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Fourth Agriculture Road Map in Bihar : तीन कृषि रोड मैप की क्या रही उपलब्धि, क्या चौथे से बदलेंगे किसानों के हालात?

आज राजधानी पटना में किसान समागम का आयोजन किया जा रहा है, जहां सीएम नीतीश कुमार 4700 किसानों के साथ संवाद करेंगे. ये सारी कवायद चौथे कृषि रोड मैप को अंतिम रूप देने के लिए की जा रही है. सरकार की कोशिश है कि आने वाले समय में किसान और किसानी को इतना सुदृढ़ कर दें ताकि हर हिंदुस्तानी की थाली में बिहार व्यंजन पहुंच सके. 2008 से लेकर अब तक पहले, दूसरे और तीसरे कृषि रोड मैप के माध्यम से इसी दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं. जानिये तीनों कृषि रोड मैप से क्या सुधार हुए हैं.

बिहार में चौथा कृषि रोड मैप
बिहार में चौथा कृषि रोड मैप
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Published : Feb 21, 2023, 11:45 AM IST

पटना: एक अप्रैल से बिहार में चौथा कृषि रोड मैप (Fourth Agriculture Road Map in Bihar) लागू होगा. उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है. नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2008 में पहला कृषि रोडमैप लागू किया था. 2012 में दूसरा कृषि रोडमैप और 2017 में तीसरा कृषि रोडमैप लागू किया था और अब 2023 में चौथा कृषि रोड मैप लागू हो रहा है. बिहार के लगभग 93.60 लाख हेक्टेयर भूमि में 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है. 74 प्रतिशत लोग आज भी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है. वहीं राज्य के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में कृषि का करीब 19 से 20% योगदान है. पशुधन का करीब 6% योगदान है. इन्हीं सब को देखते हुए नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कृषि रोड मैप लाने का फैसला लिया.

ये भी पढ़ें: Fourth Agriculture Road Map in Bihar: किसानों की आय बढ़ाने के साथ हर भारतीय की थाली में 'बिहारी व्यंजन' पहुंचाने की होगी तैयारी

2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत: बिहार में पहले कृषि रोडमैप के लिए 17 फरवरी 2008 को किसान पंचायत का आयोजन किया गया था. पहले कृषि रोड मैप में सरकार की ओर से बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी और इसमें सफलता भी मिली. चावल के उत्पादन में नालंदा के एक किसान ने तो चीन के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ दिया. वहीं आलू के उत्पादन में भी नालंदा के किसान ने विश्व कीर्तिमान बनाया.

2012 में दूसरे कृषि रोड मैप का आरंभ: वहीं दूसरा कृषि रोड मैप 2012 में लागू किया गया है और उसके लिए 2011 में नीतीश सरकार ने 18 विभागों को शामिल कर कृषि कैबिनेट का गठन किया था. दूसरे कृषि रोड मैप में भी सरकार का पूरा फोकस किसानों की उत्पादकता बढ़ाने पर था और इसमें सफलता भी मिली. बिहार को दूसरे किसी रोड मैप में कई पुरस्कार भी मिले. 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला तो 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ. वहीं 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला.

2017 में तीसरा कृषि रोड मैप लागू: तीसरा कृषि रोडमैप 2017 में लागू किया गया. तीसरे कृषि रोड मैप में ऑर्गेनिक खाद पर जोर दिया गया. इस दौरान धान अधिप्राप्ति का भी रिकॉर्ड बना. किसानों को खेतों तक बिजली पहुंचाने के लिए अलग से फीडर की व्यवस्था की गई. मत्स्य और दुग्ध उत्पादन पर भी जोर दिया गया. इसके कारण बिहार इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ा. आज मछली का दूसरे राज्यों से आयात काफी कम गया है. इसके अलावा बाढ़ और सूखा वाले क्षेत्रों में वैकल्पिक फसलों पर भी जोर दिया गया. सरकार ने हर खेत तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा है और उस पर काम हो रहा है. 2025 तक लक्ष्य तय किया गया है. साथ ही तीसरे कृषि रोड मैप में हरित पट्टी बढ़ाने पर भी काम किया गया. इसके कारण आज बिहार का हरित पट्टी 15% पहुंच गया है.

