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नीतीश की राजनीतिक नैतिकता ने लिया मेवालाल से इस्तीफा!

बिहार कैबिनेट में नीतीश कुमार समेत 15 मंत्री शामिल हुए, लेकिन मेवालाल पर लगे आरोपों के पन्ने जब पलटे गए, तो इनकी संख्या 14 में तब्दील हो गई. महज दो घंटे बिहार के शिक्षा मंत्री रहे मेवालाल ने इस्तीफा दे दिया. पढ़ें पूरा आर्टिकल...

नीतीश कुमार
नीतीश कुमार
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Published : Nov 20, 2020, 8:36 PM IST

पटना : बिहार में नीतीश की नई कैबिनेट में उस समय विवाद उठ गया, जब बिहार में जेडीयू कोटे से विधायक मेवालाल चौधरी ने शपथ ली. मेवालाल चौधरी के शपथ के बाद से ही बिहार में यह सवाल उठने लगा था कि नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक मजबूरी के तहत मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाया.

मेवालाल चौधरी पर कई गंभीर आरोपों के तहत मामले दर्ज ​हैं, जिसमें वाइस चांसलर रहते हुए भवन निर्माण और नियुक्ति में अनियमितता को लेकर उन पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120(बी) के तहत मामला (केस नं 35/2017) दर्ज किया गया. शपथ के बाद बढ़े राजनीतिक दबाव ने मेवालाल को पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. मेवालाल चौधरी के इस्तीफे के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या मेवालाल नीतीश की मर्यादित राजनीति की प्रतिष्ठा बन गए या फिर बीजपी के दबाव में नीतीश कुमार ने मेवालाल से इस्तीफा ले लिया.

लग गया था बोर्ड
लग गया था बोर्ड

नीतीश पर बना दबाव?
मेवालाल ने इस्तीफा देने के बाद खुद को अपने घर में कैद कर लिया. बाद में मीडिया से मुखातिब होते हुए जेडीयू विधायक ने कहा कि उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की क्षवि को लेकर ही यह फैसला लिया है. मेवालाल के इस बयान से ये बात साफ हो गई कि खुद उनके ऊपर भी दबाव बन गया था. दूसरी ओर उन्हें जिस विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, इस चुनाव उसे मुद्दा बनाया गया था.

बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था के हाल किसी से छिपे नहीं हैं. प्रदेश में छात्र-शिक्षक अनुपात, छात्र-स्कूल अनुपात में सटीक संतुलन नहीं है. सूबे में तकरीबन 2 लाख 85 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. 2019 में निकली शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हो पाई है. बता दें 1 लाख 25 हजार शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया कई कारणों से ठंडे बस्ते में है. ऐसे में मेवालाल की एंट्री ने शिक्षक अभ्यर्थियों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी. शिक्षकों के मामले को लेकर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को जिस तरह से घेरा था, उसके बाद इस विभाग के लिए साफ सुधरी छवि के लोगों को रखना एक चुनौती थी.

पूर्व आईपीएस अधिकारी
पूर्व आईएएस अधिकारी का पत्र

बीजेपी सख्त!
स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा को लेकर विपक्ष चुनाव के पहले से अब तक हमलावर है. 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का नारा देने वाली बीजेपी आज बिहार में जेडीयू के साथ सरकार में है. सेकेंड लार्जेस्ट पार्टी बीजेपी के 74 विधायकों के साथ बिहार के विकास को लेकर तमाम दावे कर रही है. खुद पीएम मोदी ने केंद्र की ओर से बिहार के विकास के लिए मदद का आश्वासन भी दिया है. ऐसे में दागी चेहरे पर शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपना. मतलब मोदी के नेतृत्व पर भी चोट पहुंचाने जैसा रहा. सवाल बीजेपी पर भी उठने लगे कि जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ शपथ लेते हुए उनके जीते हुए विधायकों ने पार्टी कार्यालय में शपथ लेते हुए विधानसभा में एंट्री ली. वो क्या मेवालाल जैसे मंत्री के साथ काम करेंगे. यह भी नीतीश कुमार को मनोवैज्ञानिक दबाव रहा है.

आरएन सिंह, मांझी से भी नीतीश ने लिया है इस्तीफा
यह नीतीश कुमार के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती रही है. नीतीश कुमार जब 2005 में मुख्यमंत्री बने तो उसके बाद से लगतार सरकार बनने के बाद से दागी लोगों को अपने कैबिनेट में जगह देने से गुरेज ही किए हैं. नीतीश कुमार ने इससे पहले अपनी बनी सरकार में मंत्री पद की शपथ लिए आरएन सिंह से इस्तीफा ले लिया था. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम के अघ्यक्ष जीतन राम मांझी ने अपना इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बाद में नीतीश कुमार ने इस बात को स्पष्ट किया था कि मांझी पर विजलेंस का केस होने के नाते उनसे इस्तीफा लिया गया.

मेवालाल चौधरी
मेवालाल चौधरी

घोटाले में नाम, देना पड़ा इस्तीफा
7वीं बार सीएम बने नीतीश कुमार की कैबिनेट में शामिल किए गए विधायक मेवालाल को शिक्षा मंत्री बनाया गया. पदभार ग्रहण करने के महज 2 घंटे बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया. शिक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले जेडीयू विधायक मेवालाल चौधरी पर सहायक प्राध्यापक और जूनियर वैज्ञानिकों की नियुक्ति में अनियमितता बरतने के आरोप हैं. इसके साथ ही पूर्व आईपीएस अधिकारी ने उनकी पत्नी की मौत को संदिग्ध बताते हुए डीजीपी को पत्र लिख, मेवालाल को और हाईलाइटेड कर दिया. नतीजतन, विपक्ष नई नीतीश सरकार पर हमलावर दिखाई दिया और अंत में मेवालाल को रिजाइन करना पड़ गया.

भ्रष्टाचार को लेकर तोड़ा था राजद से गठबंधन

जदयू 2014 की राजनीति के बाद राजद से गठबंधन किया था. 2015 में राजद और जदयू की सरकार बनी थी. नीतीश कुमार की सरकार में राजद के नेता और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने थे. 2017 में आईआरसीटीसी के जमीन घोटाले के मामले पर तेजस्वी यादव से भी सीबीआई पूछताछ कर रही थी. नीतीश कुमार ने इस बात को लेकर बयान भी दिया था कि तेजस्वी से मैंने उनके मामले को लेकर स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन उन्होने नहीं दिया था जिसके कारण नीतीश कुमार ने खुद को सरकार से अलग कर लिया था. जुलाई 2017 में जदयू और राजद की गठबंधन की सरकार भ्रष्टाचार के मामले को लेकर ही टूट गयी थी.

नीतीश कुमार ने ​बतौर मुख्यमंत्री 7वीं बार बिहार की बागड़ोर संभल रहे हैं, नीतीश कुमार को 2020 के चुनाव में जिस तरह की चुनौती मिली, उससे नीतीश कुमार को बिहार में भ्रष्टाचार को रोकना बड़ी चुनौती है. नीतीश कुमार बिहार में जब से कमान संभाले हैं उसमें 2020 का चुनाव उनके लिए सबसे ज्यादा परेशानी वाला रहा है.

अब नई सरकार के लिए नीतीश कुमार को नई नीति के तहत जाना है और जनता के ​बीच एक साफ सुधरी छवि को रखना है. यह भी मेवालाल के जाने का कारण बना है लेकिन अभी सरकार बनी है चलना बाकी है, चुनौती नीतीश कुमार के पास यह भी है आगे भी बेदाग छवि को बनाया रखा जा सके.

पटना : बिहार में नीतीश की नई कैबिनेट में उस समय विवाद उठ गया, जब बिहार में जेडीयू कोटे से विधायक मेवालाल चौधरी ने शपथ ली. मेवालाल चौधरी के शपथ के बाद से ही बिहार में यह सवाल उठने लगा था कि नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक मजबूरी के तहत मेवालाल चौधरी को मंत्री बनाया.

मेवालाल चौधरी पर कई गंभीर आरोपों के तहत मामले दर्ज ​हैं, जिसमें वाइस चांसलर रहते हुए भवन निर्माण और नियुक्ति में अनियमितता को लेकर उन पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471 और 120(बी) के तहत मामला (केस नं 35/2017) दर्ज किया गया. शपथ के बाद बढ़े राजनीतिक दबाव ने मेवालाल को पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया. मेवालाल चौधरी के इस्तीफे के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या मेवालाल नीतीश की मर्यादित राजनीति की प्रतिष्ठा बन गए या फिर बीजपी के दबाव में नीतीश कुमार ने मेवालाल से इस्तीफा ले लिया.

लग गया था बोर्ड
लग गया था बोर्ड

नीतीश पर बना दबाव?
मेवालाल ने इस्तीफा देने के बाद खुद को अपने घर में कैद कर लिया. बाद में मीडिया से मुखातिब होते हुए जेडीयू विधायक ने कहा कि उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की क्षवि को लेकर ही यह फैसला लिया है. मेवालाल के इस बयान से ये बात साफ हो गई कि खुद उनके ऊपर भी दबाव बन गया था. दूसरी ओर उन्हें जिस विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, इस चुनाव उसे मुद्दा बनाया गया था.

बिहार की लचर शिक्षा व्यवस्था के हाल किसी से छिपे नहीं हैं. प्रदेश में छात्र-शिक्षक अनुपात, छात्र-स्कूल अनुपात में सटीक संतुलन नहीं है. सूबे में तकरीबन 2 लाख 85 हजार शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं. 2019 में निकली शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हो पाई है. बता दें 1 लाख 25 हजार शिक्षक नियोजन की प्रक्रिया कई कारणों से ठंडे बस्ते में है. ऐसे में मेवालाल की एंट्री ने शिक्षक अभ्यर्थियों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी. शिक्षकों के मामले को लेकर तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को जिस तरह से घेरा था, उसके बाद इस विभाग के लिए साफ सुधरी छवि के लोगों को रखना एक चुनौती थी.

