पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अपनी पार्टी जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) सहित पार्टी की कोर टीम को निर्देश दिया है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद ललन सिंह ने सेवन सिस्टर्स वाले राज्यों में अपनी ताकत लगाई है, इसके साथ ही अन्य छोटे राज्यों पर भी नजर है.
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अभी हाल ही में गोवा आरजेडी की पूरी यूनिट जदयू में शामिल हो गई. गोवा में अगले साल चुनाव है. वहीं, असम में भी पार्टी ने कार्यक्रम शुरू कर दिया है. अरुणाचल प्रदेश में जदयू का पहले से जनाधार है. हालांकि पार्टी के विधायक टूटकर बीजेपी में शामिल हो गए थे, लेकिन पार्टी अपनी ताकत आने वाले चुनाव में दिखाने की तैयारी में है.
जदयू ने हाल ही में नॉर्थ-ईस्ट के लिए नॉर्थ ईस्ट एक्सक्यूटिव काउंसिल (NEEC) का गठन किया है. इसमें अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर शामिल हैं. काउंसिल में 13 सदस्यों की टीम है. सेवन सिस्टर वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश के बाद मणिपुर में जदयू का पहले से ही मजबूत संगठन है. उसे धारदार बनाने की कोशिश हो रही है.
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने हाल ही में मणिपुर का दौरा किया था. उन्होंने वहां पार्टी नेताओं के साथ बैठक की थी. अब गोवा राजद की पूरी टीम जदयू में शामिल हो गई है. वहीं, असम में भी पार्टी ने कार्यक्रम शुरू कर दिया है. जदयू की नजर छोटे राज्यों पर है, जिससे आसानी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल जाए.
जदयू के प्रवक्ता उत्साहित हैं. कह रहे हैं कि आरजेडी जैसे दलों के नेतृत्व पर अब बिहार से बाहर भी विश्वास नहीं रह गया है. इसलिए जदयू में लोग शामिल हो रहे हैं. जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा, 'पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय पदाधिकारी लगातार छोटे राज्यों में बैठक कर रहे हैं.'
"आगामी महीनों में देश के कई राज्यों में चुनाव होने वाला है. उन राज्यों में भी हमारी पार्टी सफलतापूर्वक चुनाव लड़ेगी. विधानसभा के सीटों को जीतने में हम कामयाब होंगे. जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलेगा. राष्ट्रीय स्तर पर हमारी पार्टी में लोगों का भरोसा और विश्वास बढ़ रहा है."- अरविंद निषाद, प्रवक्ता, जदयू
"जब बिहार में ही जदयू का जनाधार खत्म हो गया तो बाहर क्या करेंगे? गोवा में कौन लोग शामिल हुए हैं इसका जल्द ही खुलासा होगा. जदयू तो डूबता जहाज है. वहां से लोग भाग रहे हैं."- एजाज अहमद, प्रवक्ता, आरजेडी
"सभी दल अपना विस्तार करना चाहते हैं. बीजेपी के लिए कोई चुनौती नहीं है. चुनौती तो आरजेडी के लिए है. गोवा में उनका पूरा कुनबा जदयू में शामिल हो गया. प्रशांत किशोर ने भी कहा है कि बीजेपी लंबे समय तक देश में शासन करेगी. इसलिए चुनौती कांग्रेस के लिए है जिसका देश से सफाया हो रहा है."- मिथिलेश तिवारी, प्रदेश उपाध्यक्ष, बीजेपी
बता दें कि छोटे राज्यों पर अन्य दलों की भी नजर है. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के लिए काम कर रहे हैं. उन्हें भी छोटे राज्यों में पांव पसारने का सुझाव दिया है. प्रशांत किशोर के सुझाव पर अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी काम भी कर रही हैं. गोवा और अन्य छोटे राज्यों में उनका दौरा भी हो रहा है.
प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के लिए भी एक समय काम कर चुके हैं. अभी हाल ही में उनका बयान भी काफी चर्चा में है कि 'भाजपा भारतीय राजनीति के केंद्र में रहेगी- चाहे जीते या हारे. जैसे कांग्रेस के पहले 40 साल थे. भाजपा कहीं नहीं जा रही है. जब कोई पार्टी एक बार पूरे भारत में 30% वोट हासिल कर लेती है, तो वह जल्दी खत्म नहीं होगी.'
प्रशांत किशोर ने कहा है कि 'वह (राहुल गांधी) शायद इस भ्रम में हैं कि भाजपा सिर्फ मोदी लहर तक ही सत्ता में रहने वाली है. उन्हें मोदी और भाजपा की ताकत का अंदाजा नहीं है. कांग्रेस को इस चक्कर में नहीं फंसना चाहिए कि लोग नाराज हो रहे हैं और मोदी को सत्ता से उखाड़ फेकेंगे. शायद जनता मोदी को सत्ता से हटा दे, लेकिन भाजपा कहीं नहीं जा रही है. आपको (कांग्रेस) इससे अगले कई दशकों तक लड़ना होगा.'
कुल मिलाकर देखें तो छोटे राज्यों में आने वाले दिनों में मुकाबला दिलचस्प होगा. नीतीश कुमार भी मौका चूकना नहीं चाहते हैं. इसलिए पार्टी के पदाधिकारियों को विशेष टास्क दिया है. बड़े राज्यों में बीजेपी के साथ गठबंधन हो इसका भी प्रयास हो रहा है. अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव है. बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को जिम्मेवारी दी गई है. हालांकि बीजेपी के तरफ से अभी तक बहुत अच्छा रिस्पांस नहीं मिला है, लेकिन कुछ सीटों पर भी समझौता हो जाता है तो जदयू इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मानेगा.
इससे पहले दिल्ली में भी बीजेपी के साथ 2 सीटों पर समझौता हो चुका है. हालांकि दोनों सीट पर जदयू चुनाव हार गई थी. बड़े राज्यों में बेहतर प्रदर्शन नहीं होने के बाद नीतीश कुमार की नजर छोटे राज्यों पर है. वह छोटे राज्यों के लिए अलग रणनीति तैयार कर रहे हैं.
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