पटनाः एक तरफ बिहारी स्वाभिमान और अस्मिता की बातें होती है और दूसरी तरह बिहार के विभूतियों की उपेक्षा की जा रही है. संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सच्चिदानंद सिन्हा को उनका ही प्रदेश बिहार भूलने लगा है. सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष थे. बिहार को अलग राज्य के तौर पर गठित करने की मांग सबसे पहले उन्होंने ही की थी.
सच्चिदानंद ने की थी बिहार राज्य की मांग
सच्चिदानंद सिन्हा ने 1893 में बिहार राज्य की परिकल्पना की थी. बंगाल जब यूनाइटेड प्रोविंस 1906 में अलग हुआ तब इसका नाम बिहार रखने की उन्होंने पुरजोर मांग की. तब उनकी यह मांग नहीं मानी गई लेकिन उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा और 22 मार्च 1912 को बिहार को, बंगाल से अलग करके अलग राज्य का दर्जा दिया गया.
पटना कॉलेज को दिलाया विश्वविद्यालय का दर्जा
सच्चिदानंद सिन्हा अपने जमाने में बहुत बड़े बैरिस्टर हुआ करते थे. यूनाइटेड प्रोविंस से बंगाल के अलग होने के बाद उन्होंने पटना कॉलेज को पटना विश्वविद्यालय बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया और इसे पटना विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल हो गया. इससे पहले पटना कॉलेज कोलकाता विश्वविद्यालय के अंतर्गत हुआ करता था.
पीयू के थे वीसी
पटना विश्वविद्यालय में इतिहास विषय के शोधार्थी प्रोफेसर माया नंद ने बताया कि सच्चिदानंद सिन्हा को भुलाया नहीं जा सकता. वह लंबे अरसे तक पटना विश्वविद्यालय के वीसी के पद पर रहे. विदेश नीति पर दिए गए उनके भाषण आज भी एक मिसाल है.
सच्चिदानंद सिन्हा की जयंती पर राजकीय समारोह की घोषणा
सच्चिदानंद सिन्हा पर शोध करने वाले हरेंद्र प्रसाद ने बताया कि सच्चिदानंद सिन्हा चाहते थे कि बिहार का अपना एक म्यूजियम हो. जिसमें ऐतिहासिक और पौराणिक वस्तुओं का संरक्षण हो सके. उन्होंने बताया कि 10 नवंबर 2009 को सच्चिदानंद सिन्हा की जयंती के मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी जयंती को राजकीय समारोह के रूप में मनाने की घोषणा की.
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सच्चिदानंद की स्मारिका तक नहीं
हरेंद्र प्रसाद ने बताया कि उसी मौके पर नीतीश कुमार ने सच्चिदानंद सिन्हा की आदम कद प्रतिमा और स्मारिका बनाने की घोषणा की थी. लेकिन घोषणा के 10 वर्ष बाद भी उनकी प्रतिमा और स्मारिका स्थापित नहीं हो सकी है. उन्होंने बताया कि बिहार बोर्ड का इंटर काउंसिल बोर्ड ऑफिस का जो कार्यालय है वह विशाल ऐतिहासिक भवन सचिदा बाबू की संपत्ति थी और इसके ठीक बगल में सिन्हा लाइब्रेरी है जो उनकी निजी लाइब्रेरी हुआ करती थी जिसे बाद में उन्होंने पब्लिक के लिए ओपन कर दिया था.
सरकार कर रही है उपेक्षा
हरेंद्र प्रसाद ने कहा कि सरकारों ने सच्चिदानंद सिन्हा के संपत्ति का भरपूर उपयोग किया है लेकिन उनके कृतित्व को लोग जान सके, इसके लिए कहीं भी उनकी स्मारिका नहीं बनाई है. सभी सरकारों ने उनकी उपेक्षा ही की है. बिहार के समृद्ध लाइब्रेरी में गिना जाने वाला सिन्हा लाइब्रेरी आज बदहाल स्थिति में है. सरकार इसके रखरखाव पर ध्यान नहीं दे रही है.
संविधान पर हस्ताक्षर
हरेंद्र प्रसाद ने बताया कि सच्चिदानंद सिन्हा दौर के बड़े नेता बी कृपलानी ने सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का पहला अध्यक्ष बनाए जाने की अनुशंसा की थी. संविधान सभा के अध्यक्ष बनने के कुछ दिनों बाद ही सच्चिदानंद सिन्हा की तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद राजेंद्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन जब संविधान तैयार हो गया. तब उस पर सच्चिदानंद सिन्हा का हस्ताक्षर कराने के लिए चार्टर्ड प्लेन से संविधान को दिल्ली से पटना लाया गया था.