पटना : बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) ने पहले राज्यसभा और फिर विधान परिषद के लिए ऐसे कार्यकर्ताओं (MLC Election in Bihar) को टिकट देकर नया ट्रेंड शुरू किया, जो तीन दशक से पार्टी से जुड़े हुए हैं. पार्टी में इस को लेकर चर्चा हो रही है. पुराने कार्यकर्ताओं की उम्मीद एक बार फिर से जगी है. आमतौर पर यह आरोप लगता रहा है कि राज्यसभा और विधान परिषद में अधिकांशत: धनबल वाले लोगों को ही पार्टी पसंद करती है. लेकिन, जदयू के नए प्रयोग के बाद अन्य दलों के लिए भी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट देना मजबूरी हो गया है. यही कारण है कि बिहार विधान परिषद के 7 सीटों पर हो रहे चुनाव में सभी नए चेहरे देखने को मिल रहे हैं. सभी अपने अपने दल के पुराने कार्यकर्ता हैं.
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जेडीयू के नए ट्रेंड से नई शुरूआत : जदयू ने राज्यसभा के लिए पहले कर्नाटक के अनिल हेगड़े और झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो का चुनाव किया. दोनों पार्टी के लिए पिछले तीन दशक से काम करते रहे हैं. अब विधान परिषद के 2 सीटों पर भी अफाक अहमद और रविंद्र सिंह का चयन कर पार्टी ने एक नया ट्रेंड शुरू किया है. अफाक अहमद और रविंद्र सिंह जी पिछले तीन दशक से पार्टी से जुड़े रहे हैं. इसको लेकर पार्टी के कार्यकर्ताओं में काफी उत्साह है. पार्टी के कार्यकर्ता से लेकर सांसद तक इन फैसलों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ (Bihar Politics) कर रहे हैं.
फैसले से कार्यकर्ताओं में जोश: जदयू के अरविंद कुमार मौर्य का कहना है कि पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट मिलने से सीना चौड़ा हो जाता है. जैसे ही हम लोगों को पता चला रविंद्र प्रसाद सिंह को टिकट दिया गया है, बधाई देने पार्टी कार्यालय पहुंच गए. पार्टी के कार्यकर्ताओं को इससे लगता है कि उन्हें भी राज्यसभा और विधान परिषद जाने का भविष्य में मौका मिलेगा. वहीं, जदयू सांसद चंदेश्वर सिंह चंद्रवंशी का कहना है कि पार्टी के फैसले से संगठन को मजबूती मिलेगी. कार्यकर्ताओं में इसको लेकर काफी उत्साह है.
'एक कार्यकर्ता को जब टिकट मिलता है तो उसका सीना चौड़ा हो जाता है. जब मुझे पता चला कि रविन्द्र सिंह को टिकट मिला है तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. सुबह उठकर मैं रविन्द्र सिंह से मिलने चला आया. इसका असर ये होगा कि कार्यकर्ताओं में जोश और जगेगा और वो भी देखेंगे कि अगर वो मेहनत करेंगे और पार्टी से जुड़े रहेंगे तो वो भी एक दिन एमपी एमएलए बन सकते हैं.'- अरविन्द कुमार मौर्य, जेडीयू कार्यकर्ता
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का कहना है कि- 'ये आम धारणा है कि पैसे वालों को ही राज्यसभा और विधान परिषद भेजा जाता रहा है. लेकिन, जदयू ने एक नया ट्रेंड सेट किया है. इसके कारण दूसरी पार्टियों को भी अपने कार्यकर्ताओं को टिकट देना मजबूरी हो गया है. बिना कार्यकर्ता के कोई भी पार्टी जीवंत नहीं रह सकती है.'
बिहार विधान परिषद के 7 सीटों पर चुनाव हो रहा है. आरजेडी के 3, जदयू के 2 और बीजेपी के 2 यानी कुल 7 उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं. आरजेडी के उम्मीदवार ने नॉमिनेशन भी कर दिया है. सातों नए चेहरे हैं और सभी अपने दल के पुराने कार्यकर्ता हैं. 2020 चुनाव में जदयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी में कई प्रयोग किये हैं. उम्मीदवारों के चयन में भी अब पुराने कार्यकर्ताओं को तरजीह देकर मायूस कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश की है. इसका कितना लाभ मिलेगा यह तो आने वाले चुनाव में पता चलेगा. लेकिन, फिलहाल जदयू के फैसले से राजनीति गलियारों में पुराने कार्यकर्ताओं को लेकर चर्चा जरूर हो रही है.
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