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Shardiya Navratri 2023: नगर रक्षिका के नाम से विख्यात हैं मां काली, हजारों वर्षों पुराना है मंदिर का इतिहास

बिहार के पटना मसौढ़ी में मां काली नगर रक्षिका के नाम से विख्यात हैं. इस मंदिर का इतिहास हजारों वर्षों को पुराना है. मान्यता है कि जो भक्त यहां सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा करने के लिए आते हैं, वे कभी खाली हाथ नहीं लौटते हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 19, 2023, 6:12 AM IST

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मसौढ़ी की मां काली मंदिर

पटनाः नवरात्रि के मौके पर मसौढ़ी स्टेशन रोड स्थित ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है. इस मंदिर में मां काली की प्रतिमा स्थापित है, जो त्रिपुरा सुंदरी और नगर रक्षिका के नाम से जानी जाती हैं. श्रद्धालुओं के लिए यह आस्था का केंद्र है. जो भी भक्त यहां श्रद्धा के साथ पूजा करने के लिए आते हैं, वे कभी यहां से खाली हाथ नहीं लौटते हैं. यहां के लोगों में मां काली के प्रति अटूट विश्वास है.

यह भी पढ़ेंः Shardiya Navratri 2023: बिहार के इस मंदिर में दी जाती है 'अनूठी रक्तविहीन पशु बलि'.. देखिए माता मुडेश्वरी की महिमा

टेकारी महाराज की पत्नी ने शुरू की थी पूजाः मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि गया के टेकारी महाराज की पत्नी मां काली की बहुत बड़ी भक्त थी. रानी जब तालाब में स्नान करने के लिए जाती थी, उससे पहले वे मिट्टी का पिंडी बनाया करती थी. स्नान करने के लिए रानी इस पिंडी की पूजा-अर्चना करती थी. यहीं से मां काली की पूजा आरंभ हुई. जिस तालाब में महारानी स्नान करती थी उसका नाम राजारानी तालाब कहते थे, लेकिन अब कालीघाट के नाम से जाना जाता है.

पिंडी के रूप में होती थी पूजाः बताया जाता है कि हजारों साल पहले यहां मां काली को पिंडी के रूप में पूजा जाता था. 1908 से धीरे धीरे लोगों में मां काली के प्रति आस्था बढ़ती गई. 1953 में राजस्थान के काला संगमरमर से मां काली की प्रतिमा बनाया गया, तब से इस मंदिर की और चर्चा होने लगी. यहां के लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ता चला गया. नवरात्र के मौके पर यहां रोज काफी संख्या में भक्त पूजा अचना करने के लिए पहुंचते हैं.

साध्वी भैरवी पहली बार पुजारी बनी थीः मां काली को मिट्टी का पिंडी के रूप में पूजा जाता था, उस समय बनारस की एक साध्वी भैरवी यहां पर रहती थी. वही मां काली की पूजा अर्चना करती थी. इसके बाद बनारस के बाबा के नाम से विख्यात था महंत यहां पूजा अर्चना करते थे.

इसलिए जानी जाती हैं नगर रक्षिकाः वर्तमान में हरी बाबा मां काली की पूजा करते हैं. कहा जाता है कि जब से प्रतिमा स्थापित हुई है, तब से इस इलाके में किसी को कोई समस्या नहीं हुई है. इसलिए इसे त्रिपुरा सुंदरी और नगर रक्षिका के नाम से जाना जाता है. प्रत्येक मंगलवार शनिवार को यहां भजन-कीर्तन और आरती का आयोजन किया जाता है.

"हजारों साल पहले पिंडी के रूप में पूजा होती थी. इसके बाद राजस्थान से काला पत्थर लाकर प्रतिमा स्थापित की गई. धीरे धीरे यह मंदिर विख्यात होते चला गया. यहां जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं, मां काली उनकी मनोकामना पूर्ण करती है." -राजकुमार पांडे हरी जी, पुजारी

मसौढ़ी की मां काली मंदिर

पटनाः नवरात्रि के मौके पर मसौढ़ी स्टेशन रोड स्थित ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है. इस मंदिर में मां काली की प्रतिमा स्थापित है, जो त्रिपुरा सुंदरी और नगर रक्षिका के नाम से जानी जाती हैं. श्रद्धालुओं के लिए यह आस्था का केंद्र है. जो भी भक्त यहां श्रद्धा के साथ पूजा करने के लिए आते हैं, वे कभी यहां से खाली हाथ नहीं लौटते हैं. यहां के लोगों में मां काली के प्रति अटूट विश्वास है.

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टेकारी महाराज की पत्नी ने शुरू की थी पूजाः मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि गया के टेकारी महाराज की पत्नी मां काली की बहुत बड़ी भक्त थी. रानी जब तालाब में स्नान करने के लिए जाती थी, उससे पहले वे मिट्टी का पिंडी बनाया करती थी. स्नान करने के लिए रानी इस पिंडी की पूजा-अर्चना करती थी. यहीं से मां काली की पूजा आरंभ हुई. जिस तालाब में महारानी स्नान करती थी उसका नाम राजारानी तालाब कहते थे, लेकिन अब कालीघाट के नाम से जाना जाता है.

पिंडी के रूप में होती थी पूजाः बताया जाता है कि हजारों साल पहले यहां मां काली को पिंडी के रूप में पूजा जाता था. 1908 से धीरे धीरे लोगों में मां काली के प्रति आस्था बढ़ती गई. 1953 में राजस्थान के काला संगमरमर से मां काली की प्रतिमा बनाया गया, तब से इस मंदिर की और चर्चा होने लगी. यहां के लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ता चला गया. नवरात्र के मौके पर यहां रोज काफी संख्या में भक्त पूजा अचना करने के लिए पहुंचते हैं.

साध्वी भैरवी पहली बार पुजारी बनी थीः मां काली को मिट्टी का पिंडी के रूप में पूजा जाता था, उस समय बनारस की एक साध्वी भैरवी यहां पर रहती थी. वही मां काली की पूजा अर्चना करती थी. इसके बाद बनारस के बाबा के नाम से विख्यात था महंत यहां पूजा अर्चना करते थे.

इसलिए जानी जाती हैं नगर रक्षिकाः वर्तमान में हरी बाबा मां काली की पूजा करते हैं. कहा जाता है कि जब से प्रतिमा स्थापित हुई है, तब से इस इलाके में किसी को कोई समस्या नहीं हुई है. इसलिए इसे त्रिपुरा सुंदरी और नगर रक्षिका के नाम से जाना जाता है. प्रत्येक मंगलवार शनिवार को यहां भजन-कीर्तन और आरती का आयोजन किया जाता है.

"हजारों साल पहले पिंडी के रूप में पूजा होती थी. इसके बाद राजस्थान से काला पत्थर लाकर प्रतिमा स्थापित की गई. धीरे धीरे यह मंदिर विख्यात होते चला गया. यहां जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं, मां काली उनकी मनोकामना पूर्ण करती है." -राजकुमार पांडे हरी जी, पुजारी

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