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आप कला और थियेटर के शौकीन हैं तो कालिदास रंगालय को जरूर जानिए

अगर आप कला और थियेटर की दुनिया को पसंद करते हैं या इसमें रूचि रखते हैं तो आपको पटना के कालिदास रंगालय आपके लिए बेहतर जगह है. हालांकि इन दिनों ये सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेल रहा है.

कालिदास रंगालय
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Published : Jun 1, 2019, 7:35 AM IST

Updated : Jun 1, 2019, 7:54 AM IST

पटना: कालिदास रंगालय बिहार का सबसे पुराना कलाकारों का मंच है. बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए साल 1972 में राज्य सरकार ने बिहार आर्ट थियेटर को 99 साल की लीज पर दि थी. 15 अगस्त 1983 को थिएटर हॉल का उद्घाटन हुआ. इसे अनिल मुखर्जी ने लोगों से चंदा मांग कर बनाया था.

सरकारी उपेक्षाओं का हो रहा शिकार
हालांकि इन दिनों कालिदास रंगालय सरकारी उपेक्षाओं का शिकार है. कभी राज्य सरकार द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रम यहीं होते थे. आज आलम ये है कि सरकार के कई आयोजनों में इसे जगह तक नहीं मिलती है. रंगालय परिसर में लगे होर्डिंग से किसी तरह यहां के कर्मियों का खर्चा निकल पाता है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

कैसे पड़ा कालीदास रंगालय नाम?
इसका नाम कालिदास रंगालय होने का भी अपना ही इतिहास है. राज्य सरकार ने जब बिहार आर्ट थिएटर को जब यह जमीन दे रही थी तो उसे 2 नाम में से ही एक नाम चुनना था. एक नाम था गांधी ऑडिटोरियम और दूसरा कालिदास रंगालय. चुकी कालिदास नाट्य विद्या से जुड़े रहे थे इसलिए इसके संस्थापक अनिल मुखर्जी ने कालिदास रंगालय नाम चुना.

जानिए कब होता है आयोजन
कालिदास रंगालय का सभी कमरा कालिदास के शकुंतला से प्रभावित है. सभी कमरों के नाम शकुंतला से जुड़े हैं जैसे शकुंतला रंगमंच, प्रियंवादा रंगमंच, अनुसूया गेस्ट हाउस और अन्नपूर्णा कैफिटेरिया. बता दें कि कालिदास रंगालय में प्रबंधन की ओर से कुल 6 आयोजन होते हैं.

  • 14 से 20 जनवरी अनिल कुमार मुखर्जी जयंती.
  • 27 से 29 मार्च वर्ल्ड थिएटर डे.
  • 4 से 6 अप्रैल हिंदी रंगमंच दिवस.
  • 8 से 12 मई रविंद्र जयंती उत्सव.
  • 25 से 29 जून फाउंडेशन डे ऑफ बिहार आर्ट थियेटर.
  • 31 जुलाई से 1 अगस्त प्रेम चंद्र जयंती.
  • 26 से 29 नवंबर उत्सव मौसम.

कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हुई स्थापना
बिहार सरकार की सहयोग से बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना हुई थी. कालिदास रंगालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री प्रदीप गांगुली बताते हैं कि आज तक इसे बिहार सरकार की ओर से कुल 5 लाख और केंद्र सरकार की ओर से 3 लाख की सहायता निधि प्रदान की गई है. रंगालय के खर्चे और कर्मचारियों के वेतन पर बताते हैं कि रंगालय परिसर में हार्डिंग के कुछ साइट हैं जहां लगे होर्डिंग से पैसा आता है. जिसके बदौलत रंगालय के बिजली बिल से जुड़े सभी खर्चे और 12 की संख्या में मौजूद यहां के कर्मियों का भुगतान होता है.

