पटना: मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा का उपचुनाव (Bihar By elections ) दिलचस्प बन गया है. नीतीश के एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी और जदयू के उम्मीदवार पहली बार आमने-सामने हैं. लेकिन, वीआईपी और ओवैसी की पार्टी ने यहां से उम्मीदवार देकर दोनों दलों की टेंशन बढ़ा दी है. 1990 तक कुढ़नी पर सवर्ण उम्मीदवारों का कब्जा रहा है. 90 के बाद से लगातार पिछड़ा वर्ग से आने वाले उम्मीदवार विजयी होते रहे हैं.
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इन जातियों की भूमिकाः जहां बीजेपी और जदयू ने पिछड़ा वर्ग से उम्मीदवार को फिर से उतारा है, तो वहीं ओवैसी की पार्टी ने अल्पसंख्यक उम्मीदवार उतारकर महागठबंधन खेमे में बेचैनी बढ़ा दी है. जबकि पूर्व विधायक साधु शरण शाही के पोते नीलाभ को टिकट देकर वीआईपी ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. कुढ़नी में जातिगत वोटों के समीकरण में कुशवाहा, वैश्य, सहनी, यादव, भूमिहार और अल्पसंख्यक वोट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
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मनोज कुशवाहा को फिर से मौकाः जदयू ने अपने पुराने नेता मनोज कुशवाहा को एक बार फिर से मौका दिया है. ऐसे तो यह आरजेडी की सीटिंग सीट है. पूर्व विधायक अनिल सहनी की सदस्यता समाप्त होने के बाद यह सीट खाली हुई है. लेकिन, आरजेडी ने यह सीट अपने सहयोगी जदयू को दे दिया और जदयू ने मनोज कुशवाहा पर एक बार फिर से दांव लगाया है. मनोज कुशवाहा, उपेंद्र कुशवाहा के भी नजदीकी माने जाते रहे हैं. कुढ़नी में कुशवाहा वोट बैंक अच्छी खासी संख्या में है. जदयू को आरजेडी का यादव वोट बैंक भी मिलने की उम्मीद है. साथ ही अति पिछड़ा वोट बैंक पर भी नजर है. अल्पसंख्यक वोट बैंक पर भी जदयू के तरफ से दावेदारी हो रही है.
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कुढ़नी में सहनी वोट भी महत्वपूर्णः ओवैसी की पार्टी ने गुलाम मुर्तजा अंसारी को उम्मीदवार बनाकर जदयू की परेशानी बढ़ा दी है. गुलाम मुर्तजा ऑल इंडिया मोमिन कांग्रेस से जुड़े हैं एवं पूर्व जिला पार्षद भी रहे हैं. इसलिए इनकी क्षेत्र में पकड़ है. अल्पसंख्यक वोट का बड़ा हिस्सा काट सकते हैं. साथ ही अनिल सहनी महागठबंधन के फैसले से खुश नहीं है. मोकामा में अनंत सिंह की सदस्यता समाप्त होने के बाद उनकी पत्नी को चुनाव लड़ाया गया था. अधिकांश उपचुनाव में उनके परिवार के सदस्यों को ही मौका दिया गया था पर अनिल सहनी के मामले में ऐसा नहीं हुआ. अनिल सहनी इसको लेकर नाराज हैं. इसका नुकसान जदयू को हो सकता है, क्योंकि कुढ़नी में सहनी वोट भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
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केदार गुप्ता पर दांवः बीजेपी ने 2020 में चुनाव लड़ने वाले केदार गुप्ता को ही फिर से मौका दिया है. केदार गुप्ता के लिए पार्टी के पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा ने काफी प्रयास किया था. साथ ही पार्टी के कई नेता केदार गुप्ता को ही टिकट दिलाना चाहते थे. ऐसे सूत्रों के अनुसार सुरेश शर्मा के बेटे ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से मिलकर जदयू के टिकट के लिए प्रयास किया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी. लेकिन सुरेश शर्मा केदार गुप्ता को ही चुनाव लड़ाने के पक्ष में थे. ऐसे पार्टी के नेता कुछ और उम्मीदवारों को लेकर मंथन भी करते रहे. दिल्ली में कई राउंड की बैठक भी हुई, लेकिन केदार गुप्ता के नाम पर ही मुहर लगी.
