ETV Bharat / state

Holi 2023: होलिका दहन में पकायी जाती चने की झंगरी, जानिये क्या है मान्यता - होलिका दहन की परंपरा

होली रंगों का त्योहार है. इस दिन लोग खूब रंग खेलते हैं और पुआ-दही बाड़ा खाते हैं. होली से पहले, होलिका दहन (holika dahan 2023) किया जाता है. इसके साथ कुछ परंपरा जुड़ी हैं. होलिका दहन के दौरान चने की झंगरी को उस आग में पकाया जाता है जिसमें होलिका को लोग जलाते हैं. ऐसा लोग क्यों करते हैं, जानिये.

Holi 2023
Holi 2023
author img

By

Published : Mar 4, 2023, 6:24 AM IST

चने की झंगरी.

पटना: रंगों का त्योहार होली, हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. इस त्योहार को मनाने के लिए खरीददारी शुरू हो गयी है. रंग-गुलाल के साथ खाने-पीन का सामान खरीदा जा रहा है. होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के साथ कुछ परंपराएं जुड़ी हैं. पटना के ग्रामीण इलाकों में होलिका दहन वाली आग में चना की झंगरी (jhangri is cooked in Holika Dahan) को पकाने की पौराणिक परंपरा है. इस झंगरी को होलिका दहन के प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

इसे भी पढ़ेंः Holi 2023 : जानिए कितनी पुरानी है होली की परंपरा, किन ग्रंथों में मिलता है उल्लेख

सदियों पुरानी परंपरा: क्यों चने की झंगरी को आग में पकाया जाता है. इसके बारे में मसौढ़ी के श्री राम जानकी ठाकुरबाड़ी मंदिर के पुजारी गोपाल पांडे ने बताया कि यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसका निर्वहन आज भी लोग करते आ रहे हैं. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत हो जाती है. नये साल की यह पहली फसल होती है, इसलिए इसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. यह ऐसी परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. किसानों को लेकर इसका विशेष महत्व है.

नये साल का पहला निवालाः होलिका दहन के समय चना आग में डालने की परंपरा है. इसके बाद सुबह होली शुरू होने के पहले परिवार के लोग प्रसाद स्वरूप उसे खाते हैं. कहा जाए तो नये साल का यह पहला निवाला होता है. पटना के ग्रामीण इलाकों में खासकर मसौढ़ी जैसे बाजारों में चना के झंगरी का बाजार सज गया है. सभी चौक-चौराहे पर चने की झंगरी बेची जा रही है. बताया जाता है कि होलिका दहन से पहले चना की झंगरी लाखों रुपये तक की बिक्री हो जाती है.

इसे भी पढ़ेंः Holashtak 2023 Beliefs : आज से शुरू हो गए होलाष्टक,जानिए उससे जुड़ी मान्यताएं

"यह पौराणिक परंपरा है. सदियों काल से आज भी गांव में जीवित है. होलिका दहन में चने की झंगरी जलाने की खास परंपरा है. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत हो जाती है. नये साल की यह पहली फसल होती है, इसलिए इसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. इसके बाद लोग इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं. कहा जाए तो नये साल का यह पहला निवाला होता है"- गोपाल पांडेय, मुख्य पुजारी, श्रीरामजानकी ठाकुरबाड़ी, मसौढ़ी

चने की झंगरी.

पटना: रंगों का त्योहार होली, हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. इस त्योहार को मनाने के लिए खरीददारी शुरू हो गयी है. रंग-गुलाल के साथ खाने-पीन का सामान खरीदा जा रहा है. होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के साथ कुछ परंपराएं जुड़ी हैं. पटना के ग्रामीण इलाकों में होलिका दहन वाली आग में चना की झंगरी (jhangri is cooked in Holika Dahan) को पकाने की पौराणिक परंपरा है. इस झंगरी को होलिका दहन के प्रसाद के रूप में खाया जाता है.

इसे भी पढ़ेंः Holi 2023 : जानिए कितनी पुरानी है होली की परंपरा, किन ग्रंथों में मिलता है उल्लेख

सदियों पुरानी परंपरा: क्यों चने की झंगरी को आग में पकाया जाता है. इसके बारे में मसौढ़ी के श्री राम जानकी ठाकुरबाड़ी मंदिर के पुजारी गोपाल पांडे ने बताया कि यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसका निर्वहन आज भी लोग करते आ रहे हैं. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत हो जाती है. नये साल की यह पहली फसल होती है, इसलिए इसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. यह ऐसी परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. किसानों को लेकर इसका विशेष महत्व है.

नये साल का पहला निवालाः होलिका दहन के समय चना आग में डालने की परंपरा है. इसके बाद सुबह होली शुरू होने के पहले परिवार के लोग प्रसाद स्वरूप उसे खाते हैं. कहा जाए तो नये साल का यह पहला निवाला होता है. पटना के ग्रामीण इलाकों में खासकर मसौढ़ी जैसे बाजारों में चना के झंगरी का बाजार सज गया है. सभी चौक-चौराहे पर चने की झंगरी बेची जा रही है. बताया जाता है कि होलिका दहन से पहले चना की झंगरी लाखों रुपये तक की बिक्री हो जाती है.

इसे भी पढ़ेंः Holashtak 2023 Beliefs : आज से शुरू हो गए होलाष्टक,जानिए उससे जुड़ी मान्यताएं

"यह पौराणिक परंपरा है. सदियों काल से आज भी गांव में जीवित है. होलिका दहन में चने की झंगरी जलाने की खास परंपरा है. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत हो जाती है. नये साल की यह पहली फसल होती है, इसलिए इसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. इसके बाद लोग इसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं. कहा जाए तो नये साल का यह पहला निवाला होता है"- गोपाल पांडेय, मुख्य पुजारी, श्रीरामजानकी ठाकुरबाड़ी, मसौढ़ी

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.