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तसला की नाव... चारों तरफ पानी ही पानी.. जानें बिहार के इस गांव की दिल दहला देने वाली कड़वी सच्चाई - no school in rainy season - NO SCHOOL IN RAINY SEASON

Akauna Panchayat Bihar: आज हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं,जहां के बच्चे बारिश के मौसम में स्कूल नहीं जाते. पूरा का पूरा गांव 6 महीने के लिए पानी के बीचों बीच कैद हो जाता है. ये नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा का हाल है, जहां तसला (बड़ा गहरा बर्तन) की जुगाड़ नाव लोगों के आवागमन का एकमात्र साधन है.

नालंदा का अकौना पंचायत का तोड़ल बिगहा गांव
नालंदा का अकौना पंचायत का तोड़ल बिगहा गांव (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 2, 2024, 2:41 PM IST

Updated : Sep 2, 2024, 6:32 PM IST

बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे (ETV Bharat)

नालंदा: यूं तो बच्चों के स्कूल में गर्मियों की छुट्टी के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन बरसात में भी बच्चों की छुट्टी, यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है. डिजिटल इंडिया के दौर में बिहार के इस गांव की तस्वीर देख कोई भी शर्मा जाए. गांव के नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में ग्रामीण गांव में ही 6 महीने के लिए कैद हो जाते हैं.

बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे: इस कारण गांव में 35 से 50 बच्चे 6 महीने के लिए शिक्षा से महरूम रह जाते हैं. इतना ही नहीं गांव वालों को रोजमर्रा की जरूरी चीजों को खरीद कर लाने के लिए जान जोखिम में डालकर देसी जुगाड़ के जरिए आना जाना पड़ता है. पूरा मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा के बेन प्रखंड के अकौना पंचायत के तोड़ल बिगहा गांव का है, जहां 7 बार के विधायक व बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का विधायकी क्षेत्र है.

no school in rainy season
तोड़ल बिगहा गांव (ETV Bharat)

पानी में कैद हो जाते हैं लोग: इस गांव में लगभग 100 से 150 घरों की आबादी में 500 लोग रहते हैं. जो इसी तरह से बारिश के मौसम में परेशानियों का सामना करते हैं. वहीं दूसरी तरफ 7 निश्चय योजना के तहत गांव का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, जहां नाली गली से लेकर पक्की सड़क तक बनवाई जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यहां के लोगों के साथ आखिर सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है.

पुल के लिए तरस रहे ग्रामीण: इस गांव को बसे हुए आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी ग्रामीण एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं. तोड़ल बिगहा गांव पैमार नदी के किनारे अवस्थित है. ग्रामीणों ने बताया कि गांव के नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में सभी गांव में ही 6 महीने के लिए क़ैद हो जाते हैं. गांव में 35 से 50 बच्चे 6 महीने के लिए शिक्षा से महरूम रह जाते हैं.

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बारिश में जलकैदी बन जाते हैं ग्रामीण (ETV Bharat)

तसला की नाव है सहारा: गांव वालों को रोज़मर्रा की जरूरी चीजों को खरीदने के लिए जान जोखिम में डालकर देसी जुगाड़ के जरिए आना जाना पड़ता है. तसला के देहाती जुगाड़ से बनाए गए नाव पर सिर्फ दो से तीन आदमी ही एक बार में चढ़ कर पार हो सकते हैं. अगर थोड़ी सी भी चूक हुई तो गहरे पानी में डूबकर मौत हो सकती है.