कोरोना के कारण बढ़ी समय सीमा: तीसरा कृषि रोड मैप 2022 तक था लेकिन कोरोना के कारण इसे 1 साल मार्च 2023 तक बढ़ाया गया है. लेकिन तीन कृषि रोड मैप पूरा होने के बाद भी किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है उनके फसल का उचित मूल्य प्राप्त करना. सही समय पर बीज खाद प्राप्त करना और तेलहन दलहन का उत्पादन बढ़ाना. साथ ही कृषि को उद्योग से जोड़ना प्रमुख है. इसके अलावा भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था भी बड़ी चुनौती है. सरकार लगातार वादा भी करती रही है लेकिन यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

राज्य सरकार के सामने कई चुनौतियां: 1 अप्रैल 2023 से लागू होने वाले कृषि रोड मैप के लिए सरकार किसानों से संवाद करने जा रही है. मुख्यमंत्री खुद किसानों से बातचीत करेंगे. चौथे कृषि रोड मैप में सरकार के लिए कई चुनौतियां हैं. किसानों की आय बढ़ाना, तेलहन-दलहन का उत्पादन बढ़ाना और मौसम के अनुकूल कृषि करना बड़ी चुनौती है. साथ ही किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाना. गुणवत्ता युक्त बीज का उत्पादन, कृषि को उद्योग से जोड़ना, मत्स्य-दुग्ध के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती है. वहीं मंडी व्यवस्था फिर से शुरू करने की मांग होती रही है तो उसका क्या विकल्प सरकार देगी, यह भी एक बड़ी चुनौती होगी.

किसानों का आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश: चौथा कृषि रोड मैप 31 मार्च 2028 तक के लिए बनाया जा रहा है. सरकार के लिए कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के साथ अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों का निर्यात राज्य और देश से बाहर हो यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि नीतीश कुमार ने कृषि के क्षेत्र में बड़ा लक्ष्य तय किया था कि बिहार का एक व्यंजन हर भारतीय के थाली में पहुंचे. पिछले डेढ़ दशक से यह प्रयास हो रहा है.

उत्पादन में लगातार इजाफा: बिहार आज चावल और गेहूं के उत्पादन में देश में छठे स्थान पर है. मक्का के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. सब्जी के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. शहद के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. वहीं फलों की बात करें तो लीची के उत्पादन में प्रथम स्थान, आम के उत्पादन में चौथे स्थान, अमरूद के उत्पादन में 5वें स्थान और केला के उत्पादन में छठे स्थान पर है. बिहार का कई उत्पाद देश में और देश के बाहर भी जा रहा है लेकिन कृषि के क्षेत्र में बिहार को अभी लंबी छलांग लगानी है. इसमें यह चौथा कृषि रोडमैप मददगार साबित हो सकता है.

पटना: एक अप्रैल से बिहार में चौथा कृषि रोड मैप (Fourth Agriculture Road Map in Bihar) लागू होगा. उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है. नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद 2008 में पहला कृषि रोडमैप लागू किया था. 2012 में दूसरा कृषि रोडमैप और 2017 में तीसरा कृषि रोडमैप लागू किया था और अब 2023 में चौथा कृषि रोड मैप लागू हो रहा है. बिहार के लगभग 93.60 लाख हेक्टेयर भूमि में 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य है. 74 प्रतिशत लोग आज भी आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है. वहीं राज्य के सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी में कृषि का करीब 19 से 20% योगदान है. पशुधन का करीब 6% योगदान है. इन्हीं सब को देखते हुए नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कृषि रोड मैप लाने का फैसला लिया.

ये भी पढ़ें: Fourth Agriculture Road Map in Bihar: किसानों की आय बढ़ाने के साथ हर भारतीय की थाली में 'बिहारी व्यंजन' पहुंचाने की होगी तैयारी

2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत: बिहार में पहले कृषि रोडमैप के लिए 17 फरवरी 2008 को किसान पंचायत का आयोजन किया गया था. पहले कृषि रोड मैप में सरकार की ओर से बीज उत्पादन के साथ किसानों की उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश हुई थी और इसमें सफलता भी मिली. चावल के उत्पादन में नालंदा के एक किसान ने तो चीन के विश्व रिकॉर्ड को तोड़ दिया. वहीं आलू के उत्पादन में भी नालंदा के किसान ने विश्व कीर्तिमान बनाया.

