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अंग्रेजों ने नहीं बनाने दिया था मंदिर, तिलक ने 3 मंजिल मकान को बना दिया था बप्पा का घर

उत्तर प्रदेश के कानपुर में 100 साल से भी ज्यादा का इतिहास संजोय बैठा है यह सिद्धिविनायक मंदिर. इस मंदिर की आधारशिला बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी, जिसमें बप्पा के 8 स्वरूप विराजमान हैं.

सिद्धिविनायक
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Published : Sep 8, 2019, 9:34 PM IST

पटना/कानपुर: जब अंग्रेजों ने मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी थी तो तिलक ने 3 मंजिल मकान को ही बप्पा का घर बना दिया था. जी हां बात 100 साल पहले की है और शहर था कानपुर. महाराष्ट्र से बाहर उत्तर भारत में गणेश उत्सव की शुरुआत होनी थी और इसके लिए जरूरी था गणपति गजानन की स्थापना, लेकिन अंग्रेजों ने पास में ही मस्जिद होने का बहाना बनाकर मंदिर नहीं बनने दिया, लेकिन गणपति विराजे वहीं.

तिलक ने 3 मंजिल मकान को बना दिया था बप्पा का घर

कानपुर के घंटाघर इलाके में स्थापित बप्पा का यह सिद्धिविनायक मंदिर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. यूपी का यह इकलौता मंदिर है, जिसका स्वरूप तीन खंड के मकान जैसा है. इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 8 रूप एक साथ मौजूद हैं. इस गणेश मंदिर की मूर्तियां जयपुर के शिल्पकारों ने गढ़ी हैं. यहां भगवान गणेश के साथ उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं, साथ हैं उनके पुत्र शुभ और लाभ. इस मंदिर में द्वारपालों जय और विजय के साथ मां गंगा भी हैं.

बात सन 1918 की है जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कानपुर में गणेश मंदिर की आधारशिला रखी थी, जिसका विरोध अंग्रेजों ने जमकर किया था. अंग्रेजों का कहना था कि पास में मस्जिद है. इसलिए मंदिर और मस्जिद एक साथ नहीं बन सकते, लेकिन कहते हैं न जब मन में दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी रुकावट खत्म की जा सकती है. लोगों के दबाव में अंग्रेजों ने यह शर्त रख दी कि मंदिर का निर्माण मंदिर के स्वरूप में नहीं होगा.
1 : मयूरेश्वर
2 : सिद्धिविनायक
3 : बल्लासेश्वर
4 : वरद विनायक
5 : चिंतामणि थेऊर
6 : गिरिजात्मज
7 : विघ्नेश्वर
8 : महागणपति

पटना/कानपुर: जब अंग्रेजों ने मंदिर बनाने की इजाजत नहीं दी थी तो तिलक ने 3 मंजिल मकान को ही बप्पा का घर बना दिया था. जी हां बात 100 साल पहले की है और शहर था कानपुर. महाराष्ट्र से बाहर उत्तर भारत में गणेश उत्सव की शुरुआत होनी थी और इसके लिए जरूरी था गणपति गजानन की स्थापना, लेकिन अंग्रेजों ने पास में ही मस्जिद होने का बहाना बनाकर मंदिर नहीं बनने दिया, लेकिन गणपति विराजे वहीं.

तिलक ने 3 मंजिल मकान को बना दिया था बप्पा का घर

कानपुर के घंटाघर इलाके में स्थापित बप्पा का यह सिद्धिविनायक मंदिर 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. यूपी का यह इकलौता मंदिर है, जिसका स्वरूप तीन खंड के मकान जैसा है. इसके साथ ही यहां भगवान गणेश के 8 रूप एक साथ मौजूद हैं. इस गणेश मंदिर की मूर्तियां जयपुर के शिल्पकारों ने गढ़ी हैं. यहां भगवान गणेश के साथ उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि भी विराजमान हैं, साथ हैं उनके पुत्र शुभ और लाभ. इस मंदिर में द्वारपालों जय और विजय के साथ मां गंगा भी हैं.