स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं: तोड़ल बिगहा गांव में यादव, केवट, तेली और ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. इस गांव में स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है. रात में अगर कोई गांव का बीमार पड़ जाए तो गांव से बाहर जाने के लिए देसी नाव के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. ईटीवी भारत से बात करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि जब भी कोई चुनाव आता है तो नेता वोट मांगने आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं.

no school in rainy season
बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे (ETV Bharat)

"जीतने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि झांकने तक नहीं आता है. गांव के लोगों को कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. नदी पर पुल नहीं होने की वजह से स्कूली बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं."- ग्रामीण

अकौना पंचायत के मुखिया ने क्या कहा?: अकौना पंचायत के मुखिया अभय सिंह ने बताया कि हमारे पास इतना फंड नहीं आता है कि पुल बना सके. बांस का भी पुल बनाने में 30 से 40 हजार रुपए खर्च आता है, जबकि सरकार की ओर से मात्र 7 हजार रुपए मिलता है.

"गांव से निकलने का एक ही रास्ता है, जो पानी से बरसात में भर जाता है. इसके लिए कई बार मंत्री व पदाधिकारी को अवगत कराया गया है. बावजूद इसके सिर्फ़ आश्वासन मिलता है. यहां के ग्रामीण आदिमानव की जिंदगी जीने को मजबूर हैं."- अभय सिंह, मुखिया, अकौना पंचायत

no school in rainy season
नीतीश कुमार के गृह जिले का हाल देखिए (ETV Bharat)

उफान पर नदियां: आपको बता दें कि बीते 3-4 सालों से बारिश नहीं होने की वजह से ज़िले की सभी छोटी बड़ी नदियां सुखी हुई थीं. एक हफ्ते से लगातार रूक रुककर हो रही बारिश और झारखंड के तिलैया डैम से छोड़े गये पानी के कारण ज़िले की सभी छोटी बड़ी नदियां उफ़ान पर हैं. कुछ इलाकों का तटबंध टूट गया है तो कहीं ग्रामीण सड़कें और पुल बह जाने से आवागमन बाधित हो गया है. इनकी मरम्मती का काम खुद डीएम शशांक शुभंकर अपनी निगरानी में करवा रहे हैं.

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तसला की जुगाड़ नाव (ETV Bharat)

कब बनेगा पुल?: अब ऐसे में देखना यह होगा कि तोड़ल बिगहा गांव के लोगों को दूसरे गांव की तरह नदी के ऊपर पुल बनाकर कब तक मिलता है. फिलहाल प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा ग्रामीणों के साथ ही मासूम बच्चों को भी उठाना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- स्कूल में नहीं.. यहां कब्रिस्तान में होती है बच्चों की पढ़ाई, बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल देख लीजिए - School In Graveyards

बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे (ETV Bharat)

नालंदा: यूं तो बच्चों के स्कूल में गर्मियों की छुट्टी के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन बरसात में भी बच्चों की छुट्टी, यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है. डिजिटल इंडिया के दौर में बिहार के इस गांव की तस्वीर देख कोई भी शर्मा जाए. गांव के नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में ग्रामीण गांव में ही 6 महीने के लिए कैद हो जाते हैं.

बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे: इस कारण गांव में 35 से 50 बच्चे 6 महीने के लिए शिक्षा से महरूम रह जाते हैं. इतना ही नहीं गांव वालों को रोजमर्रा की जरूरी चीजों को खरीद कर लाने के लिए जान जोखिम में डालकर देसी जुगाड़ के जरिए आना जाना पड़ता है. पूरा मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह क्षेत्र नालंदा के बेन प्रखंड के अकौना पंचायत के तोड़ल बिगहा गांव का है, जहां 7 बार के विधायक व बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का विधायकी क्षेत्र है.

no school in rainy season
तोड़ल बिगहा गांव (ETV Bharat)

पानी में कैद हो जाते हैं लोग: इस गांव में लगभग 100 से 150 घरों की आबादी में 500 लोग रहते हैं. जो इसी तरह से बारिश के मौसम में परेशानियों का सामना करते हैं. वहीं दूसरी तरफ 7 निश्चय योजना के तहत गांव का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है, जहां नाली गली से लेकर पक्की सड़क तक बनवाई जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यहां के लोगों के साथ आखिर सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है.