देश के हर कोने से आए कलाकार करते हैं परफार्म
यहां देश के हर कोने से कलाकार आकर अपनी परफॉर्मेंस करते हैं. यहां सामान्यतः हर रोज किसी ना किसी नाटक का मंचन होता है. कलाकार यहां के हॉल को 3 से 5 हजार में बुक करते हैं और अपनी नाटक का परफॉर्मेंस देते हैं. यह कैंपस में नुक्कड़ नाटक भी देखने को मिलते हैं. कालिदास रंगाले से जुड़ने के लिए इसका परीक्षा पास करना होता है, इसका आवेदन फार्म अप्रैल में आता है.

पटना: कालिदास रंगालय बिहार का सबसे पुराना कलाकारों का मंच है. बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए साल 1972 में राज्य सरकार ने बिहार आर्ट थियेटर को 99 साल की लीज पर दि थी. 15 अगस्त 1983 को थिएटर हॉल का उद्घाटन हुआ. इसे अनिल मुखर्जी ने लोगों से चंदा मांग कर बनाया था.

सरकारी उपेक्षाओं का हो रहा शिकार
हालांकि इन दिनों कालिदास रंगालय सरकारी उपेक्षाओं का शिकार है. कभी राज्य सरकार द्वारा आयोजित सभी कार्यक्रम यहीं होते थे. आज आलम ये है कि सरकार के कई आयोजनों में इसे जगह तक नहीं मिलती है. रंगालय परिसर में लगे होर्डिंग से किसी तरह यहां के कर्मियों का खर्चा निकल पाता है.

ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट

कैसे पड़ा कालीदास रंगालय नाम?
इसका नाम कालिदास रंगालय होने का भी अपना ही इतिहास है. राज्य सरकार ने जब बिहार आर्ट थिएटर को जब यह जमीन दे रही थी तो उसे 2 नाम में से ही एक नाम चुनना था. एक नाम था गांधी ऑडिटोरियम और दूसरा कालिदास रंगालय. चुकी कालिदास नाट्य विद्या से जुड़े रहे थे इसलिए इसके संस्थापक अनिल मुखर्जी ने कालिदास रंगालय नाम चुना.

जानिए कब होता है आयोजन
कालिदास रंगालय का सभी कमरा कालिदास के शकुंतला से प्रभावित है. सभी कमरों के नाम शकुंतला से जुड़े हैं जैसे शकुंतला रंगमंच, प्रियंवादा रंगमंच, अनुसूया गेस्ट हाउस और अन्नपूर्णा कैफिटेरिया. बता दें कि कालिदास रंगालय में प्रबंधन की ओर से कुल 6 आयोजन होते हैं.

  • 14 से 20 जनवरी अनिल कुमार मुखर्जी जयंती.
  • 27 से 29 मार्च वर्ल्ड थिएटर डे.
  • 4 से 6 अप्रैल हिंदी रंगमंच दिवस.
  • 8 से 12 मई रविंद्र जयंती उत्सव.
  • 25 से 29 जून फाउंडेशन डे ऑफ बिहार आर्ट थियेटर.
  • 31 जुलाई से 1 अगस्त प्रेम चंद्र जयंती.
  • 26 से 29 नवंबर उत्सव मौसम.

कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हुई स्थापना
बिहार सरकार की सहयोग से बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना हुई थी. कालिदास रंगालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री प्रदीप गांगुली बताते हैं कि आज तक इसे बिहार सरकार की ओर से कुल 5 लाख और केंद्र सरकार की ओर से 3 लाख की सहायता निधि प्रदान की गई है. रंगालय के खर्चे और कर्मचारियों के वेतन पर बताते हैं कि रंगालय परिसर में हार्डिंग के कुछ साइट हैं जहां लगे होर्डिंग से पैसा आता है. जिसके बदौलत रंगालय के बिजली बिल से जुड़े सभी खर्चे और 12 की संख्या में मौजूद यहां के कर्मियों का भुगतान होता है.

