो विरोधी पार्टियों के सुर एक हो गए हैं. जातीय जनगणना को लेकर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) केंद्र सरकार (Central Government) के फैसले के विरोध में एक साथ नजर आ रहे हैं.

ये भी पढ़ें- जातीय जनगणना पर घामासान: बीजेपी के विभेद वाले बयान पर बिफरे CM, बोले- 'खुशहाली लाएगा Caste Census'

सीएम नीतीश तो अपने सहयोगी बीजेपी (BJP) से पूछ रहे हैं कि जब अभी विरोध करना था तो पहले समर्थन क्यों किया. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने को लेकर भी नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के साथ नजर आ रहे हैं.

देखें ये रिपोर्ट

राजनीतिक हलकों में इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे ये पूरा मामला ओबीसी वोट बैंक को लेकर ही है. लालू के साथ नीतीश कुमार की उस वोट बैंक पर नजर है, क्योंकि दोनों ओबीसी वोट बैंक पर दावेदारी करते रहे हैं. नीतीश कुमार भी जानना चाहते हैं कि आखिर ओबीसी की सही संख्या क्या है.

ये भी पढ़ें- नीतीश का BJP को जवाब- 'जातीय जनगणना से समाज में विभेद की बात गलत, पूछा- ...तब क्यों किया था समर्थन?'

नीतीश कुमार को ये भी डर है कि कहीं ये मुद्दा आरजेडी हथिया ना लें, इसलिए केंद्र में भागीदार होने के बावजूद जेडीयू मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ आरजेडी के साथ जातीय जनगणना के मुद्दे पर सहमति जताते दिख रहे हैं. बीजेपी पर एक तरफ से दबाव की रणनीति भी है.

नीतीश कुमार ऐसे तो लालू का विरोध करके ही बिहार की सत्ता पर पिछले कई सालों से काबिज हैं. बीच के कुछ सालों में जरूर फिर से एक साथ हो गए थे. लेकिन, 16 सालों की बात करें, तो अधिकांश समय नीतीश लालू के विरोध की ही राजनीति करते रहे हैं. जातीय जनगणना ने लालू और नीतीश को फिर से एक सुर में बोलने के लिए मजबूर कर दिया है.

ये भी पढ़ें- 'जातीय जनगणना से समाज में शुरू हो जाएगा विवाद, विपक्ष बताए इसके फायदे'

जातीय जनगणना को लेकर इसके लिए नीतीश अपने सहयोगी बीजेपी के विरोध में भी खड़े नजर आ रहे हैं. इसका बड़ा कारण यह है कि नीतीश और लालू दोनों ओबीसी से ही आते हैं. बिहार में ओबीसी सरकार बनाने और बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है. लालू प्रसाद और उनकी पार्टी ओबीसी वोट बैंक पर अपनी मजबूत दावेदारी करती रही है.

नीतीश कुमार भी ओबीसी के साथ खड़े होने का दावा करते रहे हैं और इसलिए केंद्र के ना चाहते हुए भी लगातार यह मांग करते रहे हैं कि जातीय जनगणना होनी चाहिए, जिससे ओबीसी की सही जानकारी पता तो चले. जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद से जब सवाल किया गया कि क्या लालू और नीतीश की दोस्ती बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति है, इस सवाल पर अरविंद निषाद का कहना है कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है.

''जातीय जनगणना की मांग हर मोर्चे पर हुई है और बिहार विधानमंडल से भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही पास करा कर केंद्र को भेजा गया है.''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता

''जातीय जनगणना की मांग सबसे पहले लालू प्रसाद यादव ने ही की थी. अब एक कदम आगे बढ़कर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को इस बड़े मुद्दे पर मदद करने की बात कही है और प्रधानमंत्री के पास साथ चलने का प्रस्ताव भी दिया है, जिस पर सहमति भी बनी है.''- राहुल तिवारी, विधायक, आरजेडी

''चुनाव के संदर्भ में जातीय जनगणना को ओबीसी फैक्टर से जोड़कर आरजेडी और जदयू के लोग देख रहे हैं. नीतीश कुमार केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ भी जाकर आरजेडी के साथ जातीय जनगणना की मांग कर रही है, तो ये बीजेपी पर दबाव बनाने की एक रणनीति भी है.''- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

बिहार विधानमंडल से सर्वसम्मति प्रस्ताव में बीजेपी नेताओं ने भी समर्थन किया था, लेकिन बीजेपी नेताओं का रुख बदला हुआ है. केंद्र सरकार ने कह दिया है कि जातीय जनगणना नहीं कराएंगे, इसलिए बिहार बीजेपी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ खड़ी है. हालांकि, नीतीश कुमार खुलकर बीजेपी का विरोध भी नहीं कर रहे हैं. हालांकि, राजनीतिक जानकार ये भी कहते हैं कि बीजेपी पर इसका कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है. भले ही नीतीश जातीय जनगणना के बहाने दबाव की राजनीति कर रहे हों.

