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सीएम साहब बच्चियां पूछ रही हैं, क्या भेड़-बकरियों के लिए ही बना है स्कूल?

स्कूल की दुर्दशा पर प्रभारी जिला प्रशासन से लेकर सांसद तक गुहार लगा चुके हैं. लेकिन आज तक कोई देखने तक नहीं आया. खंडहर में बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं. अर्धनिर्मित भवन अधूरा पड़ा है. जहां भेड़ की खाल निकाली जा रही है.

जर्जर स्कूल भवन में पढ़ने को मजबूर बेटियां
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Published : Jul 16, 2019, 10:39 AM IST

Updated : Jul 16, 2019, 11:16 AM IST

नवादा: प्रदेश में सरकारी शिक्षा का हाल किसी से छिपी नहीं है. जिले के अकबरपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्रॉजेक्ट साधु लाल साह आर्य कन्या इंटर स्कूल के बच्चे जर्जर भवन में पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं. यह स्कूल किसी खंडहर से कम नहीं है. स्कूल के स्टूडेंट भी सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

सारी समस्याओं को शिक्षित समाज चुटकियों में हल कर सकता है. अब लोग भी जागरूक हो चुके हैं. बेटों से साथ बेटियों को भई स्कूल भेज रहे हैं, लेकिन लचर व्यवस्था के आगे बच्चे भी लाचार हैं. कहीं शिक्षक, तो कहीं संसाधन की की कमी. अकबरपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्रॉजेक्ट साधु लाल साह आर्य कन्या इंटर स्कूल का हाल भी कुछ ऐसा ही है. जगह-जगह बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के पोस्टर बैनर तो मिल जायेंगें, लेकिन यहां बेटियों के इस स्कूल की तरफ कोई नजर नहीं डालता.

हादसे का इंतजार कर रहा विद्यालय
आलम यह है कि स्कूल का जर्जर भवन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है. हल्की बारिश में छत टपकने लगते हैं. बच्चे कक्षा की जगह बाहर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. वही अर्ध निर्मित भवन में भेड़ के बाल उतारे जा रहे हैं.

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अर्ध निर्मित भवन में भेड़ के बाल उतारते लोग

क्या कहती हैं स्कूल की छात्राएं
दसवीं कक्षा की प्रिया कुमारी ने बताया कि कभी-कभी स्कूल के बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं. नया भवन अभी तक बन कर तैयार नहीं हो पाया है. उसमें भेड़-बकरियों के बाल उतारे जा रहे हैं. सरकार और प्रशासन से सवाले करते हुए कहा कि, "क्या वो स्कूल भेड़-बकरियों के लिए बना है." वही नौंवी कक्षा की निशु कुमारी ने बताया, स्कूल देख कर डर लगता है. स्कूल का छत कभी भी गिर सकता है. अधिक गर्मी में बाहर बैठते हैं. यहां कंप्यूटर, लैब और लाइब्रेरी कुछ भी नहीं है. पहले जो भवन बन रहा था, वो भी बंद हो चुका है. 3 कमरे में 1200 छात्राएं की पढ़ाई. इस विद्यालय में लगभग बारह सौ छात्राएं पढ़ती हैं. इनके बैठने के लिए महज 3 कमरे की व्यवस्था. जगह की कमी की वजह से उपस्थिति भी कम रहती है.

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स्कूली छात्रा

हर जगह गए पर नहीं बदली स्कूल की किस्मत
प्रभारी प्रिंसिपल विनोद कुमार बिंदु ने बताया कि भवन अर्धनिर्मित है. खंडहर में ही अपना विद्यालय चला रहा रहे हैं. यह भवन कभी भी धराशायी हो सकती है. अर्धनिर्मित भवन है अधूरा पड़ा है. जिला प्रशासन से लेकर सांसद तक प्रतिवेदन दिया. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

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प्रभारी प्रिंसिपल विनोद कुमार बिंदु

जमीनी हकीकत से अनजान पदाधिकारी
वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार चौधरी ने यहां न्यू ज्वाइनिंग की बात कह कर इसके बारे में जानकारी से इनकार किया. हालांकि ईटीवी भारत के जरिए हकीकत जान यथासंभव कार्रवाई करने का भरोसा भी दिया. गौरतलब है कि ठेकेदार बिल्डिंग बना कर बिना फिनिशिंग किए चार साल पहले ही फरार हो गया. जिसके बाद लोग यहां भेड़ के बाल उखाड़ते हैं. करोड़ों की लागत से बना भवन अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है. लेकिन शिक्षा विभाग बेपरवाह है.

