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'इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में दिखेगा प्रवासी मजदूरों का प्रभाव, वोटिंग परसेंटेज भी बढ़ने के आसार'

कोरोना और लॉकडाउन का व्यापक प्रभाव इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा. सभी राजनीतिक दलों ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी है.

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Published : Jun 1, 2020, 5:32 PM IST

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पटना: बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. एक ओर जहां डिजिटल चुनाव की सुगबुगाहट तेज है वहीं, दूसरे राज्यों से बिहार लौटे प्रवासी भी मिशन 2020 में बिग फैक्टर साबित हो सकते हैं. जानकारों की मानें तो बिहार की सियासत में इस बार एक खास अंतर देखने को मिलेगा. यह फर्क उन लाखों प्रवासी मजदूरों के आने से पड़ेगा जो कम से कम इस साल तो बिहार नहीं छोड़ने वाले हैं.

PATNA
प्रवासियों की वापसी का सिलसिला जारी

इन हालातों में सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से वोट बैंक को साधने में जुटे नजर आ रहे हैं. बिहार सरकार के अधिकारी लगातार कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्य आने वाले प्रवासी मजदूरों का डेटा सार्वजनिक कर रहे हैं. 31 मई तक के आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक 20 लाख प्रवासी मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए आ चुके हैं. वहीं, इतनी ही संख्या वैसे लोगों की भी है जो सड़क मार्ग से बिहार पहुंचे हैं. इनमें से कम से कम 70 फीसदी लोग ऐसे हैं जो आने वाले कुछ महीनों तक तो बिहार से नहीं जाएंगे क्योंकि कोरोना और लॉकडाउन ने इनकी नौकरियां निगल ली हैं.

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प्रोफेसर डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक

पर्व के मौके पर चुनाव
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि हर साल दिवाली और छठ के वक्त बिहार में बड़ी संख्या में लोग छुट्टियां मनाने आते हैं. विधानसभा चुनाव भी इसी महीने में होता है जिस कारण छुट्टियां मनाने आने वाले लोग इलेक्शन में भूमिका निभाते हैं, जो नतीजों में झलकता है. लेकिन, इस बार तो मौका ही कुछ और है. प्रोफेसर डीएम दिवाकर की मानें तो 1 से 1.5 प्रतिशत वोटिंग में फर्क उम्मीदवार के जीत और हार में अंतर का कारण बन जाता है. जबकि इस बार यह इससे कहीं ज्यादा होगा. इसमें अहम भूमिका प्रवासी मजदूरों की होगी.

ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा की रिपोर्ट

एनडीए कर रहा प्रवासियों के लिए दावे
वहीं, प्रवासी मजदूरों को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच तनातनी जारी है. हर सियासी दल प्रवासी मजदूरों को मदद करने के नाम पर वोट बैंक बनाने में जुटा हुआ है. विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही सरकार की तरफ से यह लगातार घोषणा हो रही है कि हम प्रवासी मजदूरों को बिहार में ही नौकरिया देंगे. एनडीए के नेता इसके लिए तमाम तरह के प्रयास करने का दावा भी कर रहे हैं.

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प्रेमचंद्र मिश्रा, कांग्रेस नेता

'यहां के लोग हैं बेरोजगार तो कैसे मिलेगा प्रवासियों को रोजगार?'
वहीं, विपक्ष के नेता यह दावा कर रहे हैं कि प्रवासी मजदूरों के साथ जिस तरह का व्यवहार बीजेपी और जदयू ने किया है उससे बिहार के लाखों प्रवासी बिहार की नीतीश सरकार से खासे नाराज हैं. कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा है कि जब बिहार में रहने वाले लोगों को आज तक नीतीश कुमार नौकरियां नहीं दे पाए तो प्रवासी मजदूरों को नौकरियां देने का दावा किस आधार पर कर रहे हैं.

PATNA
सरकारी मदद साबित हो रही नाकाफी

जमीन पर सक्रिय दिख रही आरजेडी
हाल के घटनाक्रमों पर गौर करें तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दिल्ली में रहते हुए लगातार सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों की मदद का वीडियो डालते दिखे. अब वे पटना लौट कर प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए जमीन पर सक्रिय दिख रहे हैं. कांग्रेस और राजद के नेता लगातार यह दावा कर रहे हैं कि जितनी मदद प्रवासी मजदूरों की उन्होंने की है उतनी तो सरकार भी नहीं कर पाई है. बहरहाल, इस साल के चुनाव में प्रवासी मजदूर बड़ा मुद्दा बनते नजर आ रहे हैं.