2012 में दूसरे कृषि रोड मैप का आरंभ: वहीं दूसरा कृषि रोड मैप 2012 में लागू किया गया है और उसके लिए 2011 में नीतीश सरकार ने 18 विभागों को शामिल कर कृषि कैबिनेट का गठन किया था. दूसरे कृषि रोड मैप में भी सरकार का पूरा फोकस किसानों की उत्पादकता बढ़ाने पर था और इसमें सफलता भी मिली. बिहार को दूसरे किसी रोड मैप में कई पुरस्कार भी मिले. 2012 में चावल उत्पादन के लिए कृषि कर्मण पुरस्कार मिला तो 2013 में गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार प्राप्त हुआ. वहीं 2016 में मक्का के उत्पादन के क्षेत्र में कृषि कर्मण पुरस्कार मिला.

2017 में तीसरा कृषि रोड मैप लागू: तीसरा कृषि रोडमैप 2017 में लागू किया गया. तीसरे कृषि रोड मैप में ऑर्गेनिक खाद पर जोर दिया गया. इस दौरान धान अधिप्राप्ति का भी रिकॉर्ड बना. किसानों को खेतों तक बिजली पहुंचाने के लिए अलग से फीडर की व्यवस्था की गई. मत्स्य और दुग्ध उत्पादन पर भी जोर दिया गया. इसके कारण बिहार इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ा. आज मछली का दूसरे राज्यों से आयात काफी कम गया है. इसके अलावा बाढ़ और सूखा वाले क्षेत्रों में वैकल्पिक फसलों पर भी जोर दिया गया. सरकार ने हर खेत तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य रखा है और उस पर काम हो रहा है. 2025 तक लक्ष्य तय किया गया है. साथ ही तीसरे कृषि रोड मैप में हरित पट्टी बढ़ाने पर भी काम किया गया. इसके कारण आज बिहार का हरित पट्टी 15% पहुंच गया है.

कोरोना के कारण बढ़ी समय सीमा: तीसरा कृषि रोड मैप 2022 तक था लेकिन कोरोना के कारण इसे 1 साल मार्च 2023 तक बढ़ाया गया है. लेकिन तीन कृषि रोड मैप पूरा होने के बाद भी किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है उनके फसल का उचित मूल्य प्राप्त करना. सही समय पर बीज खाद प्राप्त करना और तेलहन दलहन का उत्पादन बढ़ाना. साथ ही कृषि को उद्योग से जोड़ना प्रमुख है. इसके अलावा भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था भी बड़ी चुनौती है. सरकार लगातार वादा भी करती रही है लेकिन यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

राज्य सरकार के सामने कई चुनौतियां: 1 अप्रैल 2023 से लागू होने वाले कृषि रोड मैप के लिए सरकार किसानों से संवाद करने जा रही है. मुख्यमंत्री खुद किसानों से बातचीत करेंगे. चौथे कृषि रोड मैप में सरकार के लिए कई चुनौतियां हैं. किसानों की आय बढ़ाना, तेलहन-दलहन का उत्पादन बढ़ाना और मौसम के अनुकूल कृषि करना बड़ी चुनौती है. साथ ही किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाना. गुणवत्ता युक्त बीज का उत्पादन, कृषि को उद्योग से जोड़ना, मत्स्य-दुग्ध के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाना भी बड़ी चुनौती है. वहीं मंडी व्यवस्था फिर से शुरू करने की मांग होती रही है तो उसका क्या विकल्प सरकार देगी, यह भी एक बड़ी चुनौती होगी.

किसानों का आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश: चौथा कृषि रोड मैप 31 मार्च 2028 तक के लिए बनाया जा रहा है. सरकार के लिए कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के साथ अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों का निर्यात राज्य और देश से बाहर हो यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि नीतीश कुमार ने कृषि के क्षेत्र में बड़ा लक्ष्य तय किया था कि बिहार का एक व्यंजन हर भारतीय के थाली में पहुंचे. पिछले डेढ़ दशक से यह प्रयास हो रहा है.

उत्पादन में लगातार इजाफा: बिहार आज चावल और गेहूं के उत्पादन में देश में छठे स्थान पर है. मक्का के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. सब्जी के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है. शहद के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. वहीं फलों की बात करें तो लीची के उत्पादन में प्रथम स्थान, आम के उत्पादन में चौथे स्थान, अमरूद के उत्पादन में 5वें स्थान और केला के उत्पादन में छठे स्थान पर है. बिहार का कई उत्पाद देश में और देश के बाहर भी जा रहा है लेकिन कृषि के क्षेत्र में बिहार को अभी लंबी छलांग लगानी है. इसमें यह चौथा कृषि रोडमैप मददगार साबित हो सकता है.

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