पटना: पटना हाईकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामले पर सुनवाई 23 जून को होगी. मुख्य न्यायाधीश केवी चन्द्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है. राज्य सरकार ने रूल्स बनाने के पटना हाईकोर्ट से समय की याचना की. जिसे पटना हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली है. अब कोर्ट 23 जून 2023 सुनवाई करेगी.
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स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को दी थी मोहलत: पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए दिसंबर 2022 तक का मोहलत दिया था. कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया. उस पर राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई अब तक नहीं की गई है..
पिछली सुनवाई में पूरी जानकारी देने का दिया था आदेश: कोर्ट पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को पूरी जानकारी देने का आदेश दिया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या-क्या कमी है सभी का ब्यौरा देने को कहा था. पटना हाईकोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था. अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के तहत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा है. लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या काफी कम है. हर जिले में सात सात स्टाफ चाहिए, जबकि इनकी संख्या काफी कम है.
सुविधा पर राज्य ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया: पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए. साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए. लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है. कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कॉलेज है, लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं. जहां मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कोई कॉलेज नहीं है. जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व है.
बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर: अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया कि पिछली सुनवाइयों में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है. क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था. अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग 12 करोड़ है. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर है.