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बचपन छीन रहा इंटरनेट! जानिए इस लत से छुटकारा पाने के लिए विशेषज्ञों की सलाह

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Published : Aug 14, 2021, 6:54 PM IST

ऑनलाइन पढ़ाई की वजह से बच्चों एवं किशोरों को स्मार्टफोन की लत गई है. लेकिन स्मार्टफोन पर आने वाले अश्ललील विज्ञापन व कंटेंट जब एक उल्टी तस्वीर पेश करने लगे तो चिंता और सवाल दोनों जायज हैं. जानिए इससे बचने को लेकर विशेषज्ञों की सलाह....

स्मार्टफोन से उम्र से पहले जवान हो रहे बच्चे
स्मार्टफोन से उम्र से पहले जवान हो रहे बच्चे

पटना : कोरोना काल (Corona Pandemic) के बाद बच्चों की पढ़ाई काफी हद तक ऑनलाइन हो गई है. माता-पिता अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को स्मार्टफोन (Smartphone) पकड़ा देते हैं. खेलकूद की गतिविधियां भी बंद हैं. ऐसे में मोबाइल पर लगातार आते अश्लील (Porn Content On Mobile) विज्ञापनों के कंटेंट और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर खुलेआम नग्नता वाले सीन की वजह से बच्चे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. बच्चे उम्र से (Premature Child) पहले जवान हो जा रहे हैं. यानी कहे तो जिन बातों को एक सही उम्र पर जानकारी होनी चाहिए, उसे वे काफी पहले ही जान जाते हैं. जानिए ऐसे स्थिति से बचने के लिए विशेषज्ञ क्या सलाह दे रहे हैं.

ये भी पढ़े : बिहार: पढ़ाई में डिजिटल डिवाइस बना रोड़ा, डेढ़ करोड़ बच्चों की पहुंच से दूर ऑनलाइन एजुकेशन

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (AN Sinha Institute of Social Science) से जुड़े समाजशास्त्री बीएन प्रसाद ने बताया कि स्मार्टफोन की वजह से बच्चों को फिजिकल और मेंटल दोनों हेल्थ पर असर पड़ रहा है. मनुष्य और अन्य प्राणियों में फर्क सिर्फ संस्कृति का ही है. अगर संस्कृति नहीं रही तो मनुष्य भी बाकी अन्य प्राणियों जैसा ही है. एक बच्चा जन्म लेता है तो वह प्राणी मात्र ही रहता है. मगर मनुष्य बनने के लिए संस्कृतियों को आत्मसात करना पड़ता है. जिसे वह परिवार समाज और स्कूल से सीखता है. धीरे-धीरे सामाजिकता के द्वारा वह अपने समाज के मूल्यों के साथ उसके व्यक्तित्व का विकास होता है.

'हमारे जो परंपरागत सामाजिक मूल्य हैं, जिसमें विभिन्न आश्रम बनाए गए हैं. ब्रह्मचर्य आश्रम, जिसमें बच्चे सामाजिक गुणों को सीखते हैं. इसके बाद गृहस्थ आश्रम में प्रवेश होता है. जिससे जुड़ी जानकारी एक विशेष अवस्था में सिखाई जाती है. लेकिन जिस प्रकार से इंटरनेट और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता परोसी जा रही है. इससे जो जानकारी बच्चों को गृहस्थ आश्रम में प्राप्त होनी चाहिए. वह उन्हें ब्रह्मचर्य आश्रम में ही मिल जा रहा है. जिसका समाज पर गलत असर हो रहा है.' :- डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

इसे भी पढ़ें : मॉनसून में बढ़ जाती है बीमारियां, जानिए बचाव के लिए क्या कह रहे हैं डॉक्टर

समाजशास्त्री बीएन प्रसाद ने बताया कि इंटरनेट से समाज की पूरी सामाजिक संरचना विघटित हो रही है. आज के समय बच्चों पर माता-पिता का नियंत्रण न के बराबर रह गया है. बच्चों पर नियंत्रण इंटरनेट और स्मार्टफोन फोन का हो गया है. इंटरनेट और टेलीविजन मोबाइल फोन इत्यादि पर जो बच्चे देख रहे हैं. उसे ही सही मान रहे हैं. अपने माता-पिता की बातों को अनसुना कर रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि इंटरनेट पर सरकार लगाम लगाए और जिस प्लेटफॉर्म से अश्लीलता परोसी जा रही है उस पर सख्ती से कार्रवाई हो.

वहीं, पटना पीएमसीएच (PMCH) के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. एन. के. सिंह ने कहा कि बच्चों के हाथ में आजकल हमेशा मोबाइल रह रहा है. ऐसे में जो अश्लील विज्ञापन के कंटेंट का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है या फिर अच्छा असर पड़ रहा है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा उसे किस रूप में ले रहे हैं. बच्चे का सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि भी काफी महत्वपूर्ण है.

ये भी पढ़ें : कोरोना के खौफ से उड़ रही लोगों की नींद, डॉक्टर की सलाह- महामारी को हराने के लिए पॉजिटिविटी जरूरी

'कम उम्र में बच्चे असली चीजों को देख रहे हैं. ऐसे में उन्हें एक उबाल आ रहा है. यह उबाल गलत आदत में तब्दील हो जा रहा है. जैसे कि कोई ड्रग एडिक्ट हो जा रहा है तो कोई किसी अन्य बुरी आदत का शिकार हो जा रहा है. कई बार इस उबाल में बच्चे हिंसक रूप अख्तियार कर ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि सरकार इंटरनेट को कंट्रोल करें. इंटरनेट पर बच्चे वही देख सके जो उनके लिए जरूरी है. साथ ही इंफॉर्मेशन भी छनकर आए.' : डॉ. एनके सिंह, मनोचिकित्सक

डॉ. एनके सिंह ने बताया कि अनकंट्रोल इंफॉर्मेशन समाज के लिए विस्फोटक रूप ले सकता है. इसके लिए समय रहते सचेत होने की जरूरत है. सरकार को चाहिए कि इसको लेकर समाजशास्त्रियों और मनोचिकित्सक और शिक्षकों से राय मशविरा कर नीति बनाएं कि किस प्रकार के जरूरी इंफॉर्मेशन ही इंटरनेट पर उपलब्ध हो सके और बच्चे क्या देख सकें जिससे वे सही आदत सीखें.

