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राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं को लेकर सुनवाई, रिव्यू बोर्ड गठित करने को लेकर रिपोर्ट देने का निर्देश - ईटीवी भारत न्यूज

Patna High Court : राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति को लेकर पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य में मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड गठित करने को लेकर इसकी प्रगति रिपोर्ट अगली सुनवाई में पेश करने का निर्देश दिया है. पढ़ें पूरी खबर..

पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 8, 2023, 5:53 PM IST

पटना : पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामले पर सुनवाई की गई. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य में मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार जनरल, पटना हाईकोर्ट को प्रगति रिपोर्ट अगली सुनवाई में देने को कहा. पूरे राज्य में प्रमंडल के स्तर पर ये बोर्ड गठित किया जाना है. इस मामलें पर अगली सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद की जाएगी.

रिव्यू बोर्ड गठित करने की प्रगति रिपोर्ट देने का आदेश : पिछली सुनवाई में कोर्ट को राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि नयी नियमावली बना ली गयी है. कोर्ट ने हलफनामा दायर करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था. याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया, उस पर राज्य सरकार की ओर से आधा अधूरा ही कार्य किया गया है. कोर्ट ने पहले की सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था.

मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम के तहत स्टाफ की संख्या नाकाफी : याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा है, लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है. पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए. साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए.

अध्ययन और इलाज के लिए कोई कॉलेज नहीं : कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कॉलेज हैं, लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कोई कॉलेज नहीं है. पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ है. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर है.

ये भी पढ़ें : प्रतियोगिता परीक्षा में अंगिका भाषा को शामिल करने के मामले में पटना HC में सुनवाई, राज्य सरकार से जवाब तलब

पटना : पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामले पर सुनवाई की गई. चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य में मेन्टल हेल्थ रिव्यू बोर्ड के गठन के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार जनरल, पटना हाईकोर्ट को प्रगति रिपोर्ट अगली सुनवाई में देने को कहा. पूरे राज्य में प्रमंडल के स्तर पर ये बोर्ड गठित किया जाना है. इस मामलें पर अगली सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद की जाएगी.

रिव्यू बोर्ड गठित करने की प्रगति रिपोर्ट देने का आदेश : पिछली सुनवाई में कोर्ट को राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि नयी नियमावली बना ली गयी है. कोर्ट ने हलफनामा दायर करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था. याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया, उस पर राज्य सरकार की ओर से आधा अधूरा ही कार्य किया गया है. कोर्ट ने पहले की सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था.

मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम के तहत स्टाफ की संख्या नाकाफी : याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा है, लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है. पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए. साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए.

अध्ययन और इलाज के लिए कोई कॉलेज नहीं : कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कॉलेज हैं, लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां मानसिक रोग के अध्ययन और इलाज के लिए कोई कॉलेज नहीं है. पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ है. उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं नहीं के बराबर है.

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