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पटनाः कोसी के वटवृक्ष पुस्तक का हुआ लोकार्पण - inauguration of kosi ke vatvruksh

राजधानी पटना के कालीदास रंगालय में कोसी के वटवृक्ष पुस्तक का लोकार्पण किया गया. इस पुस्तक में 2008 में आयी बाढ़ और बुजर्गों के साहस का वर्णन किया गया है.

कोसी के वटवृक्ष का लोकार्पण
कोसी के वटवृक्ष का लोकार्पण
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Published : Jan 25, 2021, 7:32 AM IST

Updated : Jan 25, 2021, 7:41 AM IST

पटना: राजधानी पटना के कालीदास रंगालय में पुस्तक कोसी के वटवृक्ष के लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. पीयूष मित्र द्वारा लिखित पुस्तक का लोकार्पण पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सुधा वर्गीज और रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अंशु गुप्ता ने किया.

2008 की बाढ़ पर पुस्तक
कोसी के वटवृक्ष पुस्तक में 2008 में कोसी क्षेत्र में आयी भयंकर बाढ़ का जिक्र किया गया है. 2008 में कोसी में आयी भयंकर बाढ़ से हुई तबाही से लोगों को लगता था कि अब इस से निकलकर फिर से वापस लौटना काफी मुश्किल है. लेकिन बावजूद इसके लोगों ने इस दौरान किस तरीके से कार्य किया और किस तरीके से एक दूसरे का साथ दिया. इन सबका विस्तृत रूप से किताब में जिक्र है.

ये भी पढ़ें- कोरोनाकालजयी लघु कहानी पुस्तक का पूर्व मुख्यमंत्री ने किया लोकार्पण


बुजुर्गों की हिम्मत का है जिक्र
इसमें बताया गया है कि किस तरीके से बाढ़ की विभीषिका में लोग सपरिवार पलायन कर गये थे. लेकिन बुजुर्गों को वहीं छोड़ दिये थे. लेकिन बुजुर्गों ने वहां कार्य किया और गांव को नहीं छोड़ा. उनकी हिम्मत देखकर उनके बच्चे जो पलायन कर गए थे वह भी बाद में अपने घर लौट आए थे. तबाही के बाद भी जिस तरीके से लोग एक बार फिर से उठ खड़े हुए वह अपने आप में काबिले तारीफ है. उस समय किस तरीके से बुजुर्गों ने सहायता की थी उन सभी बुजुर्गों की कहानियों को पिरोकर इस पुस्तक को लिखा गया है.

पटना: राजधानी पटना के कालीदास रंगालय में पुस्तक कोसी के वटवृक्ष के लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. पीयूष मित्र द्वारा लिखित पुस्तक का लोकार्पण पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित सुधा वर्गीज और रैमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अंशु गुप्ता ने किया.

2008 की बाढ़ पर पुस्तक
कोसी के वटवृक्ष पुस्तक में 2008 में कोसी क्षेत्र में आयी भयंकर बाढ़ का जिक्र किया गया है. 2008 में कोसी में आयी भयंकर बाढ़ से हुई तबाही से लोगों को लगता था कि अब इस से निकलकर फिर से वापस लौटना काफी मुश्किल है. लेकिन बावजूद इसके लोगों ने इस दौरान किस तरीके से कार्य किया और किस तरीके से एक दूसरे का साथ दिया. इन सबका विस्तृत रूप से किताब में जिक्र है.

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बुजुर्गों की हिम्मत का है जिक्र
इसमें बताया गया है कि किस तरीके से बाढ़ की विभीषिका में लोग सपरिवार पलायन कर गये थे. लेकिन बुजुर्गों को वहीं छोड़ दिये थे. लेकिन बुजुर्गों ने वहां कार्य किया और गांव को नहीं छोड़ा. उनकी हिम्मत देखकर उनके बच्चे जो पलायन कर गए थे वह भी बाद में अपने घर लौट आए थे. तबाही के बाद भी जिस तरीके से लोग एक बार फिर से उठ खड़े हुए वह अपने आप में काबिले तारीफ है. उस समय किस तरीके से बुजुर्गों ने सहायता की थी उन सभी बुजुर्गों की कहानियों को पिरोकर इस पुस्तक को लिखा गया है.

Last Updated : Jan 25, 2021, 7:41 AM IST
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