बात सन 1918 की है जब लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कानपुर में गणेश मंदिर की आधारशिला रखी थी, जिसका विरोध अंग्रेजों ने जमकर किया था. अंग्रेजों का कहना था कि पास में मस्जिद है. इसलिए मंदिर और मस्जिद एक साथ नहीं बन सकते, लेकिन कहते हैं न जब मन में दृढ़ संकल्प हो तो कोई भी रुकावट खत्म की जा सकती है. लोगों के दबाव में अंग्रेजों ने यह शर्त रख दी कि मंदिर का निर्माण मंदिर के स्वरूप में नहीं होगा.
1 : मयूरेश्वर
2 : सिद्धिविनायक
3 : बल्लासेश्वर
4 : वरद विनायक
5 : चिंतामणि थेऊर
6 : गिरिजात्मज
7 : विघ्नेश्वर
8 : महागणपति

Intro:कानपुर :- 100 साल से भी पुराना इतिहास संजोये बैठा है कानपुर का गणेश मंदिर , बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी आधारशिला । रिवॉल्यूशनरी  कैपिटल ऑफ इंडिया के नाम से जाने जाना वाला कानपुर महानगर अपने-आप में भारतवर्ष के कई इतिहास संजोये बैठा हुआ है कानपुर महानगर से कई क्रांतियों की शुरुआत हुई है कानपुर महानगर धार्मिक आस्थाओं का भी एक बड़ा केंद्र है यहां पर हर धर्म से जुड़ा हुआ त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है आज हम आपको कानपुर के एक ऐसे गणेश मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका इतिहास लगभग 100 सालों से भी ज्यादा पुराना हुआ है और यहां लगी गणेश जी की मूर्ति भी लगभग 100 साल पुरानी है आपको जानकर हैरानी होगी इस गणेश मंदिर की आधारशिला बाल गंगाधर तिलक ने रखी थी यह कानपुर का इकलौता मंदिर है जहां से गणेश महोत्सव का शुभारंभ पूरे उत्तर प्रदेश में पहली बार यहीं से शुरू हुआ ।


Body:लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की प्रेरणा से महाराष्ट्र प्रांत में गणों के देवता विघ्न विनाशक श्री गणेश भगवान की सार्वजनिक रूप से एकत्रित होकर पूजा-अर्चना प्रारंभ महाराष्ट्र प्रांत से किया गया गणेश उत्सव के साथ जनता के एकत्रीकरण के लिए अखाड़ों का प्रचलन बढ़ाया गया धीरे-धीरे गणेश पूजा का रूप प्रांत से बाहर भी शुरू हुआ जिसका मुख्य उद्देश्य संगठित होकर स्वतंत्रता की अलख जगाकर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रयास करना इसी प्रकार स्थान स्थान पर जनमानस में राष्ट्रभक्ति करने के लिए गणेश उत्सव देशभर में प्रारंभ हुए । राष्ट्र भक्ति से परिपूर्ण महाराष्ट्र के लोग कानपुर में भी निवास कर रहे थे अंग्रेजों ने कानपुर नगर को छावनी का रूप देने के लिए आवागमन की सुविधाएं जुटाई परिणाम स्वरूप महाराज समुदाय के अनेक परिवारों को की संख्या नगर में बढ़ती गई इतिहास साक्षी है राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर कानपुर नगर बिठूर महाराष्ट्रीयन समुदाय का गढ़ रहा है और राष्ट्रीय एकता के प्रक्षेप में सन 1918 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक अवध प्रांत में आगमन हुआ था तब वह कानपुर भी आए थे इसी दौरान उन्होंने कानपुर में सन 1918 में गणेश मंदिर बनवाने के लिए आधारशिला रखी थी । उसके बाद मंदिर बनाने में कई रचने सामने आई लेकिन महाराष्ट्रीयन उन्हें विशेष दबाव देकर मंदिर निर्माण की स्वीकृति प्राप्त कर ली जिसकी विशेष शर्त यह थी कि मंदिर का निर्माण मंदिर के स्वरूप में ना होकर एक भवन के आकार में होगा और प्रथम तल पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना की जाएगी इसके बाद कानपुर के लाला राम चरण वैश्य ने महाराष्ट्र के बंधुओं के नैतिक सहयोग से 1921 में इस गणेश मंदिर का निर्माण कार्य पूरा कराया


Conclusion:विशेष है यहाँ की मूर्तियां  इस गणेश मंदिर की मूर्तियां जयपुर के कुशल शिल्पकारों द्वारा निर्माण की गई थी इस मंदिर में गणेश भगवान के साथ उनकी पत्नियां रिद्धि-सिद्धि की मूर्तियां भी विराजमान है और उसके साथ उनके पुत्रों शुभ और लाभ की मूर्तियां भी विराजमान है इस मंदिर में द्वारपालो जय विजय व गंगा जी की मूर्तियों का भी निर्माण कराया गया था । लगभग 600 सालों से इस गणेश मंदिर में बप्पा की पूजा नियमानुसार चल रही है हर साल यहां पर गणेश महोत्सव बड़ी धूमधाम के साथ हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लाखों की संख्या में श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने आते हैं उत्तर प्रदेश में गणेश महोत्सव की शुरुआत सबसे पहले इसी मंदिर से शुरू हुई थी बाइट :- सुधीर गुप्ता , सर्वराकार , सिद्धिविनायक गणेश मंदिर अखण्ड प्रताप सिंह कानपुर ।
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