पुल के लिए तरस रहे ग्रामीण: इस गांव को बसे हुए आजादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी ग्रामीण एक अदद पुल के लिए तरस रहे हैं. तोड़ल बिगहा गांव पैमार नदी के किनारे अवस्थित है. ग्रामीणों ने बताया कि गांव के नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात में सभी गांव में ही 6 महीने के लिए क़ैद हो जाते हैं. गांव में 35 से 50 बच्चे 6 महीने के लिए शिक्षा से महरूम रह जाते हैं.

no school in rainy season
बारिश में जलकैदी बन जाते हैं ग्रामीण (ETV Bharat)

तसला की नाव है सहारा: गांव वालों को रोज़मर्रा की जरूरी चीजों को खरीदने के लिए जान जोखिम में डालकर देसी जुगाड़ के जरिए आना जाना पड़ता है. तसला के देहाती जुगाड़ से बनाए गए नाव पर सिर्फ दो से तीन आदमी ही एक बार में चढ़ कर पार हो सकते हैं. अगर थोड़ी सी भी चूक हुई तो गहरे पानी में डूबकर मौत हो सकती है.

स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं: तोड़ल बिगहा गांव में यादव, केवट, तेली और ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. इस गांव में स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है. रात में अगर कोई गांव का बीमार पड़ जाए तो गांव से बाहर जाने के लिए देसी नाव के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. ईटीवी भारत से बात करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि जब भी कोई चुनाव आता है तो नेता वोट मांगने आते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं.

no school in rainy season
बरसात में 6 महीने स्कूल नहीं जाते बच्चे (ETV Bharat)

"जीतने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि झांकने तक नहीं आता है. गांव के लोगों को कोई भी सरकारी सुविधा नहीं मिलती है. नदी पर पुल नहीं होने की वजह से स्कूली बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं."- ग्रामीण

अकौना पंचायत के मुखिया ने क्या कहा?: अकौना पंचायत के मुखिया अभय सिंह ने बताया कि हमारे पास इतना फंड नहीं आता है कि पुल बना सके. बांस का भी पुल बनाने में 30 से 40 हजार रुपए खर्च आता है, जबकि सरकार की ओर से मात्र 7 हजार रुपए मिलता है.

"गांव से निकलने का एक ही रास्ता है, जो पानी से बरसात में भर जाता है. इसके लिए कई बार मंत्री व पदाधिकारी को अवगत कराया गया है. बावजूद इसके सिर्फ़ आश्वासन मिलता है. यहां के ग्रामीण आदिमानव की जिंदगी जीने को मजबूर हैं."- अभय सिंह, मुखिया, अकौना पंचायत

no school in rainy season
नीतीश कुमार के गृह जिले का हाल देखिए (ETV Bharat)

उफान पर नदियां: आपको बता दें कि बीते 3-4 सालों से बारिश नहीं होने की वजह से ज़िले की सभी छोटी बड़ी नदियां सुखी हुई थीं. एक हफ्ते से लगातार रूक रुककर हो रही बारिश और झारखंड के तिलैया डैम से छोड़े गये पानी के कारण ज़िले की सभी छोटी बड़ी नदियां उफ़ान पर हैं. कुछ इलाकों का तटबंध टूट गया है तो कहीं ग्रामीण सड़कें और पुल बह जाने से आवागमन बाधित हो गया है. इनकी मरम्मती का काम खुद डीएम शशांक शुभंकर अपनी निगरानी में करवा रहे हैं.

no school in rainy season
तसला की जुगाड़ नाव (ETV Bharat)

कब बनेगा पुल?: अब ऐसे में देखना यह होगा कि तोड़ल बिगहा गांव के लोगों को दूसरे गांव की तरह नदी के ऊपर पुल बनाकर कब तक मिलता है. फिलहाल प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा ग्रामीणों के साथ ही मासूम बच्चों को भी उठाना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- स्कूल में नहीं.. यहां कब्रिस्तान में होती है बच्चों की पढ़ाई, बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल देख लीजिए - School In Graveyards

Last Updated : Sep 2, 2024, 6:32 PM IST
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