पटना: बिहार में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. एक ओर जहां डिजिटल चुनाव की सुगबुगाहट तेज है वहीं, दूसरे राज्यों से बिहार लौटे प्रवासी भी मिशन 2020 में बिग फैक्टर साबित हो सकते हैं. जानकारों की मानें तो बिहार की सियासत में इस बार एक खास अंतर देखने को मिलेगा. यह फर्क उन लाखों प्रवासी मजदूरों के आने से पड़ेगा जो कम से कम इस साल तो बिहार नहीं छोड़ने वाले हैं.

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प्रवासियों की वापसी का सिलसिला जारी

इन हालातों में सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से वोट बैंक को साधने में जुटे नजर आ रहे हैं. बिहार सरकार के अधिकारी लगातार कॉन्फ्रेंस के जरिए राज्य आने वाले प्रवासी मजदूरों का डेटा सार्वजनिक कर रहे हैं. 31 मई तक के आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक 20 लाख प्रवासी मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए आ चुके हैं. वहीं, इतनी ही संख्या वैसे लोगों की भी है जो सड़क मार्ग से बिहार पहुंचे हैं. इनमें से कम से कम 70 फीसदी लोग ऐसे हैं जो आने वाले कुछ महीनों तक तो बिहार से नहीं जाएंगे क्योंकि कोरोना और लॉकडाउन ने इनकी नौकरियां निगल ली हैं.

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प्रोफेसर डीएम दिवाकर, राजनीतिक विश्लेषक

पर्व के मौके पर चुनाव
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि हर साल दिवाली और छठ के वक्त बिहार में बड़ी संख्या में लोग छुट्टियां मनाने आते हैं. विधानसभा चुनाव भी इसी महीने में होता है जिस कारण छुट्टियां मनाने आने वाले लोग इलेक्शन में भूमिका निभाते हैं, जो नतीजों में झलकता है. लेकिन, इस बार तो मौका ही कुछ और है. प्रोफेसर डीएम दिवाकर की मानें तो 1 से 1.5 प्रतिशत वोटिंग में फर्क उम्मीदवार के जीत और हार में अंतर का कारण बन जाता है. जबकि इस बार यह इससे कहीं ज्यादा होगा. इसमें अहम भूमिका प्रवासी मजदूरों की होगी.

ईटीवी भारत संवाददाता अमित वर्मा की रिपोर्ट

एनडीए कर रहा प्रवासियों के लिए दावे
वहीं, प्रवासी मजदूरों को लेकर विपक्ष और सरकार के बीच तनातनी जारी है. हर सियासी दल प्रवासी मजदूरों को मदद करने के नाम पर वोट बैंक बनाने में जुटा हुआ है. विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही सरकार की तरफ से यह लगातार घोषणा हो रही है कि हम प्रवासी मजदूरों को बिहार में ही नौकरिया देंगे. एनडीए के नेता इसके लिए तमाम तरह के प्रयास करने का दावा भी कर रहे हैं.

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प्रेमचंद्र मिश्रा, कांग्रेस नेता

'यहां के लोग हैं बेरोजगार तो कैसे मिलेगा प्रवासियों को रोजगार?'
वहीं, विपक्ष के नेता यह दावा कर रहे हैं कि प्रवासी मजदूरों के साथ जिस तरह का व्यवहार बीजेपी और जदयू ने किया है उससे बिहार के लाखों प्रवासी बिहार की नीतीश सरकार से खासे नाराज हैं. कांग्रेस नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा है कि जब बिहार में रहने वाले लोगों को आज तक नीतीश कुमार नौकरियां नहीं दे पाए तो प्रवासी मजदूरों को नौकरियां देने का दावा किस आधार पर कर रहे हैं.

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जमीन पर सक्रिय दिख रही आरजेडी
हाल के घटनाक्रमों पर गौर करें तो नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव दिल्ली में रहते हुए लगातार सोशल मीडिया पर प्रवासी मजदूरों की मदद का वीडियो डालते दिखे. अब वे पटना लौट कर प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए जमीन पर सक्रिय दिख रहे हैं. कांग्रेस और राजद के नेता लगातार यह दावा कर रहे हैं कि जितनी मदद प्रवासी मजदूरों की उन्होंने की है उतनी तो सरकार भी नहीं कर पाई है. बहरहाल, इस साल के चुनाव में प्रवासी मजदूर बड़ा मुद्दा बनते नजर आ रहे हैं.

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