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Bihar Caste Census: जातीय जनगणना का उद्देश्य बिहार को जातियों के दलदल में रखना, समाजशास्त्री ने उठाए सवाल

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर समाजशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने इस जातीय जनगणना में बड़ी त्रुटि को बताया है. उन्होंने कहा कि इसका राजनीतिक उद्देश्य यह है कि बिहार को जातियों के दलदल में रखना है. क्योंकि जातीय जनगणना में उपजाति का कोई जिक्र ही नहीं है. जानिए क्या कह रहे हैं नवल किशोर...

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Published : Apr 15, 2023, 7:58 PM IST

प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, समाजशास्त्री

पटना: बिहार में जातीय जनगणना का दूसरा चरण शुरू हो गया है. 15 अप्रैल से 15 मई तक यह गणना चलेगा. बिहार में जातीय जनगणना का शुरू से विपक्षी पार्टी इसका विरोध कर रही है. वदीं दूसरी ओर पटना के प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी इस पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जातीय जनगणना को लेकर जो कोड जारी किया गया है, उसमें कई ऐसे जातियां हैं, जिनकी उप जातियों की कोई की जानकारी नहीं दी गई है.

यह भी पढ़ेंः Bihar Politics: जातीय जनगणना में जातियों के कोड को लेकर बयानबाजी, नेताओं दी अपनी प्रतिक्रिया

"जातीय जनगणना की जा रही है, उसमें उपजाति की कोई चर्चा ही नहीं है. जिस उद्देश्य से यह काम किया जा हा है, अगर उसमें उपजाति का आंकड़ा ही नहीं रहेगा तो उसके लिए जन कल्यायनकारी योजनाओं का निर्धारण कैसे होगा. सरकार को यह करना चाहिए कि जाति के साथ साथ उपजाति का भी गणना होनी चाहिए. लेकिन सरकार का यही उद्देश्य है कि बिहार को जातियों के दलदल में रखना है." -प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, समाजशास्त्री

कल्याणकारी योजनाओं का निर्धारण कैसे होगा?: नवल किशोर ने बताया कि यह सवाल है कि आखिर जिन जातियों की उप जातियों के बारे में कोई जानकारी नहीं रहेगी तो फिर उनके विकास का ब्लूप्रिंट आखिर कैसे सरकार तैयार करेगी? प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने बताया कि जातीय गणना के उद्देश्यों में सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह बता रही है कि जाति के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न जातियों और विशेष रूप से ऐसी जातियां जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं का निर्धारण करें.

उपजाति को छोड़ने से उद्देश्य नहीं होगा पूराः इस जनगणना का उद्देश्य जाति या उप जातियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना होना चाहिए था, लेकिन अगर केवल जाति से संबंधित आंकड़े जमा किए जाएं, उप जातियों को छोड़ दिया जाए तो जो उद्देश्य है, इस जनगणना से पूरा नहीं हो पाएगा. जाति होमोजीनस ग्रुप नहीं है. सामाजिक आर्थिक रूप से एकरूपता नहीं है. एक जाति के अंदर जो विभिन्न उपजातियां हैं, वे उपजातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से समान स्तर पर नहीं है, उनमें विभिन्नता है. कोई ऊंची तो कोई जाति नीची है.

उद्देश्य की पूर्ति आखिर कैसे होगीः जातीय गणना का उद्देश्य ही विस्तृत जानकारी लेकर कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण कर सकना है. जब आंकड़े ही प्राप्त नहीं होंगे तो उस उद्देश्य की पूर्ति आखिर कैसे होगी? प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, यह दुखद है और आज के जमाने में जबकि आपके पास सारी सुविधा है. एनालिसिस को करने के लिए एक बड़ी फौज है. आंकड़ों को जमा करने के लिए आपने पूरे शिक्षक समाज को इस कार्य में लगा दिया है. तकनीकी रूप से सक्षम हैं तो फिर उन जातियों को क्यों छोड़ा?

