पटना: शराबबंदी कानून में संशोधन ( Amendment In Bihar Liquor Law ) को लेकर मद्य निषेध विभाग तैयारी कर रहा है. हालांकि यह प्रारंभिक स्थिति में है लेकिन, इसके बारे में जदयू के नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार (jdu leader niraj kumar on Liquor Law) का कहना है कि, शराबबंदी कानून में प्रस्तावित बदलाव विभागीय समीक्षा इसकी कोई अद्यतन जानकारी मुझे नहीं है.
नीरज कुमार ने कहा कि, मुझे केवल यह जानकारी है कि शराबबंदी कानून प्रभावी है और मुझे चिंता इस बात की होती है कि, शराबबंदी जैसे सवाल पर अगर दूसरे राज्यों में भी जहां शराबबंदी लागू है वहां भी जहरीली शराब से मौत होती है लेकिन मैंने कभी राष्ट्रीय स्तर पर डिबेट जहरीली शराब मौत के सवाल पर नहीं देखा है.
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"बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में इतना बड़ा ह्यूमन चेन, सर्वदलीय सहमति, सबका संकल्प और उसके आलोक में लिए गए फैसले पर काम हो रहा है. लेकिन राजनीतिक लाभ हानि के अनुसार लोक तर्क बदलते रहते हैं. बिहार में शराबबंदी का फैसला अडिग है और बिहार में यह लागू रहेगा."- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जदयू
बता दें कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने शराबबंदी कानून में संशोधन या मद्य निषेध कानून (bihar liquor prohibition review) की समीक्षा की मांग की है. इस संबंध में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने कहा था कि, मांझी हमारे अभिभावक हैं और एनडीए के महत्वपूर्ण घटक दल के प्रमुख हैं. उन्होंने अपने विचार और सलाह दिए हैं लेकिन एनडीए अभी तक शराबबंदी कानून पर कायम है.
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दरअसल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शराबबंदी कानून की समीक्षा पर नीतीश कुमार की सरकार से सकारात्मक संकेत मिले हैं. खबरों के मुताबिक बिहार विधानसभा के आगामी बजट सत्र में मद्य निषेध कानून की समीक्षा को लेकर प्रस्ताव पेश किए जाने की संभावना है. प्रस्ताव के अनुसार शराब के नशे में पकड़े जाने वालों को मौके पर ही जुर्माना भरवाकर छोड़ा जा सकता है. हालांकि, यह प्रावधान कानून का दोबारा उल्लंघन करने वाले अपराधियों पर लागू नहीं होगा.
यह मुद्दा नीतीश कुमार सरकार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, खासकर उसके गठबंधन सहयोगी भाजपा और 'हम' के बेहद मुखर होने के बाद नीतीश दबाव में बताए जा रहे हैं. वे शराबबंदी कानून की समीक्षा चाहते हैं. बिहार में अप्रैल 2016 में शराबबंदी लागू कर दी गई थी. हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने भी सरकार की आलोचना की थी. अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में शराब से जुड़े मामले लंबित हैं, जिससे न्यायिक व्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा है. पटना हाईकोर्ट ने कहा था कि न्यायालय में लंबित मामलों को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार सरकार को चाहिए कि सभी 38 जिलों में शराब से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए और अदालतें स्थापित करें.
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सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कुछ दिनों पहले बिहार के शराबबंदी कानून का उदाहरण देते हुए कहा था कि., ऐसे कानून बनाने के दौरान दूरदर्शिता का अभाव दिखता है. बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Ban in Bihar) का जिक्र करते हुए सीजेआई रमना ने कहा था कि कानून बनाने के दौरान कानून निर्माताओं को उसकी वजह से होने वाली समस्याओं के प्रभावी समाधान के बारे में भी सोचना चाहिए. उन्होंने बिहार मद्य निषेध कानून, 2016 का हवाला दिया (CJI cites Bihar Prohibition Act), और कहा कि इस कानून की वजह से उच्च न्यायालय में जमानत अर्जियों की बाढ़ सी आ गई. अब बिहार में मद्य निषेध कानून में संशोधन किए जाने की मांग की जा रही है.
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