पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में NDA को पूर्ण बहुमत मिल चुका है. NDA में सीएम कौन होगा, इस पर अभी सस्पेंस है. लेकिन महागठबंधन की ओर से बनने वाली सरकार के विरोधी दल का नेता चुन लिया गया है. राबड़ी देवी के आवास पर हुई बैठक में तेजस्वी यादव के नाम पर मुहर भी लग चुकी है. इसमें कहीं कोई शक नहीं है कि जो चुनाव नतीजे आए हैं, उसके लिए पूरी तरह से तेजस्वी यादव ही जिम्मेवार हैं. चुनाव की रणनीति से लेकर टिकट बंटवारे तक तेजस्वी यादव की हर जगह उपस्थित रही है. विरोधी दल का नेता तेजस्वी यादव जरूर बन गए हैं, लेकिन 'हार' के मुद्दे पर महागठबंधन 'विरोधियों का दल' बनता जा रहा है.
लेफ्ट और आरजेडी ने महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाने का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ना शुरू कर दिया है. 11 नवंबर को राबड़ी देवी के आवास पर महागठबंधन की बैठक हुई, लेकिन इस बैठक से पहले ही वाम दलों ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगा दिए. लेफ्ट ने आरोप लगाया कि कांग्रेस को जितनी सीट दी गई, वो उसे संभाल नहीं पाई. वहीं राजद के भी कई नेताओं ने कांग्रेस पर निशाना साधा. कुछ आरजेडी नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने बिहार की राजनीतिक जमीन पर काम ही नहीं किया. ऐसे में अब चर्चा इस बात की शुरू हो गई है कि महागठबंधन विरोधियों का दल बना है या फिर एक दूसरे के विरोधियों का दल ?
हार का जिम्मेदार कौन?
बिहार विधनसभा चुनाव में वाम दलों ने कांग्रेस पर बेहतर प्रदर्शन नहीं करने का आरोप लगा दिया. सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भटटाचार्य ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस को जितनी सीटें मिली, कांग्रेस उसे संभाल ही नहीं पायी. वाम दल के इस आरोप के बाद महागठबंधन में साथ रहने को लेकर विवाद और साथ रहने के समय को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है. बिहार में सरकार बनाने का दावा करने वाला महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से दूर रह गया. ऐसे में कांग्रेस ने जितनी सीटें चुनावों के लिए मांगी थीं और जितनी सीटें जीती हैं, उसका स्ट्राइक रेट अगर देखा जाए तो 2015 की जीत से कम है. वाम दल के इस आरोप पर कांग्रेस ने भी जवाब दे दिया कि जो सीटें वाम दल को मिली हैं, वह हमारे कार्य की देन है.
कांग्रेस खेमे में खुशी: 2015 की तुलना में 2020 में बढ़ा वोट प्रतिशत
बिहार की राजनीति में कांग्रेस लंबे समय से हाशिए पर ही खड़ी रही है. 2015 में राजद और नीतीश के समझौते ने कांग्रेस को बिहार की सियासत में संजीवनी दे दी है. 2015 में कांग्रेस ने कुल 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2015 में 27 सीट जीतने के बाद भी कांग्रेस का कुल वोट प्रतिशत 6.8 ही था. 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने और 19 सीट जीतने के बाद भी कांग्रेस का वोट शेयर 9.48 फीसदी पहुंच गया है. बिहार में बढ़े वोट प्रतिशत को लेकर कांग्रेस उत्साहित है. हालांकि 2015 जितनी सीट नहीं जीत पाने का मलाल भले ही कांग्रेस के मन में हो, लेकिन वोट प्रतिशत की खुशी लाजमी है. जो वाम दल के गले नहीं उतर रही.
वाम दल को सीट मिली, वोट में शेयर नहीं बढ़ा
बिहार चुनाव में वाम दलों को जो सीटें मिली है, वह बिहार में वाम दलों की राजनीति में कम बैक कहा जा सकता है, लेकिन वाम दलों को यह पता है कि जिस वोट बैंक के भरोसे यह सीट उन्हें मिली है, वह स्थायी नहीं है. वाम दलों को कुल मिलाकार 1.50 फीसदी से भी कम वोट मिला है. यह दीगर बात है कि तीन राजनीतिक दलों की कड़ी टक्कर में वाम दलों की किस्मत चमक गयी है. हालांकि वाम दलों को इस बात की जानकारी है, जो नीति उनके काम कभी नहीं आयी है, उस गठबंधन में कांग्रेस अगर नीति बनाती है तो आगे की राजनीति उनके लिए आसान नहीं होगी.
विरोधी दल या विरोधियों का दल
बिहार की राजनीति में महागठबंधन तेजस्वी के नेतृत्व में आगे की राजनीति करेगा. लेकिन कितना दिन यह समय तय नहीं है. लेकिन जिस तरह की राजनीतिक बयानबाजी का खेल शुरू हुआ है, उससे यह लगता नहीं है कि कांग्रेस महागठबंधन में बहुत ज्यादा दिनों तक हिस्सेदार रहेगी. बहरहाल जीत का हर रंग वाम दल अपने साथ जोड़ रही है और हार का ठीकरा कांग्रेस के माथे पर फोड़ रही है. लेकिन सच यह भी है कि कांग्रेस के बढ़े वोट शेयर से कांग्रेस को बिहार में नई राजनीतिक जमीन की तैयारी दिख रही है और कांग्रेस यह नहीं चाहेगी कि उसने पांच सालों में जो कमाया है, उसे गंवाया जाय. इसलिए गठबंधन में भी राजनीतिक विरोध हो सकता है. अब देखना यह होगा कि तेजस्वी यादव बिहार में बने महागठबंधन को सरकार का 'विरोधी दल' बनाते हैं, या फिर महागठबंधन में 'विरोधियों का दल'.