सब जातियों को कोड नहीं दिया गयाः जब आपका उद्देश्य डिटेल इंफॉर्मेशन लेने का है तो फिर आपने सब जातियों को कोड क्यों नहीं दिया? कुछ का किया और कुछ कर नहीं किया. स्वभाविक है, इस पर मांग उठ रही है और यह मांग जायज है. इस पर पुनर्विचार होना चाहिए. जाति, उपजाति को वर्गीकरण करके विस्तृत जानकारी लेना चाहिए. जाति जनगणना होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए यह दूसरा विषय है. इसका राजनीतिक उद्देश्य यह है कि बिहार को जातियों के दलदल में रखना है.

प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, समाजशास्त्री

पटना: बिहार में जातीय जनगणना का दूसरा चरण शुरू हो गया है. 15 अप्रैल से 15 मई तक यह गणना चलेगा. बिहार में जातीय जनगणना का शुरू से विपक्षी पार्टी इसका विरोध कर रही है. वदीं दूसरी ओर पटना के प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी इस पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जातीय जनगणना को लेकर जो कोड जारी किया गया है, उसमें कई ऐसे जातियां हैं, जिनकी उप जातियों की कोई की जानकारी नहीं दी गई है.

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"जातीय जनगणना की जा रही है, उसमें उपजाति की कोई चर्चा ही नहीं है. जिस उद्देश्य से यह काम किया जा हा है, अगर उसमें उपजाति का आंकड़ा ही नहीं रहेगा तो उसके लिए जन कल्यायनकारी योजनाओं का निर्धारण कैसे होगा. सरकार को यह करना चाहिए कि जाति के साथ साथ उपजाति का भी गणना होनी चाहिए. लेकिन सरकार का यही उद्देश्य है कि बिहार को जातियों के दलदल में रखना है." -प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, समाजशास्त्री

कल्याणकारी योजनाओं का निर्धारण कैसे होगा?: नवल किशोर ने बताया कि यह सवाल है कि आखिर जिन जातियों की उप जातियों के बारे में कोई जानकारी नहीं रहेगी तो फिर उनके विकास का ब्लूप्रिंट आखिर कैसे सरकार तैयार करेगी? प्रसिद्ध समाजशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी ने बताया कि जातीय गणना के उद्देश्यों में सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह बता रही है कि जाति के आंकड़ों के आधार पर विभिन्न जातियों और विशेष रूप से ऐसी जातियां जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं का निर्धारण करें.

उपजाति को छोड़ने से उद्देश्य नहीं होगा पूराः इस जनगणना का उद्देश्य जाति या उप जातियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करना होना चाहिए था, लेकिन अगर केवल जाति से संबंधित आंकड़े जमा किए जाएं, उप जातियों को छोड़ दिया जाए तो जो उद्देश्य है, इस जनगणना से पूरा नहीं हो पाएगा. जाति होमोजीनस ग्रुप नहीं है. सामाजिक आर्थिक रूप से एकरूपता नहीं है. एक जाति के अंदर जो विभिन्न उपजातियां हैं, वे उपजातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से समान स्तर पर नहीं है, उनमें विभिन्नता है. कोई ऊंची तो कोई जाति नीची है.

उद्देश्य की पूर्ति आखिर कैसे होगीः जातीय गणना का उद्देश्य ही विस्तृत जानकारी लेकर कल्याणकारी योजनाओं का निर्माण कर सकना है. जब आंकड़े ही प्राप्त नहीं होंगे तो उस उद्देश्य की पूर्ति आखिर कैसे होगी? प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, यह दुखद है और आज के जमाने में जबकि आपके पास सारी सुविधा है. एनालिसिस को करने के लिए एक बड़ी फौज है. आंकड़ों को जमा करने के लिए आपने पूरे शिक्षक समाज को इस कार्य में लगा दिया है. तकनीकी रूप से सक्षम हैं तो फिर उन जातियों को क्यों छोड़ा?

सब जातियों को कोड नहीं दिया गयाः जब आपका उद्देश्य डिटेल इंफॉर्मेशन लेने का है तो फिर आपने सब जातियों को कोड क्यों नहीं दिया? कुछ का किया और कुछ कर नहीं किया. स्वभाविक है, इस पर मांग उठ रही है और यह मांग जायज है. इस पर पुनर्विचार होना चाहिए. जाति, उपजाति को वर्गीकरण करके विस्तृत जानकारी लेना चाहिए. जाति जनगणना होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए यह दूसरा विषय है. इसका राजनीतिक उद्देश्य यह है कि बिहार को जातियों के दलदल में रखना है.

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