पटना: राजधानी पटना में छठ पूजा के बाद ठंड की शुरुआत (Winter Starts in Patna) हो गई है. शासन और प्रशासन के द्वारा इस मौसम में गरीबों और असहायों के लिए रैनबसेरे की व्यवस्था की जाती है. ईटीवी भारत की टीम ने रात में की गयी व्यवस्थाओं का जायजा लिया तो देखा कि गरीब मजदूर और रिक्शा चालक खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर (Laborers Sleep in Open Sky) हैं. शहर में अभी तक न तो अलाव की व्यवस्था (No Bonfire in Patna) की गयी है और न ही रैनबसेरे (No Dormitory in Patna) की.
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पटना के गांधी मैदान, स्टेशन, गोलंबर और पुरानी म्यूजियम के पास राज्य के विभिन्न जिलों से आए मजदूर रिक्शा चलाकर, ठेला लगाकर या मजदूरी का काम करके अपना जीवन यापन चलाते हैं. ये लोग रात होने पर सड़क के किनारे फुटपाथ पर किसी तरह खाना बनाकर खाते हैं या कोई दे देता है तो उसे खा लेते हैं. दो वक्त की रोटी मिल जाने के बाद ये लोग प्लास्टिक का बोरा बिछाकर खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं.
गौरतलब है कि दीपावली और छठ पूजा के बाद सर्दी की शुरुआत हो जाती है. दिसंबर में सर्दी अपने पूरे शबाब पर होती है. हालांकि इस बार लोग ठंड से बचने के लिए अलाव का अभी से सहारा लेना शुरू कर दिए हैं.
फुटपाथ पर सो रहे मजदूरों ने बताया कि बारिश और ठंड के मौसम में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. बारिश में किसी शेड के नीचे छुपकर रात गुजारनी पड़ता है. वहीं, ठंड के मौसम में लकड़ी जलाकर या एक चादर-कंबल में रात गुजारनी पड़ती है. मजदूरी करने के लिए पटना में कोई 10 साल से तो कोई 5 साल से रहकर काम कर रहा है. जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण चलता है. उनका कहना है कि वह लोग इतना नहीं कमाते कि रूम किराए पर लेकर रह सकें. अगर रूम किराए पर लेंगे तो घर परिवार को कैसे पालेंगे.
वैशाली के रहने वाले रिक्शा चालक नागेश्वर ने बताया कि वह विगत 13 सालों से राजधानी पटना में रिक्शा चलाते हैं और गांधी मैदान के फुटपाथ पर किसी तरह खाना बनाकर खाते हैं. जिसके बाद सड़क किनारे रिक्शा लगा कर सो जाते हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो मजदूरों की जिंदगी मजबूरी में फुटपाथ पर कटती है और वह फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं. जिससे उनकी जिंदगी के लिए भी खतरा बना रहता है.
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