बता दें कि बिहार ओबीसी का वोट प्रतिशत 50% के आसपास है. 1931 में अंतिम बार जातीय जनगणना हुई थी. उसके बाद कई बार मांग उठी, लेकिन जातीय जनगणना नहीं हुई. ओबीसी में सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत यादवों का है. 14% के आसपास यादवों का वोट प्रतिशत है और उसके बाद कोइरी कुर्मी का वोट प्रतिशत है. कोईरी कुर्मी 7 से 9% के बीच है और फिर बनिया का वोट प्रतिशत 7% के आसपास है. ओबीसी में और भी कई जातियां हैं, उसमें से अधिकांश पर नीतीश कुमार अपनी दावेदारी करते रहे हैं.

बिहार के राजनीति में बड़ा उलटफेर होता रहा है. जातीय जनगणना को लेकर जिस प्रकार से नीतीश कुमार और आरजेडी के सुर एक हो रहे हैं. वहीं, बीजेपी से कई मुद्दों पर खटपट हो रही है, ऐसे में कई तरह की चर्चाएं भी शुरु हो गई हैं. हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होना है और उससे पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव होगा. लेकिन, ये मामला तूल पकड़ा तो राजनीति में जैसा कि कहा जाता है कि कुछ भी असंभव नहीं है. जातीय जनगणना का मुद्दा बड़ा उलटफेर करा सकता है. फिलहाल राजनीतिक विशेषज्ञ इसे दबाव की राजनीति ही बता रहे हैं.

ये भी पढ़ें- नीतीश ने राष्ट्रहित में बताया जातीय जनगणना, BJP बोली- 'इससे समाज में पैदा होगा विभेद'

ये भी पढ़ें- 'जनसंख्या नियंत्रण' के बाद अब 'जातीय जनगणना' पर मुखर हैं नीतीश कुमार!

पटना: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census) को लेकर दो विरोधी पार्टियों के सुर एक हो गए हैं. जातीय जनगणना को लेकर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) केंद्र सरकार (Central Government) के फैसले के विरोध में एक साथ नजर आ रहे हैं.

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सीएम नीतीश तो अपने सहयोगी बीजेपी (BJP) से पूछ रहे हैं कि जब अभी विरोध करना था तो पहले समर्थन क्यों किया. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने को लेकर भी नीतीश कुमार नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के साथ नजर आ रहे हैं.

देखें ये रिपोर्ट

राजनीतिक हलकों में इसे लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. ऐसे ये पूरा मामला ओबीसी वोट बैंक को लेकर ही है. लालू के साथ नीतीश कुमार की उस वोट बैंक पर नजर है, क्योंकि दोनों ओबीसी वोट बैंक पर दावेदारी करते रहे हैं. नीतीश कुमार भी जानना चाहते हैं कि आखिर ओबीसी की सही संख्या क्या है.

ये भी पढ़ें- नीतीश का BJP को जवाब- 'जातीय जनगणना से समाज में विभेद की बात गलत, पूछा- ...तब क्यों किया था समर्थन?'

नीतीश कुमार को ये भी डर है कि कहीं ये मुद्दा आरजेडी हथिया ना लें, इसलिए केंद्र में भागीदार होने के बावजूद जेडीयू मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ आरजेडी के साथ जातीय जनगणना के मुद्दे पर सहमति जताते दिख रहे हैं. बीजेपी पर एक तरफ से दबाव की रणनीति भी है.

नीतीश कुमार ऐसे तो लालू का विरोध करके ही बिहार की सत्ता पर पिछले कई सालों से काबिज हैं. बीच के कुछ सालों में जरूर फिर से एक साथ हो गए थे. लेकिन, 16 सालों की बात करें, तो अधिकांश समय नीतीश लालू के विरोध की ही राजनीति करते रहे हैं. जातीय जनगणना ने लालू और नीतीश को फिर से एक सुर में बोलने के लिए मजबूर कर दिया है.