देश के हर कोने से आए कलाकार करते हैं परफार्म
यहां देश के हर कोने से कलाकार आकर अपनी परफॉर्मेंस करते हैं. यहां सामान्यतः हर रोज किसी ना किसी नाटक का मंचन होता है. कलाकार यहां के हॉल को 3 से 5 हजार में बुक करते हैं और अपनी नाटक का परफॉर्मेंस देते हैं. यह कैंपस में नुक्कड़ नाटक भी देखने को मिलते हैं. कालिदास रंगाले से जुड़ने के लिए इसका परीक्षा पास करना होता है, इसका आवेदन फार्म अप्रैल में आता है.

Intro:कालिदास रंगालय बिहार का सबसे पुराना कलाकारों का मंच है. बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए साल 1972 में राज्य सरकार ने बिहार आर्ट थियेटर को 99 साल की लीज पर दि थी. 15 अगस्त 1983 को थिएटर हॉल का उद्घाटन हुआ. इसे अनिल मुखर्जी ने लोगों से चंदा मांग कर बनाया था.
इसका नाम कालिदास रंगालय होने का भी अपना ही इतिहास है. राज्य सरकार ने जब बिहार आर्ट थिएटर को जब यह जमीन दे रही थी तो उसे 2 नाम में से ही एक नाम चुनना था. एक नाम था गांधी ऑडिटोरियम और दूसरा कालिदास रंगालय. चुकी कालिदास नाट्य विद्या से जुड़े रहे थे इसलिए इसके संस्थापक अनिल मुखर्जी ने कालिदास रंगालय नाम चुना.


Body:कालिदास रंगालय का सभी कमरा कालिदास के शकुंतला से प्रभावित है. सभी कमरों के नाम शकुंतला से जुड़े हैं जैसे शकुंतला रंगमंच, प्रियंवादा रंगमंच, अनुसूया गेस्ट हाउस और अन्नपूर्णा कैफिटेरिया.
कालिदास रंगालय में प्रबंधन की ओर से कुल 6 आयोजन होते हैं
- 14 से 20 जनवरी अनिल कुमार मुखर्जी जयंती
- 27 से 29 मार्च वर्ल्ड थिएटर डे
- 4 से 6 अप्रैल हिंदी रंगमंच दिवस
- 8 से 12 मई रविंद्र जयंती उत्सव
- 25 से 29 जून फाउंडेशन डे ऑफ बिहार आर्ट थियेटर
- 31 जुलाई से 1 अगस्त प्रेम चंद्र जयंती
- 26 से 29 नवंबर उत्सव मौसम


Conclusion:बिहार सरकार की सहयोग से बिहार में कला संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना हुई थी. कालिदास रंगालय के ज्वाइंट सेक्रेट्री प्रदीप गांगुली बताते हैं कि आज तक इसे बिहार सरकार की ओर से कुल 5 लाख और केंद्र सरकार की ओर से 3 लाख की सहायता निधि प्रदान की गई है. रंगालय के खर्चे और कर्मचारियों के वेतन पर बताते हैं कि रंगालय परिसर में हार्डिंग के कुछ साइट है जहां लगे होर्डिंग से पैसा आता है जिसके बदौलत रंगालय के बिजली बिल से जुड़े सभी खर्चे और 12 की संख्या में मौजूद यहां के कर्मियों का भुगतान होता है. यहां देश के हर कोने से कलाकार आकर अपनी परफॉर्मेंस करते हैं. यहां सामान्यतः हर रोज किसी ना किसी नाटक का मंचन होता है. कलाकार यहां के हॉल को 3 से 5 हजार में बुक करते हैं और अपनी नाटक का परफॉर्मेंस देते हैं. यह कैंपस में नुक्कड़ नाटक भी देखने को मिलते हैं.

कालिदास रंगाले से जुड़ने के लिए इसका परीक्षा पास करना होता है, इसका आवेदन फार्म अप्रैल में आता है.
Last Updated : Jun 1, 2019, 7:54 AM IST
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