पटना:आज चैत्र नवरात्र के पावन पर्व पर मां दुर्गा के पांचवां अवतार स्कंदमाता की पूजा की जाती है. माता की पूजा कुश या कंबल के आसन पर बैठकर की जाती है. मां दुर्गा के पांचवें रूप को स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है. भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा जी के पांचवें स्वरुप को स्कंदमाता नाम प्राप्त हुआ है.
ऐसे करें मां स्कंदमाता की पूजा
मां स्कंदमाता की पूजा करने के लिए कुश और कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा की जाती है. माता की पूजा के पश्चात भोलेनाथ और ब्रह्मा जी की पूजा भी करते हैं. देवी स्कंदमाता की भक्ति भाव सहित पूजन करने से माता की कृपा प्राप्त होती है. घर में सुख शांति रहता है.
आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि मां स्कंदमाता की उपासना से भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं. इस संसार में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है. उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है. स्कंदमाता की उपासना से बाल रूप स्कंद भगवान की उपासना भी खुद से हो जाती है. यह विशेषता केवल मां स्कंदमाता को प्राप्त है. भक्तों को मां स्कंदमाता की उपासना की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए.
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रामा शंकर दुबे ने बताया कि स्कंदमाता की महिमा का जितना गुणगान किया जाए बहुत कम है, शेर पर सवार माता की चार भुजा धारी वाली स्वरूप का पूजा किया जाता है. माता का जो पांचवां स्वरूप है वह अभय वरदान के रूप में विराजमान है. मां कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं. माता कार्तिक जी को गोद में लिए बैठीं हैं और उनको आशीर्वाद दे रहीं हैं. पीला वस्त्र पीला, फूल पीला, चंदन मां को खूब भाता है.
आचार्य ने बताया कि मां स्कंदमाता के लिए या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः, इन मंत्रों का भी उच्चारण करके माता अनुष्ठान किया जाता है.