पटना: बिहार में जब से महागठबंधन की सरकार बनी है, तब से केंद्र प्रायोजित योजनाओं को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कई तरह की आपत्ति रही है. एक तो केंद्र सरकार से योजनाओं को घटाने की मांग करते रहे हैं. साथ ही केंद्रीय प्रायोजित योजना में केंद्र का अनुपात लगातार घटाने पर भी सीएम ने विरोध जताया है. केंद्रीय योजनाओं में बिहार सरकार को 35 से 40 हजार करोड़ की राशि अब देनी पड़ रही है, जिसका सीधा असर बिहार में चल रही कई नई योजनाओं पर पड़ रहा है. इसी को देखते हुए बिहार सरकार ने फैसला लिया है कि केंद्रीय योजनाओं की उपलब्धि केवल केंद्र सरकार को अब लेने नहीं देंगे. जिन योजनाओं में बिहार सरकार राशि देगा, उसकी उपलब्धि का श्रेय बिहार भी लेगा.
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योजनाओं में केंद्र और बिहार सरकार की हिस्सेदारी: प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना 2000 में शुरू की गई थी. उस समय पूरी राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जा रही थी लेकिन 2015 में केंद्र और राज्य का अनुपात 60:40 कर दिया गया और अब यह 50:50 हो गया है. इसी तरह समग्र शिक्षा अभियान जब शुरू की गई थी तो 90:10 का अनुपात केंद्र और राज्य का था लेकिन अब यह 60:40 से 50: 50 पर पहुंच गया है. केंद्र प्रायोजित योजनाओं की यह बानगी है, कमोबेश यही स्थिति केंद्र प्रायोजित अधिकांश योजनाओं की हो गई है. केंद्र की तरफ से तीन तरह की केंद्र प्रायोजित योजना लागू है.
कोर ऑफ द कोर स्कीम: केंद्र प्रायोजित यह योजना सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी है. इसमें मनरेगा भी शामिल है. मनरेगा जैसी योजना के लिए केंद्र सरकार 75% राशि देती है और उसमें केवल 25% राशि बिहार सरकार को लगाना होता है लेकिन उसको लेकर भी कई तरह की नाराजगी बिहार सरकार की रही है. ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार समय पर लक्ष्य नहीं देने का आरोप लगाते रहे हैं. वह मनरेगा के मटेरियल मद में राशि बकाया होने का भी आरोप केंद्र पर लगाते रहे हैं.
कोर स्कीम: इसी के अंतर्गत अधिकांश केंद्र प्रायोजित योजनाएं बिहार में चल रही है. इसमें 40% राशि बिहार सरकार को देना पड़ रहा है, इसमें 50 से अधिक योजनाएं शामिल हैं. केंद्रीय प्रायोजित जिन योजनाओं में 60% केंद्र को और 40% बिहार सरकार को देना पड़ता है, उसमें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय पशुधन विकास योजना, स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय शिक्षा मिशन, समन्वित बाल विकास योजना, एकीकृत बाल सुरक्षा योजना, मध्याह्न भोजन योजना, सबके लिए आवास योजना, राष्ट्रीय आजीविका मिशन, अमृत और स्मार्ट सिटी योजना, पुलिस बल का आधुनिकीकरण और न्यायपालिका के लिए अव्यवस्थापन सुविधाएं शामिल हैं.
ऑप्शनल स्कीम: इसके अलावा ऑप्शनल स्कीम भी है, इसमें बिहार सरकार को 50% राशि देना पड़ता है. इसमें फसल बीमा योजना एक उदाहरण है. हालांकि बिहार सरकार ने केंद्र सरकार की इस स्कीम को लागू नहीं किया, उसके बदले अपनी योजना चला रही है.
"नाम है केंद्र प्रायोजित योजना लेकिन हिस्सेदारी राज्यों को भी देना पड़ता है. उन योजनाओं का नाम केंद्र राज्य प्रायोजित योजना कर देना चाहिए लेकिन केंद्र सरकार अपना फेस दिखाना चाह रही है. इसीलिए हम लोगों ने फैसला लिया है कि जिन योजनाओं में 40% राशि देंगे, उसका जिक्र करेंगे और लोगों को बताएंगे"- श्रवण कुमार, ग्रामीण विकास मंत्री, बिहार सरकार
बीजेपी का राज्य सरकार पर आरोप: हालांकि बीजेपी प्रवक्ता मृत्युंजय झा बिहार सरकार के आरोपों को निराधार बताते हैं. उनका कहना है कि नीतीश सरकार राजनीति कर रही है. सच्चाई यह है कि बिहार सरकार केंद्रीय योजनाओं की राशि खर्च नहीं कर पा रही है और वह राशि लौट जा रही है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?: वहीं, एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि केंद्र सरकार ने 2023-24 के बजट में ही महत्वपूर्ण योजनाओं में 2 लाख करोड़ की कटौती की है. यही कारण है कि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ रही है. 52 ऐसी योजना है, जिसमें बिहार सरकार को 40% तक राशि देनी पड़ती है. इसका सीधा असर बिहार जैसे गरीब राज्यों अधिक पड़ता है.
"भारत सरकार ने 2023-24 के बजट में मनरेगा समेत 15 प्रमुख योजनाओं में लगभग 2 लाख करोड़ की कटौती कर दी है. इसका असर तमाम राज्यों पर पड़ना तय है. इससे बिहार जैसे गरीब राज्यों पर भार बढ़ेगा"- डॉ. विद्यार्थी विकास, प्रोफेसर, एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट, पटना
वित्त मंत्री ने क्या कहा?: उधर, बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय चौधरी का कहना है कि केंद्र सरकार कई योजनाओं में पहले 90% राशि देती थी लेकिन बाद में उसे घटाकर 75 फीसदी कर दी गई. अब तो यह राशि 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है. हम लोगों ने केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ बैठक में भी मांग रखी थी कि केंद्रीय योजनाओं की संख्या घटाकर कम किया जाए लेकिन उसे अनसुना कर दिया गया. मंत्री ने बताया कि केंद्र के हिस्से की राशि भी बिहार को समय पर नहीं मिल पाती है. कई बार बिहार सरकार को केंद्र के हिस्से की राशि की भी व्यवस्था करनी पड़ती है, जैसे समग्र शिक्षा अभियान में 4 महीने हो गए हैं लेकिन अभी तक राशि नहीं मिली है. कैबिनेट से राशि की व्यवस्था करनी पड़ी, तब जाकर शिक्षकों को वेतन देना संभव हो पाया है.
उपलब्धियों में हिस्सेदारी की लड़ाई!: केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है और उसको लेकर नीतीश सरकार की आपत्ति रही है. केंद्रीय योजनाओं की संख्या कम करने की मांग भी करती रही है. जो योजना केंद्र सरकार चला रही है, उसकी शत प्रतिशत राशि केंद्र सरकार ही वहन करे, यह भी मांग रही है लेकिन इसके उलट केंद्रीय योजनाओं की संख्या बढ़ रही है. उसका बोझ राज्यों पर भी पड़ रहा है.