पटनाः भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और संपूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण (Hero of Total Revolution Jaiprakash Narayan) की आज पुण्यतिथि (Jayaprakash Narayan Death Anniversary) है, उनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1979 को हुई थी. इस अवसर पर बिहार के लोग इस महान राजनीतिज्ञ को नमन कर रहे हैं. जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोध में ऐसा आंदोलन खड़ा किया, जिससे देश की राजनीति ही बदल गई थी. संपूर्ण क्रांति के नायक जीपी ने तानाशाही शासन के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था.
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व्यवस्था परिवर्तन के लिए लड़ी लंबी लड़ाईः बता दें कि जेपी वो इंसान थे, जिन्होंने व्यवस्था परिवर्तन के लिए संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. बिहार के सिताब दियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण ऐसे शख्स के रूप में उभरे, जिन्होंने पूरे देश में आंदोलन की लौ जलाई. जेपी के विचार दर्शन और व्यक्तित्व ने पूरे जनमानस को प्रभावित किया. लोकनायक शब्द को जेपी ने चरितार्थ भी किया और संपूर्ण क्रांति का नारा भी दिया. 5 जून 1974 को विशाल सभा में पहली बार जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था.
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इंदिरा गांधी से मांग लिया इस्तीफा: जब जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था, उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी. जयप्रकाश की निगाह में इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया. जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी. जेपी का कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा. आनन-फानन में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी. उन दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'. जनवरी 1977 आपातकाल काल हटा लिया गया और लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के चलते पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. आंदोलन का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देशों पर पड़ा. सन 1977 में ऐसा माहौल था, जब जनता आगे थी और नेता पीछे थे. ये जेपी का ही करिश्माई नेतृत्व का प्रभाव था.
लालू-नीतीश जेपी आंदोलन की उपज: 5 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने अपने भाषण में कहा था कि भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना और शिक्षा में क्रांति लाना हमारा मकसद है, लिहाजा आज के हालात से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती है. जेपी आंदोलन के गर्भ से रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी सरीखे नेता निकले. इन नेताओं के पास लंबे समय तक के नेताओं के साथ सत्ता की बागडोर रही लेकिन बिहार का दुर्भाग्य यह रहा कि जेपी के सपनों को पंख नहीं लगे और वर्तमान परिस्थितियों में हालात दिनों दिन और भी बदतर होते जा रहे हैं.
जेपी के सपनों का बिहार: आलम ये है कि बेरोजगारी के मामले में बिहार राष्ट्रीय स्तर पर अव्वल है और रोजगार के लिए राज्य से बाहर पलायन बदस्तूर जारी है. सरकार के दावे धरातल पर नहीं उतरे. शिक्षा में सुधार भी बिहार वासियों के लिए सपना बनकर रह गया है. क्वालिटी एजुकेशन के लिए बिहार के छात्रों को पलायन करना पड़ता है. स्कूल और कॉलेजों में शिक्षकों की घोर कमी से शिक्षा के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी होती जा रही है. कमरतोड़ महंगाई के चलते जहां आम लोगों का जीना मुहाल है, वही बेलगाम नौकरशाही ने व्यवस्था के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. राजनीति में भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बनकर रह गया है. यही वजह है कि राजनीति में धनबल और बाहुबल का बोलबाला है. आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए राजनीति में जगह बना पाना दूर की कौड़ी हो गई है.