पटना: प्रदेश में अप्रैल के महीने में ही गर्मी अपने चरम की ओर है. राजधानी पटना समेत प्रदेश के अधिकांश जिलों में अधिकतम तापमान 41 डिग्री पार कर जा रहा है. ऐसे में इन दिनों बच्चे फूड प्वाइजनिंग, डायरिया और डिहाइड्रेशन (increased risk of dehydration in children) के शिकार हो रहे हैं. इन दिनों बच्चे स्कूल से जब घर लौट रहे हैं तो उनके चेहरे थके हारे और मुरझाए रह रहे हैं. इन सभी का कारण एक है गर्मी और अधिक तापमान. कई बच्चे जब स्कूल से घर लौट रहे हैं तो वह चक्कर आने या उल्टी जैसे लक्षण महसूस होने की शिकायत कर रहे हैं. ऐसे में इस मौसम में बच्चों को लेकर किस बात का विशेष ख्याल रखें अभिभावक बता रहे हैं पीएमसीएच के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉक्टर सुमन कुमार जानते हैं...
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बच्चों में बढ़ रहे डिहाइड्रेशन के मामले: डॉ सुमन कुमार ने बताया कि सर्दी का मौसम हो या गर्मी का मौसम (Summer Season In Bihar) जो सबसे अधिक वल्नरेबल ग्रुप होते हैं वह बच्चे होते हैं. इसके तीन प्रमुख कारण है, पहला यह है कि बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स के अपेक्षाकृत सरफेस एरिया अधिक होता है. दूसरा कारण है कि बच्चों में पसीना अधिक तापमान पर निकलना शुरू होता है. और तीसरा यह है कि बच्चों का जो नेचर होता है कि वह जल्दी अवेयर नहीं होते हैं और धूप में लाख मना करने के बावजूद खेलने निकल जाते हैं. बॉडी हाइड्रेट करने के लिए नियमित पानी नहीं पीते, जब बहुत थक जाते हैं तो अचानक ठंडा पानी पी लेते हैं और बीमार पड़ जाते हैं.
इस लक्षणों को ना करें इग्नोर: डॉ सुमन कुमार ने बताया कि इन दिनों गर्मी काफी अधिक पड़ रही है और स्कूल की छुट्टी का जो समय है वह दिन के 12:00 से 4:00 के बीच है, जो गर्मी का पीक आवर होता है. ऐसे में गर्मी की वजह से बच्चे एग्जास्टेड हो जा रहे हैं. गर्मी से बच्चों को तीन प्रकार की हिट इंजरी हो सकती है. पहला है हीट स्ट्रेस. इसमें बच्चे को गर्मी के कारण सफोकेशन महसूस होती है, उन्हें कमजोरी सी महसूस होती है और कुछ भी ठीक नहीं लगता. यह सबसे माइनर लेवल का हिट इंजरी है.
सेकंड लेवल है हीट इंजरी का हिट एक्गजार्सन, इसमें बच्चों को चक्कर आने जैसा लगता है और उल्टी आने जैसा उन्हें लक्षण महसूस होता है. बच्चों को बहुत अधिक वीकनेस महसूस होती है और उनका बॉडी टेंपरेचर 101 और 102 डिग्री सेल्सियस पर चला जाता है. इसके बाद ही इंजरी का सबसे सीवियर और तीसरा लेवल जो है वह है हीटस्ट्रोक. जिसे सामान्य भाषा में लू का अटैक कहते हैं. इसलिए बच्चे को चक्कर आ जाता है और वह जमीन पर गिर जाता है. बॉडी टेंपरेचर भी 102 से अधिक हो जाता है. बच्चा मुंह से कुछ भी खाने की पोजीशन में नहीं होता और शरीर में पानी की बहुत अधिक कमी हो जाती है और उसे पानी चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है.
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करें ये काम: डॉ सुमन कुमार ने बताया कि अगर बच्चे को किसी प्रकार का ही इंजरी होता है तो सबसे पहले जरूरी है कि बच्चे हो ठंडे वातावरण में ले जाएं और संभव हो तो उसके आसपास फैन या कूलर चला दे. शर्ट के बटन को कुछ खोल दें और ठंडे पानी से शरीर को पोछें. स्ट्रोक की वजह से बच्चा यदि बेहोश हो गया है तो बच्चे को बिस्तर पर सीधा लिटा कर उसके पैर को ऊपर की तरफ कुछ देर के लिए रखकर छोड़े ताकि ब्लड का सरकुलेशन ब्रेन तक पहुंचे और बच्चे में कॉशसनेश की स्थिति आए. इसके बाद यदि संभव है तो बच्चे के दोनों कांख के पास बर्फ का टुकड़ा रख दें और दोनों जांघों पर बर्फ की सेंकाई करें. इससे शरीर का कुछ हिट बाहर निकल जाएगा और फिर उसे सीधे अस्पताल लेकर जाएं क्योंकि हीट स्ट्रोक के कंडीशन में बच्चे को 24 से 48 घंटे तक ऑब्जरवेशन में रखने की आवश्यकता होती है.
इन बातों का रखें खास ख्लाल: स्कूल में यदि बच्चे को हीट स्ट्रोक आता है तो स्कूल प्रबंधन प्राथमिक उपचार करने के बाद बच्चे को घर भेजने के बजाय सीधे अस्पताल भेजें और अभिभावक संपर्क करें. डॉ सुमन कुमार ने बताया कि बच्चे को यदि हीट इंजरी से बचाना है तो बच्चों को ढीला ढाला कपड़ा पहनाए और हल्के रंग का कपड़ा पहनाए जो हीट को रिफ्लेक्ट करता हो. सूती कपड़ा ही पहनाए और बच्चों को नियमित अंतराल पर पानी पीते रहने की आदत डालें. इसके अलावा अभिभावक यह भी ध्यान दें कि बच्चे धूप में अधिक समय तक ना रहे और खेलने कूदने के लिए धूप में बाहर ना निकले. शाम के समय जब धूप ढल जाती है तब थोड़ी देर के लिए बच्चों को बाहर भेज सकते हैं. बच्चों के न्यूट्रिशस डाइट पर विशेष ध्यान दें. स्कूल से जब बच्चे घर लौटते हैं तो उन्हें ग्लूकोज या नींबू पानी का शरबत पिलाएं. स्कूल जाते समय बच्चों को वाटर बोतल भर कर दें और उन्हें प्रेरित करे की नियमित अंतराल पर अपनी वाटर बोतल से ही पानी पिए.
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