पटना : कोरोना काल (Corona Pandemic) के बाद बच्चों की पढ़ाई काफी हद तक ऑनलाइन हो गई है. माता-पिता अपनी सहूलियत के लिए बच्चों को स्मार्टफोन (Smartphone) पकड़ा देते हैं. खेलकूद की गतिविधियां भी बंद हैं. ऐसे में मोबाइल पर लगातार आते अश्लील (Porn Content On Mobile) विज्ञापनों के कंटेंट और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर खुलेआम नग्नता वाले सीन की वजह से बच्चे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं. बच्चे उम्र से (Premature Child) पहले जवान हो जा रहे हैं. यानी कहे तो जिन बातों को एक सही उम्र पर जानकारी होनी चाहिए, उसे वे काफी पहले ही जान जाते हैं. जानिए ऐसे स्थिति से बचने के लिए विशेषज्ञ क्या सलाह दे रहे हैं.

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एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (AN Sinha Institute of Social Science) से जुड़े समाजशास्त्री बीएन प्रसाद ने बताया कि स्मार्टफोन की वजह से बच्चों को फिजिकल और मेंटल दोनों हेल्थ पर असर पड़ रहा है. मनुष्य और अन्य प्राणियों में फर्क सिर्फ संस्कृति का ही है. अगर संस्कृति नहीं रही तो मनुष्य भी बाकी अन्य प्राणियों जैसा ही है. एक बच्चा जन्म लेता है तो वह प्राणी मात्र ही रहता है. मगर मनुष्य बनने के लिए संस्कृतियों को आत्मसात करना पड़ता है. जिसे वह परिवार समाज और स्कूल से सीखता है. धीरे-धीरे सामाजिकता के द्वारा वह अपने समाज के मूल्यों के साथ उसके व्यक्तित्व का विकास होता है.

'हमारे जो परंपरागत सामाजिक मूल्य हैं, जिसमें विभिन्न आश्रम बनाए गए हैं. ब्रह्मचर्य आश्रम, जिसमें बच्चे सामाजिक गुणों को सीखते हैं. इसके बाद गृहस्थ आश्रम में प्रवेश होता है. जिससे जुड़ी जानकारी एक विशेष अवस्था में सिखाई जाती है. लेकिन जिस प्रकार से इंटरनेट और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता परोसी जा रही है. इससे जो जानकारी बच्चों को गृहस्थ आश्रम में प्राप्त होनी चाहिए. वह उन्हें ब्रह्मचर्य आश्रम में ही मिल जा रहा है. जिसका समाज पर गलत असर हो रहा है.' :- डॉ. बीएन प्रसाद, समाजशास्त्री

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समाजशास्त्री बीएन प्रसाद ने बताया कि इंटरनेट से समाज की पूरी सामाजिक संरचना विघटित हो रही है. आज के समय बच्चों पर माता-पिता का नियंत्रण न के बराबर रह गया है. बच्चों पर नियंत्रण इंटरनेट और स्मार्टफोन फोन का हो गया है. इंटरनेट और टेलीविजन मोबाइल फोन इत्यादि पर जो बच्चे देख रहे हैं. उसे ही सही मान रहे हैं. अपने माता-पिता की बातों को अनसुना कर रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि इंटरनेट पर सरकार लगाम लगाए और जिस प्लेटफॉर्म से अश्लीलता परोसी जा रही है उस पर सख्ती से कार्रवाई हो.

वहीं, पटना पीएमसीएच (PMCH) के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. एन. के. सिंह ने कहा कि बच्चों के हाथ में आजकल हमेशा मोबाइल रह रहा है. ऐसे में जो अश्लील विज्ञापन के कंटेंट का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है या फिर अच्छा असर पड़ रहा है. ये इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा उसे किस रूप में ले रहे हैं. बच्चे का सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि भी काफी महत्वपूर्ण है.

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'कम उम्र में बच्चे असली चीजों को देख रहे हैं. ऐसे में उन्हें एक उबाल आ रहा है. यह उबाल गलत आदत में तब्दील हो जा रहा है. जैसे कि कोई ड्रग एडिक्ट हो जा रहा है तो कोई किसी अन्य बुरी आदत का शिकार हो जा रहा है. कई बार इस उबाल में बच्चे हिंसक रूप अख्तियार कर ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि सरकार इंटरनेट को कंट्रोल करें. इंटरनेट पर बच्चे वही देख सके जो उनके लिए जरूरी है. साथ ही इंफॉर्मेशन भी छनकर आए.' : डॉ. एनके सिंह, मनोचिकित्सक

डॉ. एनके सिंह ने बताया कि अनकंट्रोल इंफॉर्मेशन समाज के लिए विस्फोटक रूप ले सकता है. इसके लिए समय रहते सचेत होने की जरूरत है. सरकार को चाहिए कि इसको लेकर समाजशास्त्रियों और मनोचिकित्सक और शिक्षकों से राय मशविरा कर नीति बनाएं कि किस प्रकार के जरूरी इंफॉर्मेशन ही इंटरनेट पर उपलब्ध हो सके और बच्चे क्या देख सकें जिससे वे सही आदत सीखें.

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