पूर्व आईपीएस अधिकारी
पूर्व आईएएस अधिकारी का पत्र

बीजेपी सख्त!
स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा को लेकर विपक्ष चुनाव के पहले से अब तक हमलावर है. 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का नारा देने वाली बीजेपी आज बिहार में जेडीयू के साथ सरकार में है. सेकेंड लार्जेस्ट पार्टी बीजेपी के 74 विधायकों के साथ बिहार के विकास को लेकर तमाम दावे कर रही है. खुद पीएम मोदी ने केंद्र की ओर से बिहार के विकास के लिए मदद का आश्वासन भी दिया है. ऐसे में दागी चेहरे पर शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपना. मतलब मोदी के नेतृत्व पर भी चोट पहुंचाने जैसा रहा. सवाल बीजेपी पर भी उठने लगे कि जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ शपथ लेते हुए उनके जीते हुए विधायकों ने पार्टी कार्यालय में शपथ लेते हुए विधानसभा में एंट्री ली. वो क्या मेवालाल जैसे मंत्री के साथ काम करेंगे. यह भी नीतीश कुमार को मनोवैज्ञानिक दबाव रहा है.

आरएन सिंह, मांझी से भी नीतीश ने लिया है इस्तीफा
यह नीतीश कुमार के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती रही है. नीतीश कुमार जब 2005 में मुख्यमंत्री बने तो उसके बाद से लगतार सरकार बनने के बाद से दागी लोगों को अपने कैबिनेट में जगह देने से गुरेज ही किए हैं. नीतीश कुमार ने इससे पहले अपनी बनी सरकार में मंत्री पद की शपथ लिए आरएन सिंह से इस्तीफा ले लिया था. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम के अघ्यक्ष जीतन राम मांझी ने अपना इस्तीफा दे दिया था. हालांकि बाद में नीतीश कुमार ने इस बात को स्पष्ट किया था कि मांझी पर विजलेंस का केस होने के नाते उनसे इस्तीफा लिया गया.

मेवालाल चौधरी
मेवालाल चौधरी

घोटाले में नाम, देना पड़ा इस्तीफा
7वीं बार सीएम बने नीतीश कुमार की कैबिनेट में शामिल किए गए विधायक मेवालाल को शिक्षा मंत्री बनाया गया. पदभार ग्रहण करने के महज 2 घंटे बाद उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया. शिक्षा मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले जेडीयू विधायक मेवालाल चौधरी पर सहायक प्राध्यापक और जूनियर वैज्ञानिकों की नियुक्ति में अनियमितता बरतने के आरोप हैं. इसके साथ ही पूर्व आईपीएस अधिकारी ने उनकी पत्नी की मौत को संदिग्ध बताते हुए डीजीपी को पत्र लिख, मेवालाल को और हाईलाइटेड कर दिया. नतीजतन, विपक्ष नई नीतीश सरकार पर हमलावर दिखाई दिया और अंत में मेवालाल को रिजाइन करना पड़ गया.

भ्रष्टाचार को लेकर तोड़ा था राजद से गठबंधन

जदयू 2014 की राजनीति के बाद राजद से गठबंधन किया था. 2015 में राजद और जदयू की सरकार बनी थी. नीतीश कुमार की सरकार में राजद के नेता और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने थे. 2017 में आईआरसीटीसी के जमीन घोटाले के मामले पर तेजस्वी यादव से भी सीबीआई पूछताछ कर रही थी. नीतीश कुमार ने इस बात को लेकर बयान भी दिया था कि तेजस्वी से मैंने उनके मामले को लेकर स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन उन्होने नहीं दिया था जिसके कारण नीतीश कुमार ने खुद को सरकार से अलग कर लिया था. जुलाई 2017 में जदयू और राजद की गठबंधन की सरकार भ्रष्टाचार के मामले को लेकर ही टूट गयी थी.

नीतीश कुमार ने ​बतौर मुख्यमंत्री 7वीं बार बिहार की बागड़ोर संभल रहे हैं, नीतीश कुमार को 2020 के चुनाव में जिस तरह की चुनौती मिली, उससे नीतीश कुमार को बिहार में भ्रष्टाचार को रोकना बड़ी चुनौती है. नीतीश कुमार बिहार में जब से कमान संभाले हैं उसमें 2020 का चुनाव उनके लिए सबसे ज्यादा परेशानी वाला रहा है.

अब नई सरकार के लिए नीतीश कुमार को नई नीति के तहत जाना है और जनता के ​बीच एक साफ सुधरी छवि को रखना है. यह भी मेवालाल के जाने का कारण बना है लेकिन अभी सरकार बनी है चलना बाकी है, चुनौती नीतीश कुमार के पास यह भी है आगे भी बेदाग छवि को बनाया रखा जा सके.

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