पटना: झारखंड में महागठबंधन की हुई जीत ने कई राजनीतिक दलों की मनोकामना पूर्ण कर दी है. बात राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव की करें तो उन्होंने अपने दिल की बात को ट्वीट के माध्यम से जनता के सामने रख दिया और कह दिया कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जो महागठबंधन जीता है, उससे मन की मुराद पूरी हो गई.
डूबते को तिनके का सहारा
झारखंड में भले ही राजद के एक विधायक ही जीत कर सदन पहुंचे हो. लेकिन गठबंधन के साथ में रहने से साथ की जो आस जगी है, वह राजद के लिए ठीक उसी तरह से है. जैसे डूबते को तिनके का सहारा. झारखंड में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद एक बात तो साफ हो गई कि बीजेपी की जो नीति और रणनीति बिहार-झारखंड को लेकर थी. अब उसमें उसे बदलाव करना पड़ेगा और इसी बदलाव का फायदा महागठबंधन लेना भी चाहेगा.
बात करने की नहीं थी आजादी
सीधे तौर पर अगर झारखंड की राजनीति को समझे तो राज्य में बीजेपी की सरकार होने के कारण लालू यादव को बहुत सारे झंझावात का सामना करना पड़ता था. जेल मैनुअल के अनुसार बहुत सारी दिक्कतें भी थी. बात करने की आजादी भी नहीं थी. झारखंड में महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कम से कम एक बात तो साफ है कि लालू यादव के लिए जेल में बहुत सारी बंदिशें नहीं होगी. जिसका सीधा फायदा राष्ट्रीय जनता दल को उसकी सियासी राजनीति पर पड़ेगा.
जरूरी है लालू यादव का गाइडेंस
2019 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव के जेल में होने और तेजस्वी यादव के राजनीतिक परिपक्वता और पार्टी को संभालने को लेकर कई सवाल उठ खड़े हुए थे. सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा भी काफी जोरों से थी. लालू यादव की कमी राज्य में पार्टी की नीति को लेकर खल रही है. तेजस्वी यादव जिस राजनीतिक परिपक्वता के मुहाने पर खड़े हैं, उसमें लालू यादव का गाइडेंस जरूरी है. लेकिन लालू यादव के झारखंड के जेल में होने, और झारखंड में बीजेपी की सरकार होने के नाते इन्हें बहुत सारी सहूलियत नहीं मिल पाती थी. झारखंड में महागठबंधन की सरकार के बाद लालू यादव को जेल में तो राहत मिलेगी और यही राहत राष्ट्रीय जनता दल के लिए नए सवेरा का आगाज भी करेगा.
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झारखंड सरकार में मिलेगी आजादी
2020 के विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल तैयारी कर रहे हैं. उसमें राष्ट्रीय जनता दल की भूमिका अहम है. ऐसे में लालू यादव जब खुलकर के तेजस्वी यादव को राजनीति का गुरु मंत्र दे पाएंगे. तो इससे पार्टी, संगठन, चुनाव की नीति, राज्य की रणनीति, यह तमाम चीजें राजद को संगठित करने को लेकर नई दिशा देंगी. लालू यादव के मनोकामना पूर्ण होने के पीछे का सबसे बड़ा सच यही है कि बिहार की जिस गोलबंदी को लेकर लालू यादव आगे बढ़ना चाहते हैं, उसकी आजादी उन्हें झारखंड सरकार में जरूर मिल जाएगी.
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आगे बढ़ेगा लालू के साथ आरजेडी की सियासी सफर
लालू यादव के नहीं होने से बिहार में जो गठबंधन खड़ा हो रहा था, उसमें कई तरह के सवाल उठ जा रहे थे. तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर महागठबंधन के नेताओं में एकमत न होना. साथ ही मुख्यमंत्री पद के दावेदारी को लेकर भी दूसरे गठबंधन के दलों का विभेद के साथ रहना और महागठबंधन का संगठित न हो पाना. तेजस्वी के राजनीतिक जीवन के लिए ठीक नहीं माना जा रहा था. साथ ही इस बात की चर्चा भी शुरू हो गई थी कि लालू यादव के बाद राजद का खेवनहार कौन होगा और इसी पशोपेश में पड़ी पार्टी ने लालू यादव को एक बार फिर राष्ट्रीय जनता दल का अध्यक्ष नवंबर महीने में चुन लिया था. अब जबकि झारखंड में राजनीत की फिजा बदली है, तो इसमें दो राय नहीं कि लालू यादव की सियासी किस्मत और राजद का नया सियासी सफर आगे बढ़ेगा. जो बिहार के लिए राजद की जरूरत भी है और लालू यादव के मनोकामना को पूर्ण करने का नया साल भी.