पटनाः हिंदू धर्म में महिलाएं संतान की लिए लंबी उम्र की कामना के लिए जितिया व्रत करती हैं. इसबार जितिया व्रत (Jitiya Vrat Date and Time) कब है और जितिया व्रत का शुभ मुहुर्त (Jitiya Vrat Shubh Muhurt) क्या है, इसके बारे में आचार्य मनोज मिश्रा से जानकारी दी. मनोज मिश्रा के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को जितिया व्रत किया जाता है और नवमी के दिन पारण होता है. उन्होंने इसके पूजा का शुभ मुहुर्त के बारे में जानकारी दी.
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जितिया व्रत और पारण का मुहुर्तः मनोज मिश्रा के अनुसार इस बार कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 6 अक्टूबर को शुभ 9:25 मिनट में प्रवेश कर रही है. इसलिए 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को जितिया व्रत का पूजन किया जाएगा. 7 अक्टूबर दिन शनिवार को 10:21 पर समापन होगा और इस वक्त अष्टमी रहेगी. यानि 10:21 के बाद नामित तिथि होगी उसके बाद ही पारण किया जाएगा.
तीन दिनों का होता है व्रतः आचार्य के अनुसार जितिया व्रत तीन दिनों का होता है. पहले दिन नहाए खाए से शुरू होता है. इस बार 5 अक्टूबर को जितिया का नहाय खाए होगा. 6 अक्टूबर को महिलाएं पुत्र की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखेंगी और 7 अक्टूबर को पारण करेंगी. जिस तरह से छठ के महान पर्व का अनुष्ठान होता है, ठीक उसी प्रकार जितिया व्रत का भी अनुष्ठान होता है. नहाए खाए के दिन पूजा पाठ करके बिना लहसुन-प्याज का भोजन करना चाहिए.
जितिया व्रत का महत्वः मनोज मिश्रा ने बताया कि पूरे भारतवर्ष की महिलाएं जितिया व्रत करती हैं. पुत्र की रक्षा और लंबी उम्र के लिए महिलाएं यह व्रत रखती हैं. यह व्रत बहुत ही कठिन व्रत माना गया है. उन्होंने कहा कि व्रत शुरू होने के साथ महिला निर्जला रहती हैं. मान्यता है कि अगर व्रती एक बूंद पानी भी पी लेती हैं तो यह व्रत टूट जाता है. इसका कोई फल नहीं मिलता है. व्रत भंग हो जाता है तो जीवन काल में इस व्रत फिर नहीं किया जाता है.
जितिया व्रत की कथाः जितिया व्रत से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुईं है. मान्यता है कि इस व्रत का संबंध महाभारत काल से है. युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गया. उसने पांच लोगों की हत्या कर दी. उसे लगा कि उसने पांडवों को मार दिया, लेकिन पांडव जिंदा थे. जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार आया है.
उत्तरा के गर्भ में मृत बच्चा हुआ जीवितः जब इसकी जानकारी अर्जुन को हुई तो वह क्रोधित हो गया और अश्वथामा को बंदी बनाकर दिव्य मणि को छीन लिया. अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे संतान को मारने की योजना बनाई. उसने बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया. लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था. इसलिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा के अजन्मे संतान को गर्भ में ही फिर से जीवित कर दिया.
भगवान श्रीकृष्ण की होती है पूजाः गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से इस तरह उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका पड़ा. तब से जितिया व्रत किया जा रहा है. महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु के लिए 24 घंटे का निर्जला व्रत करती हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा अर्चना की जाती है. क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने ही उत्तरा के पुत्र को जीवित किए थे.