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जातीय जनगणना को लेकर इसके लिए नीतीश अपने सहयोगी बीजेपी के विरोध में भी खड़े नजर आ रहे हैं. इसका बड़ा कारण यह है कि नीतीश और लालू दोनों ओबीसी से ही आते हैं. बिहार में ओबीसी सरकार बनाने और बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाता रहा है. लालू प्रसाद और उनकी पार्टी ओबीसी वोट बैंक पर अपनी मजबूत दावेदारी करती रही है.

नीतीश कुमार भी ओबीसी के साथ खड़े होने का दावा करते रहे हैं और इसलिए केंद्र के ना चाहते हुए भी लगातार यह मांग करते रहे हैं कि जातीय जनगणना होनी चाहिए, जिससे ओबीसी की सही जानकारी पता तो चले. जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद से जब सवाल किया गया कि क्या लालू और नीतीश की दोस्ती बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति है, इस सवाल पर अरविंद निषाद का कहना है कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है.

''जातीय जनगणना की मांग हर मोर्चे पर हुई है और बिहार विधानमंडल से भी सर्वसम्मति से प्रस्ताव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही पास करा कर केंद्र को भेजा गया है.''- अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता

''जातीय जनगणना की मांग सबसे पहले लालू प्रसाद यादव ने ही की थी. अब एक कदम आगे बढ़कर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को इस बड़े मुद्दे पर मदद करने की बात कही है और प्रधानमंत्री के पास साथ चलने का प्रस्ताव भी दिया है, जिस पर सहमति भी बनी है.''- राहुल तिवारी, विधायक, आरजेडी

''चुनाव के संदर्भ में जातीय जनगणना को ओबीसी फैक्टर से जोड़कर आरजेडी और जदयू के लोग देख रहे हैं. नीतीश कुमार केंद्र सरकार के निर्णय के खिलाफ भी जाकर आरजेडी के साथ जातीय जनगणना की मांग कर रही है, तो ये बीजेपी पर दबाव बनाने की एक रणनीति भी है.''- प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

बिहार विधानमंडल से सर्वसम्मति प्रस्ताव में बीजेपी नेताओं ने भी समर्थन किया था, लेकिन बीजेपी नेताओं का रुख बदला हुआ है. केंद्र सरकार ने कह दिया है कि जातीय जनगणना नहीं कराएंगे, इसलिए बिहार बीजेपी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ खड़ी है. हालांकि, नीतीश कुमार खुलकर बीजेपी का विरोध भी नहीं कर रहे हैं. हालांकि, राजनीतिक जानकार ये भी कहते हैं कि बीजेपी पर इसका कोई खास असर पड़ने वाला नहीं है. भले ही नीतीश जातीय जनगणना के बहाने दबाव की राजनीति कर रहे हों.

बता दें कि बिहार ओबीसी का वोट प्रतिशत 50% के आसपास है. 1931 में अंतिम बार जातीय जनगणना हुई थी. उसके बाद कई बार मांग उठी, लेकिन जातीय जनगणना नहीं हुई. ओबीसी में सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत यादवों का है. 14% के आसपास यादवों का वोट प्रतिशत है और उसके बाद कोइरी कुर्मी का वोट प्रतिशत है. कोईरी कुर्मी 7 से 9% के बीच है और फिर बनिया का वोट प्रतिशत 7% के आसपास है. ओबीसी में और भी कई जातियां हैं, उसमें से अधिकांश पर नीतीश कुमार अपनी दावेदारी करते रहे हैं.

बिहार के राजनीति में बड़ा उलटफेर होता रहा है. जातीय जनगणना को लेकर जिस प्रकार से नीतीश कुमार और आरजेडी के सुर एक हो रहे हैं. वहीं, बीजेपी से कई मुद्दों पर खटपट हो रही है, ऐसे में कई तरह की चर्चाएं भी शुरु हो गई हैं. हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में होना है और उससे पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव होगा. लेकिन, ये मामला तूल पकड़ा तो राजनीति में जैसा कि कहा जाता है कि कुछ भी असंभव नहीं है. जातीय जनगणना का मुद्दा बड़ा उलटफेर करा सकता है. फिलहाल राजनीतिक विशेषज्ञ इसे दबाव की राजनीति ही बता रहे हैं.

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Last Updated : Aug 3, 2021, 10:11 PM IST
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