पटना: भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता रहे लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) की आज जयंती है. उनका जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के छोटे से गांव सिताबदियारा में हुआ था. जयप्रकाश कौन थे, इसका एक ओजपूर्ण परिचय रामधारी सिंह दिनकर की उन पंक्तियों से मिलता है, जो उन्होंने 1946 में जयप्रकाश नारायण के जेल से रिहा होने के बाद लिखी थी और पटना के गांधी मैदान में जेपी के स्वागत में उमड़ी लाखों लोगों के सामने पढ़ी थी.
कहते हैं उसको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है
ज्वाला को बुझते देख, कुंड में स्वयं कूद जो पड़ता है.
है जयप्रकाश वह जो न कभी सीमित रह सकता घेरे में
अपनी मशाल जो जला बांटता फिरता ज्योति अंधेरे में.
हां जयप्रकाश है नाम समय की करवट का, अंगड़ाई का
भूचाल, बवंडर, के दावों से, भरी हुई तरुणाई का
है जयप्रकाश वह नाम जिसे इतिहास समादार देता है
बढ़कर जिनके पदचिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है.
इंदिरा गांधी का विरोध
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण को देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के लिए जाना जाता था और कहा जाता है कि उनके आंदोलन की वजह से इंदिरा गांधी के हाथ से सत्ता तक छिन गई थी.
1970...जेपी आंदोलन
दरअसल ये 1970 का वक्त था. जब देश महंगाई से लेकर कई बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा था. लोग तानाशाह इंदिरा गांधी से परेशान थे. जिसके बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन चलाया.
इस आंदोलन ने हिला दी सत्ता
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए उन्होंने संपूर्ण क्रांति नाम का आंदोलन चलाया. इसमें 7 क्रांति शामिल थी, जिसमें राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक क्रांति शामिल थी. जयप्रकाश नारायण की एक हुंकार पर युवा उठ खड़े हुए. जेपी घर-घर में क्रांति के पर्याय बन गए. यहां तक कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, लालमुनि चौबे, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील मोदी ये सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे.
बिहार में आंदोलन का प्रभाव
ये तो महज कुछ नाम भर हैं. संपूर्ण क्रांति से निकले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने एक नहीं कई बड़ी रैलियां की. एक बार कर्फ्यू के बीच जयप्रकाश की सभा में लाखों लोग उमड़े. पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. एक लाठी जेपी को भी लगी. हालांकि नानाजी देशमुख ने लाठी का वार अपने हाथ पर ले लिया. लेकिन लाठी के उस प्रहार ने केंद्र की कुर्सी से इंदिरा गांधी को उतार दिया.
गोपालदास नीरज ने लिखा- 'लाठी जो जयप्रकाश पर बरसी बिहार में... लाठी वो हर शहीद के सीने पे पड़ी है... तुमको भले लगे ना लगे और बात है... कालीख बनके देश के माथे पर लगी है....'
जेपी का 1979 में हुआ निधन
जेपी का निधन 8 अक्टूबर, 1979 को उनके निवास स्थान पटना में हुआ था. बताया गया है कि हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था, जिसके चलते उनका निधन हुआ था. उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जेपी को 1998 में मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मनित किया गया. उनके नाम से पटना हवाई अड्डे का नाम रखा गया. इसके अलावा दिल्ली सरकार ने भी एक अस्पताल का नाम लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल रखा.