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पूरे बिहार में आज मनाई जा रही बकरीद, जानें क्या हैं मान्याताएं

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Published : Aug 1, 2020, 10:39 AM IST

मुसलमानों का महत्वपूर्ण त्योहार बकरीद पूरे बिहार में मनाया जा रहा है. लेकिन इस बार कोरोना ने त्योहार की रोनक को फिका कर दिया है. लोग दूर से ही बना गले मिले बकरीद की मुबारकबाद दे रहे हैं

bakrid
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पटनाः आज पूरे देश में बकरीद का त्योहार है, जो मुसलमान भाईयों के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. बिहार में भी बकरीद सादे तरीके से मनाई जा रही है. लॉकडाउन के कारण सभी मस्जिदें बंद पड़ी हैं. इसलिए लोग यहां नमाज अता करने नहीं पहुंचे हैं.

कोरोना ने फिकी की बकरीद की रोनक
कोरोना महामारी को लेकर इस बार बकरीद की त्योहार में कोई खास रौनक नहीं दिख रही है. लेकिन लोगों ने त्योहार को लेकर जरूरी सामानों की तैयारियां की है. बकरे की कुर्बानी घरों के अंदर ही दी जाएगी. छोटे-छोटे बच्चों में इसे लेकर उत्साह देखा जा रहा है. लोग घरों के अंदर ही बकरीद की नमाज अता कर रहे हैं और एक-दूसरे को दूर से ही बिना गले मिले ईद की मुबारकबाद दे रहे हैं.

घर में नमाज अदा करते लोग
घर में नमाज अता करते लोग

क्या है बकरीद मनाने के पीछे मान्यता
कहा जाता है कि अल्लाह ने अपने नबी और पैगंबर हजरत इब्राहिम की इस दिन परीक्षा ली थी. दरअसल हजरत इब्राहिम की कोई औलाद नहीं थी. उन्होंने अल्लाह से प्राथना की कि या खुदा अगर आप मुझे संतान अता करेंगे तो मैं कुर्बानी दूंगा. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अपनी दुआ में खुदा से यह नहीं कहा था कि वह किस चीज की कुर्बानी देंगे. फिर खुदा ने उन्हें एक बेटा दे दिया. जब बेटा बड़ा हुआ तो हजरत इब्राहिम को सपना आया कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दे रहें हैं, तीन दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. तब इब्राहिम ने अपने छोटे से बेटे इस्माइल से सारी बात बताई तो वह खुद अल्लाह की राह में कुर्बान होने के लिए तैयार हो गए.

बकरे का बाजार
बकरे का बाजार

अल्लाह ने ली थी हजरत इब्राहिम की परीक्षा
हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की राह में अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए उन्हें सुनसान जगह पर ले गए. फिर अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि अपने बेटे को जिब्ह (बली) करते समय वह देख ना सकें. फिर उन्होंने अपने बेटे को लिटा कर उस पर छुरी चला दी. उसके बाद जब अपनी आंख से पट्टी हटाई तो बेटा सामने खड़ा था और दुंबा (बकरे जैसा अरबी जानवर) जिब्ह हो गया था.

तब से लेकर आज तक मुसलमान अपने पैगंबर की इसी याद को बकरीद और बकरे की कुर्बानी के रूप में अदा करते हैं. बकरे की कुर्बानी देने से पहले मुसलमान नमाज अदा करके सुख और शांति की दुआ करते हैं.

तीन भागों में बांटते है कुर्बनी का मीट
वहीं बकरे की कुर्बानी के बाद उसे तीन हिस्से में बांट दिया जाता है. एक हिस्सा गरीबों को दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है. जबकि तीसरा हिस्सा खुद के इस्तेमाल के लिए रखा जाता है. मीट को बांटने में गरीबों का ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है, ताकि जो गरीब कुर्बानी कराने में सक्षम नहीं हैं उन तक कुर्बानी का मीट पहुंच सके.

बता दें कि इस बार अन्य सभी त्योहारों की तरह बकरीद भी कोरोना महामरी को लेकर फिकी पड़ गई. लोग अपने घरों में रह कर ही बकरे की कुर्बानी कर रहे हैं. नमाज भी घर पर ही पढ़ी जा रही है. लोग एक दूसरे से दूर रह कर पर्व के जरूरी कामों को पूरा कर रहे हैं, साथ ही लोग अल्लाह से ये कामना कर रहे हैं कि इस महामारी को पूरी दुनिया से जल्द से जल्द दूर कर दें और दुनिया में फिर से खुशी और शांति का माहौल पैदा हो, लोग आपसी भाईचारे के साथ देश में रहें और देश विकास के पथ पर अग्रसर हो.

