पटना: बनारस (Varanasi) पहुंचे पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने पूर्वांचल को सौगात दी. पूर्वांचल की धीमी रफ्तार को गति देने के लिए हर उन चीजों को बता दिया जो करोड़ों की लागत से बनारस में तैयार हो रहा है. मोदी यहीं नहीं रुके, तैयारी आगे भी बढ़ गई है और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) से बिहार (Bihar) को जोड़ने की रफ्तार भी तेज हो गई है.
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हालांकि, यहीं से गंगा (Ganga) की वह कहानी भी जमीन को छोड़ती ही नजर आ रही है, जिस जमीन को पकड़ने के लिए बनारस के सम्मान में कसीदे गढ़े गए थे. दरअसल, कोरोना वायरस (Corona Virus) ने बनारस से गुजरने वाली गंगा के हर किनारे पर बसे लोगों को एक ऐसी अंतहीन दर्द की कहानी दे दी है, जो सदियों तक नहीं भूलेगी. गंगा की गोद में तैरती वैसी तमाम चीजें जो अपनों के खोने के गम के साथ जुड़ी हैं.
नरेंद्र मोदी ने बिहार के लिए बनारस से विकास की रफ्तार बता दी. बिहार को बनारस से जोड़ दिया. पूर्वांचल को रफ्तार दे दी. ऐसे में सवाल जरूर खड़ा हो गया कि नरेंद्र मोदी विकास के लिए बनारस के जिस घाट पर खड़े होकर बातों को कह रहे हैं. वहीं, से निकलने वाली गंगा जब बिहार पहुंची है, तो बाढ़ (Flood) की विभीषिका और उसे झेलने की अंतहीन दर्द की कथा लिए बिहार अभी भी दो-चार हो रहा है.
गंगा में बढ़े पानी ने दो इंजन की सरकार और उस पर भरोसा कर बैठे बिहार को अगर कोई चीज तेज मिली है, तो जीवन जीने की हर राह पर पानी की वह कहानी जिस पर जिंदगी पानी से जूझ रही है. बिहार विकास की रफ्तार पकड़ेगा, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह गए. बिहार में बाढ़ का पानी उतर जाएगा, यह देखने के लिए नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हवाई दौरे पर हैं.
लेकिन, जिंदगी जिस रफ्तार से दौड़ना चाहिए, बजाय उसके थम सी गई है. उसको सियासत की कोई भाषा समझ नहीं आ रही है. निजात के लिए निगाहें सिर्फ आसमान में उड़ते हवाई जहाज और उसमें ही उड़ जाने वाले वादों के सपनों को देख रही हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की अंगड़ाई ले रहा है. 2022 में वहां चुनाव है और बिहार में दो इंजन की सरकार जो नरेंद्र मोदी के सहयोग से चल रही है. ऐसे में बताना तो जरूरी है कि बनारस जब भी बिहार जाता है तो क्या लेकर जाता है और बिहार जब विकास की रफ्तार पकड़ेगा तो बनारस को क्या कुछ दे जाएगा. इसकी एक बड़ी कहानी भी है.
बिहार के दो दर्जन से ज्यादा जिले उत्तर प्रदेश की राजनीति से प्रभावित होते हैं या फिर बिहार का विकास उत्तर प्रदेश की राजनीति पर असर डालता है. अब बनारस से निकली सड़क बिहार जा रही है. विकास की गाथा जरूरी है, लेकिन जो गंगा बनारस से बक्सर होते हुए पटना जाती है, उसकी भी कहानी जरूरी है, क्योंकि जीवन को रफ्तार में बहाना और जीवन का पानी में बह जाना यह दोनों बिहार के साथ विभेद लिए खड़ी है.
इसमें दो राय नहीं है कि 2022 के चुनाव में बिहार में हो रहे विकास की कहानी नहीं कही जाएगी, नमो राग भी गाया जाएगा, योगी की तपस्या भी कही जाएगी, दो इंजन के विकास का बिहार भी गिनाया जाएगा. लेकिन, डूबते बिहार की कहानी को बताने के लिए शायद कोई जुबान हो, क्योंकि सड़क की रफ्तार बनारस से बिहार के लिए बता तो दी गई, लेकिन गंगा के पानी की कहानी से लोग मुंह मोड़ गए.
हवाई जहाज की यात्रा तो हो रही है जिस में बाढ़ पीड़ितों का दर्द जानना है, लेकिन देश के मुखिया जिस मंच से विकास की बड़ी बातें कह कर गए वहां से महज 50 किलोमीटर दूर पर ही कुछ जिंदगी ऐसी है जो पानी पर जी रही है. उसके दर्द के एहसास का आभास भी मंच से नहीं किया गया.
कई महीनों बाद मोदी बनारस पहुंचे थे, यह बात तो जरूर बताएं देश जिस दर्द से जूझ रहा है उससे लड़ने की जरूरत को कहा तो गया, लेकिन बिहार की ठहर जाने वाली जिंदगी की एक बात भी कहीं नहीं दिखी. यह बिहार के लिए विकास का कड़वा सच है, जो पानी में जी रहा है, गंगा से कह रहा है. अब पतित पावनी गंगा या फिर तारने वाली गंगा या नमो गंगा, दर्द बांटेगा कौन कहना मुश्किल है. बस सच यही है कि यह बिहार है बातें हैं, बाहर है कि नहीं लेकिन देश के फलक पर पानी में डूबा हुआ बिहार जरूर है, जो है और रहेगी.
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