पटना: बिहार नगरपालिका अधिनियम (Bihar Municipal Act) 2007 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) में सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को जवाब देने के लिए चार सप्ताह की मोहलत दी है. डॉ.आशीष कुमार सिन्हा की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) की खंडपीठ ने ये सुनवाई की.
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याचिकाकर्ता की एडवोकेट मयूरी ने कोर्ट को बताया कि यह एक्ट भारतीय संविधान के 74वें संशोधन के मूल भावनाओं के विरुद्ध है. उन्होंने बताया कि सरकार ने राज्य के स्थानीय निकायों की काफी कम कर दी गई हैं. उनके वित्तीय संसाधनों और कर्मचारियों पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं रह गया है. साथ ही अब स्थानीय निकायों के समानांतर ऐसी संस्थाओं का गठन किया गया है, जिसने निगमों का मूलभूत कार्य भी अपने हाथों में ले लिया है.
कोर्ट को बताया गया कि इन्हीं परिस्थितियों में दस लाख की शहरी आबादी वाले निगमों में पटना नगर निगम को म्युनिसिपल परफॉर्मेंस इंडेक्स में सबसे निचले स्तर पर रखा गया है. यह भारत सरकार के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने आंकड़ा दिया है.
इस तरह की परिस्थिति पटना नगर निगम को उनके पूरे अधिकार नहीं दिए जाने के कारण पैदा हुआ है. 31 मार्च 2021 को बिहार नगरपालिका अधिनियम में संशोधन किया गया है. इसके अनुसार म्युनिसिपल बॉडीज से श्रेणी सी और डी के कर्मचारियों से संबंधित सारे अधिकार ले लिए गए हैं.
इसे भी चुनौती देते हुए कहा गया है कि अगर कॉर्पोरेशन को अपने कर्मचारियों पर नियंत्रण नहीं होगा, तो वे स्वतंत्र निकाय के रूप में कैसे कार्य कर सकेंगे. इस मामले पर अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद की जाएगी.
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