पटनाः आज पूरे देश में बकरीद का त्योहार है, जो मुसलमान भाईयों के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है. बिहार में भी बकरीद सादे तरीके से मनाई जा रही है. लॉकडाउन के कारण सभी मस्जिदें बंद पड़ी हैं. इसलिए लोग यहां नमाज अता करने नहीं पहुंचे हैं.

कोरोना ने फिकी की बकरीद की रोनक
कोरोना महामारी को लेकर इस बार बकरीद की त्योहार में कोई खास रौनक नहीं दिख रही है. लेकिन लोगों ने त्योहार को लेकर जरूरी सामानों की तैयारियां की है. बकरे की कुर्बानी घरों के अंदर ही दी जाएगी. छोटे-छोटे बच्चों में इसे लेकर उत्साह देखा जा रहा है. लोग घरों के अंदर ही बकरीद की नमाज अता कर रहे हैं और एक-दूसरे को दूर से ही बिना गले मिले ईद की मुबारकबाद दे रहे हैं.

घर में नमाज अदा करते लोग
घर में नमाज अता करते लोग

क्या है बकरीद मनाने के पीछे मान्यता
कहा जाता है कि अल्लाह ने अपने नबी और पैगंबर हजरत इब्राहिम की इस दिन परीक्षा ली थी. दरअसल हजरत इब्राहिम की कोई औलाद नहीं थी. उन्होंने अल्लाह से प्राथना की कि या खुदा अगर आप मुझे संतान अता करेंगे तो मैं कुर्बानी दूंगा. लेकिन हजरत इब्राहिम ने अपनी दुआ में खुदा से यह नहीं कहा था कि वह किस चीज की कुर्बानी देंगे. फिर खुदा ने उन्हें एक बेटा दे दिया. जब बेटा बड़ा हुआ तो हजरत इब्राहिम को सपना आया कि वह अपने बेटे की कुर्बानी दे रहें हैं, तीन दिनों तक ऐसा ही चलता रहा. तब इब्राहिम ने अपने छोटे से बेटे इस्माइल से सारी बात बताई तो वह खुद अल्लाह की राह में कुर्बान होने के लिए तैयार हो गए.

बकरे का बाजार
बकरे का बाजार

अल्लाह ने ली थी हजरत इब्राहिम की परीक्षा
हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की राह में अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए उन्हें सुनसान जगह पर ले गए. फिर अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि अपने बेटे को जिब्ह (बली) करते समय वह देख ना सकें. फिर उन्होंने अपने बेटे को लिटा कर उस पर छुरी चला दी. उसके बाद जब अपनी आंख से पट्टी हटाई तो बेटा सामने खड़ा था और दुंबा (बकरे जैसा अरबी जानवर) जिब्ह हो गया था.

तब से लेकर आज तक मुसलमान अपने पैगंबर की इसी याद को बकरीद और बकरे की कुर्बानी के रूप में अदा करते हैं. बकरे की कुर्बानी देने से पहले मुसलमान नमाज अदा करके सुख और शांति की दुआ करते हैं.

तीन भागों में बांटते है कुर्बनी का मीट
वहीं बकरे की कुर्बानी के बाद उसे तीन हिस्से में बांट दिया जाता है. एक हिस्सा गरीबों को दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है. जबकि तीसरा हिस्सा खुद के इस्तेमाल के लिए रखा जाता है. मीट को बांटने में गरीबों का ज्यादा ख्याल रखना पड़ता है, ताकि जो गरीब कुर्बानी कराने में सक्षम नहीं हैं उन तक कुर्बानी का मीट पहुंच सके.

बता दें कि इस बार अन्य सभी त्योहारों की तरह बकरीद भी कोरोना महामरी को लेकर फिकी पड़ गई. लोग अपने घरों में रह कर ही बकरे की कुर्बानी कर रहे हैं. नमाज भी घर पर ही पढ़ी जा रही है. लोग एक दूसरे से दूर रह कर पर्व के जरूरी कामों को पूरा कर रहे हैं, साथ ही लोग अल्लाह से ये कामना कर रहे हैं कि इस महामारी को पूरी दुनिया से जल्द से जल्द दूर कर दें और दुनिया में फिर से खुशी और शांति का माहौल पैदा हो, लोग आपसी भाईचारे के साथ देश में रहें और देश विकास के पथ पर अग्रसर हो.

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