पटना: अगर इरादे मजबूत और हौसले बुलंद हो तो शारीरिक दिव्यांगता भी राह में रोड़े नहीं अटका सकती. राजधानी पटना का 22 वर्षीय युवक बबलू युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है. दिव्यांगता को हथियार बनाकर बबलू हालात से किसी योद्धा की भांति लड़ रहा है.
पटना की सड़कों पर सरपट चलाता है रिक्शा
बबलू के दोनों पैर भले ही आम युवाओं की तरह नहीं हैं, लेकिन हिम्मत, जोश, जुनून और हौसला किसी से कम नहीं. संघर्ष करने की ऐसी जिवटता, जिसे देख लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं. बबलू आज पढ़ाई के साथ कमाई भी कर रहा है. पढ़ाई के बाद समय बर्बाद करने के बजाए राजधानी की सड़कों पर सरपट ई-रिक्शा चलाता है.
पढ़ाई के साथ कमाई
बबलू पटना यूनिवर्सिटी में फाइनल इयर का छात्र है. कॉलेज में पढ़ाई के बाद ई-रिक्शा चलाकर आय भी कर रहा है. चार भाईयों में तीसरे नंबर पर बबलू के सिर से बचपन में ही मां का साया उठ गया. पिता ललन प्रसाद ने ऑटो रिक्शा चलाकर पालन-पोषण किया. वही, तीनों भाई मजदूरी कर घर चलाते हैं.
ट्यूशन के पैसे से PU में लिया दाखिला
बबलू ने ईटीवी भारत को बताया कि उसका पैतृक गांव पुनपुन स्थित लखना के पास है. गांव में एक छोटा सा मकान है. साल 2007 में पूरा परिवार पटना आ गया. शुरुआत में पान की दुकान चलाते हुए पढ़ाई किया करता था. बबलू अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए 1 से लेकर कक्षा 8 तक ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया. बबलू ने ट्यूशन के पैसे से पटना विश्वविद्यालय में नामांकन कराया. इतिहास विषय लेकर वह स्नातक की पढ़ाई पूरी कर रहा है. बबलू की चाहत प्रतियोगिता परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी करना है.
बबलू का संघर्ष
- शुरुआत में पान की दुकान चलाते हुए की पढ़ाई.
- बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर जमा पैसे से लिया पीयू में दाखिला.
- सुबह 10 से 1 बजे तक यूनिवर्सिटी में करता है पढ़ाई.
- 1 बजे से शाम 5 बजे तक पटना की सड़कों पर ई-रिक्शा चलाना.
- शाम में रोजाना घर पर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी.