पटना: जेडीयू से निकाले जाने के बाद चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पटना नीतीश सरकार को कई अहम सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है. प्रशांत किशोर ने नीतीश को पिता तुल्य तो बताया, उनके विकास की तारीफ भी की, लेकिन नीतीश की निती और सिद्धांतों को फेल बता दिया. पीके ने अपने पिता तुल्य पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि गांधी और गोडसे के सिद्धांत को साथ लेकर चलने वाले लोग कौन सी सैद्धांतिक राजनीति का मॉडल बिहार के सामने रखना चाहते हैं ये भी जनता जानना चाहती है. एक मंच पर गांधी- गोडसे की विचारधारा सभी के समझ से परे है. ये तो सीएम की कुर्सी के लिए समझौते के सिद्धांत का मसौदा है.
अपराध पर कटघरे में नीतीश
2005 में जिस लालू के पास, अपराध और विकास के सवालों का जवाब नहीं था. तो आज वही हाल नीतीश कुमार का भी है. संगठित अपराध गिरोह, अपहरण उद्योग और जंगल राज जैसे मुद्दों पर कानून के कटघरे में खड़ा करने वाले नीतीश कुमार बिहार में बंदी के बाद भी बिक रही शराब और फेल पुलिसिया तंत्र से कटघरे में खड़े हैं, और इसे पीके ने अपनी लिस्ट में रखा है.
कहां है बिहार में रोजगार?
2005 में रोजगार के मुद्दे पर पीके ने आंकड़ों में जो सवाल उठाए हैं उसका जवाब आज भी बिहार के पास 2005 वाला ही है, क्.योंकि प्रतिव्यक्ति आय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुआ, बजट का आकार जरूर बढ़ा लेकिन वो लोगों की कमाई के लिए नहीं प्रतिव्यक्ति खर्च के लिए नहीं है. क्योंकि आज भी बिहार के लोग बाहर जाकर नौकरी के लिए मजबूर हैं.
सड़कें तो हैं पर गाड़ियां कहां हैं?
लालू के जमाने में जो सड़के गड्ढों में थीं, उसे भले ही नीतीश कुमार ने सरपट बना दिया हो, लेकिन पीके के आंकड़ों के अनुसार बिहार के लोगों के पास चलाने के लिए गाड़ी नहीं है. उनके आंकड़ों के मुताबिक गाड़ी तो दूर उसमें पेट्रोल डीजल तक के पैसे नहीं हैं, क्योंकि बिहार के लोग सिर्फ रोजी रोटी लायक ही कमा रहे हैं. इसका जवाब भी नीतीश के पास नहीं है.
बिजली की खपत करने लायक ही नहीं
नीतीश कुमार मंच से भले लाख दावे कर लें कि लालू के जमाने में बिहार में अंधेरा था हमने घर-घर बिजली पहुंचाई, लेकिन पीके के सवालों ने अब उन्हें घेर दिया है क्योंकि बिजली तो आई लेकिन बल्ब, पंखा से ज्यादा बिहार के पास कुछ नहीं है. किसानों के पास पंप नहीं है जिससे वो बिजली के सहारे अपने खेत का पटवन कर सकें. क्योंकि यहां सिर्फ रोजी रोटी भर का हो पा रहा है. इसका भी जवाब नीतीश कुमार के पास नहीं है.
कहां पढ़ेंगे बच्चे, बाहर जाकर?
आज भी बिहार में अच्छी शिक्षा का अभाव है भले नीतीश कुमार अपने शासनकाल में बेहतरी की बात कहते रहे हों, लेकिन पीके के सवालों का जवाब उनके पास नहीं है. जो कभी नीतीश के थे और लालू जवाब न दे सके. अच्छी पढ़ाई के लिए आज भी बिहार से बच्चे बाहर जाने को मजबूर हैं. बिहार में तो मानों नकल मारकर पास करने का ही चलन है.
15 साल पुराना बिहार आज भी वहीं
लालू शासन से नीतीश कुमार तूलना करते करते ये भी भूल गए कि आज का बिहार वहीं है जहां 15 साल पहले था. जबकि केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु कहां से कहां निकल गए. पीके के उन आंकड़ों के जवाब आज नीतीश के पास नहीं हैं जिसमें बिहार अभी भी देश में सबसे नीचले स्तर पर जीवन यापन कर रहा है. पीके के सवालों में लालू से तूलना की तल्खी इतनी थी कि नीतीश के लिए पिता तुल्य शब्द तो जरूर ते लेकिन शब्दों की मर्यादा साफतौर पर भटकी थी. नीतीश पर आरोप लगाते हुए पीके ने कहा कि लालू से तूलना करना कब बंद करिएगा क्योंकि अब आपकी तूलना उन्ही वाले विकास से होने लगी है.
पीके का जवाब देंगे नीतीश?
तो ऐसे में प्रशांत किशोर के आंकड़े कई सवाल खड़े कर रहे हैं जिनमें मुख्य है बोरोजगारी, बिहार की जीडीपी. जो पहले जहां थी आज भी वहीं है, तो अब देखना दिलचस्प है कि आखिर कैसे पीके के इन सभी सवालों का जवाब नीतीश कुमार देंगे, या फिर लालू से जवाब मांगने वाले नीतीश अब 'बात बिहार की' करने वाले पीके की सियासी गुगली में बिहार की बात को कैसे कहेंगे. सवाल और भी हैं कि बात सुशासन वाले बिहार की कैसे कहेंगे.