पटना: बिहार सरकार ने इस वर्ष एक बड़ा फैसला लिया है इंटर और मैट्रिक की परीक्षा में एक या दो सब्जेक्ट में कुछ नंबरों से फेल करने वाले विद्यार्थियों को ग्रेस मार्क देकर पास कर दिया. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब खराब रिजल्ट को लेकर सरकार ने घोषणा की थी कि वह शिक्षकों की गुणवत्ता की जांच करेगी और खराब रिजल्ट वाले स्कूलों से शिक्षकों को हटाया जाएगा. आखिर सरकार के उस आदेश का क्या हुआ ?
दरअसलस, वर्ष 2020 में इंटर की वार्षिक परीक्षा में एक या दो सब्जेक्ट में कुछ नंबर से फेल करने वाले 72000 से ज्यादा स्टूडेंट्स को सरकार ने राहत देते हुए ग्रेस मार्क देकर पास कर दिया. इस बार बिहार बोर्ड के रिजल्ट भी काफी बेहतर हुए हैं. लेकिन महज 3 साल पहले इंटर में खराब रिजल्ट से परेशान शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी किया था. जिसके तहत जिन सरकारी स्कूलों में रिजल्ट खराब होंगे, वहां के शिक्षकों का मूल्यांकन होगा और उन्हें हटाने की बात भी कही गई थी.
मचा था भारी बवाल
आदेश के बाद आनन-फानन में सरकार के अधिकारियों की ओर से निरीक्षण की व्यवस्था शुरू की गई. स्कूलों में पढ़ाई के दौरान अधिकारी पहुंचते थ. ऑन द स्पॉट शिक्षकों का निरीक्षण करते थे. उन्हें टास्क देकर उनका मूल्यांकन किया जाता था. इसके बाद इस मामले पर भारी बवाल मचा. शिक्षकों ने इसका विरोध शुरू किया. विशेष रूप से शिक्षक संघ ने सरकार से सवाल किया कि आखिर किस आधार पर कोई अधिकारी शिक्षकों का मूल्यांकन कर सकता है.
नहीं बोल रहे अधिकारी
शिक्षक संघ की तरफ से सरकार के इस फैसले का इतना विरोध हुआ कि आखिरकार शिक्षा विभाग को अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा. हालांकि इसके लिए कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई लेकिन यह मामला पूरी तरह दब गया. इस मामले में एक शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. वहीं शिक्षक संघ से जुड़े सदस्य भी इसे ठंडे बस्ते में चले जाने की बात कहने के साथ ही इस पर कुछ बोलने से इंकार कर रहे हैं. हालांकि शिक्षा से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता नवल किशोर यादव ने कहा कि आखिर किसी शिक्षक का मूल्यांकन कोई अधिकारी कैसे कर सकता है.