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जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार चौधरी

नवादा: प्रदेश में सरकारी शिक्षा का हाल किसी से छिपी नहीं है. जिले के अकबरपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्रॉजेक्ट साधु लाल साह आर्य कन्या इंटर स्कूल के बच्चे जर्जर भवन में पढ़ाई करने के लिए मजबूर हैं. यह स्कूल किसी खंडहर से कम नहीं है. स्कूल के स्टूडेंट भी सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे हैं.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

सारी समस्याओं को शिक्षित समाज चुटकियों में हल कर सकता है. अब लोग भी जागरूक हो चुके हैं. बेटों से साथ बेटियों को भई स्कूल भेज रहे हैं, लेकिन लचर व्यवस्था के आगे बच्चे भी लाचार हैं. कहीं शिक्षक, तो कहीं संसाधन की की कमी. अकबरपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्रॉजेक्ट साधु लाल साह आर्य कन्या इंटर स्कूल का हाल भी कुछ ऐसा ही है. जगह-जगह बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के पोस्टर बैनर तो मिल जायेंगें, लेकिन यहां बेटियों के इस स्कूल की तरफ कोई नजर नहीं डालता.

हादसे का इंतजार कर रहा विद्यालय
आलम यह है कि स्कूल का जर्जर भवन किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहा है. हल्की बारिश में छत टपकने लगते हैं. बच्चे कक्षा की जगह बाहर बैठ कर पढ़ाई करते हैं. वही अर्ध निर्मित भवन में भेड़ के बाल उतारे जा रहे हैं.

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अर्ध निर्मित भवन में भेड़ के बाल उतारते लोग

क्या कहती हैं स्कूल की छात्राएं
दसवीं कक्षा की प्रिया कुमारी ने बताया कि कभी-कभी स्कूल के बरामदे में बैठकर पढ़ाई करते हैं. नया भवन अभी तक बन कर तैयार नहीं हो पाया है. उसमें भेड़-बकरियों के बाल उतारे जा रहे हैं. सरकार और प्रशासन से सवाले करते हुए कहा कि, "क्या वो स्कूल भेड़-बकरियों के लिए बना है." वही नौंवी कक्षा की निशु कुमारी ने बताया, स्कूल देख कर डर लगता है. स्कूल का छत कभी भी गिर सकता है. अधिक गर्मी में बाहर बैठते हैं. यहां कंप्यूटर, लैब और लाइब्रेरी कुछ भी नहीं है. पहले जो भवन बन रहा था, वो भी बंद हो चुका है. 3 कमरे में 1200 छात्राएं की पढ़ाई. इस विद्यालय में लगभग बारह सौ छात्राएं पढ़ती हैं. इनके बैठने के लिए महज 3 कमरे की व्यवस्था. जगह की कमी की वजह से उपस्थिति भी कम रहती है.

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स्कूली छात्रा

हर जगह गए पर नहीं बदली स्कूल की किस्मत
प्रभारी प्रिंसिपल विनोद कुमार बिंदु ने बताया कि भवन अर्धनिर्मित है. खंडहर में ही अपना विद्यालय चला रहा रहे हैं. यह भवन कभी भी धराशायी हो सकती है. अर्धनिर्मित भवन है अधूरा पड़ा है. जिला प्रशासन से लेकर सांसद तक प्रतिवेदन दिया. लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

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प्रभारी प्रिंसिपल विनोद कुमार बिंदु

जमीनी हकीकत से अनजान पदाधिकारी
वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार चौधरी ने यहां न्यू ज्वाइनिंग की बात कह कर इसके बारे में जानकारी से इनकार किया. हालांकि ईटीवी भारत के जरिए हकीकत जान यथासंभव कार्रवाई करने का भरोसा भी दिया. गौरतलब है कि ठेकेदार बिल्डिंग बना कर बिना फिनिशिंग किए चार साल पहले ही फरार हो गया. जिसके बाद लोग यहां भेड़ के बाल उखाड़ते हैं. करोड़ों की लागत से बना भवन अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है. लेकिन शिक्षा विभाग बेपरवाह है.

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जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार चौधरी
Intro:नवादा। सूबे में सरकारी शिक्षा किस दी जा रही है ये किसी से कुछ छिपा हुआ नहीं है। कहीं शिक्षक की तो कहीं संसाधन की। जी हां कुछ ऐसे ही संसाधनों के अभाव जिले के अकबरपुर प्रखंड मुख्यालय स्थित प्रॉजेक्ट साधु लाल साह आर्य कन्या इंटर स्कूल का भवन काफी जर्जर है जिसमें देश की बेटियां पढ़ने को मजबूर हैं। सूबे में जगह-जगह बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के पोस्टर बैनर लगे हुए तो मिल जाएंगे लेकिन ग्राउंड जीरो का हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। एक तरफ देश की बेटियां जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर है। थोड़ी सी बारिश में छत टपकने लगते हैं। कक्षा में पर्याप्त जगह नहीं होने के कारण बाहर बैठना पड़ता है , उन्हें भवन नसीब नहीं हो रहा है वहीं दूसरी तरफ़ बने हुए स्कूल में भेड़ के बाल उतारे जा रहे हैं हालांकि यह पूर्णरूप से तैयार नहीं हुए हैं बताया जा रहा है कि, चार साल पहले ही ठेकेदार बिल्डिंग बना के बिना फिनिशिंग किए फरार है जिसके बाद से अब इसकी ऐसी दुर्दशा हो गई है कि यहां लोग भेड़ के बाल उखाड़ते हैं। करोड़ों की लागत से बनी यह भवन अपनी बदहाली पर आँसू बहाने को मजबूर है और शिक्षा विभाग बेपरवाह है।




Body:3 कमरे में होती है 1200 छात्राएं की पढ़ाई

इस विद्यालय में लगभग बारह सौ छात्राएं नामांकित है जिसके लिए महज 3 कमरे की है व्यवस्था की गई है। अब इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चियां कैसे पढ़ रही होगी।

शिक्षकों बैठने के लिए नहीं हैं कार्यालय, बरामदा पर बैठकर चलाते हैं काम

पर्याप्त जगह नहीं होना बन रहा उपस्थिति कम होने का कारण

लगभग बारह सौ बच्चे नामंकित हैं लेकिन विद्यालय में पर्याप्त कमरे नहीं होने के वजह से छात्रओं की उपस्थितयां अधिक नहीं हो पाती है। अगर पर्याप्त कमरे की व्यवस्था हो तो छात्राओं की उपस्थितयां काफी अधिक हो सकती है।

क्या कहती है छात्राएं

दशवीं कक्षा की प्रिया कुमारी का कहना है, हमलोग को बैठने के लिए जगह नहीं है। एक भवन बना भी है तो उसमें भेड़-बकड़ियाँ चरती है। क्या वह भवन भेड़-बकड़ियों के चरने के लिए बनी है। जगह नहीं होने के कारण हमलोगों को बरामदे पर बैठना पड़ता है। वहीं, नवमीं कक्षा की निशु कुमारी का कहना है, बारिश में छत टपकने लगता है। यह कभी भी गिर सकता है। अधिक गर्मी में हमलोग बाहर बैठते हैं। यहां कुछ भी सुविधा नहीं है न कंप्यूटर लैब है और न ही लाइब्रेरी।

क्या कहते हैं प्रभारी प्रिंसिपल

प्रभारी प्रिंसिपल बिनोद कुमार बिंदु कहते हैं साधु लाल साह प्रॉजेक्ट कन्या विद्यालय का अर्धनिर्मित भवन है पर डोनर द्वारा दिया हुआ खंडहर में अपना विद्यालय चला रहा रहे हैं बच्चों को बैठाकर विद्या अध्ययन करा रहे हैं यह भवन कभी भी धराशाही हो सकते हैं। एक तरफ एक एकड़ 24 डिसमिल में बना अर्धनिर्मित भवन है जोकि अधूरा छोड़ा गया है इसी विसंगति को लेकर हमलोगों ने जिला स्तर से लेकर सांसद स्तर तक सब जगह प्रतिवेदन दिया लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है

क्या कहते हैं पदाधिकारी

वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार चौधरी का कहना है कि , हमने अभी-अभी ज्वाइन किया है। पहले देख लेते हैं जो यथासंभव कार्यवाही होगी हम करेंगें।


Conclusion:सवाल यह उठता है कि जिस देश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के योजनाएं बनाई जाती है उसी देश में बच्चियों को पढ़ने के लिए पर्याप्त कमरे नसीब नहीं हो रहे हैं आखिर कब तक देश की बेटियों के लिए मुक़म्मल व्यवस्थाएं हो पाएगी?
Last Updated : Jul 16, 2019, 11:16 AM IST
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