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चिराग पासवान से उम्मीदः बीजेपी के लिए वीआईपी के मुकेश सहनी ने मुश्किल खड़ी कर दी है. वीआईपी ने पूर्व विधायक साधु शरण शाही के बेटे नीलाभ को अपना उम्मीदवार बनाया है. नीलाभ भूमिहार वर्ग से आते हैं, इसलिए भूमिहारों का वोट का बड़ा हिस्सा काट सकते हैं. साधु शरण लगातार चार बार कुढ़नी से विधायक रह चुके हैं. अंतिम बार 1990 में विधायक बने थे. उसके बाद मनोज कुशवाहा जीतते रहे. 2015 में केदार गुप्ता महागठबंधन के खिलाफ चुनाव लड़े थे और चुनाव जीते भी थे. इसलिए नीलाभ के उम्मीदवार बनाए जाने से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं. बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि चिराग पासवान ने समर्थन किया है और इसलिए पासवान वोट बीजेपी के पक्ष में जा सकता है.
क्या है जातीय समीकरण: कुढ़नी में कुल 3 लाख 10 हजार 987 मतदाता हैं. जातीय समीकरण की बात करें तो पिछड़े वर्ग में पहले नंबर पर लगभग 40 हजार मतदाताओं के साथ कुशवाहा जाति है. दूसरे नंबर पर वैश्य समाज के लोग आते हैं, जिनकी संख्या करीब 33 हजार के आसपास है. इसके अलावा 25 हजार मतदाताओं के साथ सहनी समाज तीसरे नंबर पर है. चौथे नम्बर पर करीब 23 हजार मतदाताओं के साथ यादव जाति के लोग हैं. इसके अलावा कुर्मी जाति के वोटर भी अच्छी खासी संख्या में हैं. वहीं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मतदाताओं की संख्या लगभग 19 प्रतिशत है. इसमें 15,000 से अधिक पासवान जाति के लोग हैं. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 25 हज़ार के आसपास है. इस विधानसभा क्षेत्र में अगड़ी जाति के करीब 45 हज़ार मतदाता भी मौजूद है जिसमें 30,000 से अधिक भूमिहार है.
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नेताओं की रायः जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का कहना है किसी पार्टी को चुनाव लड़ने पर हम तो कुछ कह नहीं सकते हैं. लेकिन जनता को जरूर फैसला लेना चाहिए कि कौन वोट काटेगा और कौन विनर रहेगा. वीआईपी अलग पार्टी है. मोकामा और गोपालगंज में जरूर हम लोगों का समर्थन किया था, लेकिन इस बार तो उम्मीदवार उतारा है. AIMIM के उम्मीदवार उतारने पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि गोपालगंज में अल्पसंख्यक वोट जरूर AIMIM को मिला था. लेकिन, जनता को देखना है और बीजेपी के खिलाफ जो लोग हैं उन्हें एकजुट होकर वोट करना होगा. बीजेपी प्रवक्ता अरविंद सिंह वीआईपी और एआईएमआईएम के चुनाव में पूछने पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं लेकिन यह जरूर कह रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए कुढ़नी उपचुनाव का रिजल्ट आश्रम पहुंचाने वाला होगा. आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव का कहना है कि जिसके पास कोई एजेंडा नहीं हो वह इसी तरह के हथकंडे अपनाते हैं.
'जनता को फैसला लेना चाहिए कि कौन वोट काटेगा और कौन विनर रहेगा. वीआईपी अलग पार्टी है. गोपालगंज में अल्पसंख्यक वोट जरूर AIMIM को मिला था. लेकिन, जनता को देखना है और बीजेपी के खिलाफ जो लोग हैं उन्हें एकजुट होकर वोट करना होगा'-उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू संसदीय बोर्ड
'मोकामा में हारते हारते बचे, गोपालगंज में तो हार ही गये अब जो प्रतिष्ठा बची है वो इस चुनाव में खत्म हो जाएगी. नीतीश कुमार के लिए कुढ़नी उपचुनाव का रिजल्ट आश्रम पहुंचाने वाला होगा'- अरविंद सिंह, प्रवक्ता बीजेपी