पटना: अयोध्या, रामलला और बाबरी मस्जिद विवाद एक बार फिर चर्चा में है. बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अध्यक्ष रहे और श्री राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अयोध्या विवाद के मुकदमे में पक्षकार अचार्य किशोर कुणाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
बता दें कि रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल साल 1990 से लेकर 1992 के बीच गृह मंत्रालय में विशेष पदस्थ अधिकारी थे और चंद्रशेखर सरकार के दौरान मंदिर-मस्जिद विवाद सुलझाने को लेकर दोनों समुदायों के बीच बातचीत में उन्होंने अहम भूमिका भी निभाई थी.
पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े कई अहम सवालों का सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिया.
सवाल 01: अयोध्या में विवादित स्थल पर प्राचीन मंदिर होने का कोई ठोस प्रमाण है?
जवाब : मंदिर तो वहीं था. लेकिन जिस स्थान पर मंदिर का विवादित भवन था. वहीं पर श्री राम का मंदिर था जिसके बहुत सारे प्रमाण है और वहां पर एक मंदिर भी था. जिसको तोड़कर बाद में मस्जिद बना दी गई. 1990 से 1992 तक उस समय देश के तीन प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल था. उस समय हम उस जगह के ओएसडी थे. लेकिन उस समय कोई मंदिर का प्रमाण नहीं था कि प्रमाणिक रूप से कार्य संकेत कि यहां पर मंदिर था. लेकिन 2010 में जब फैसला आया उस समय कुछ प्रमाण थे जो हाई कोर्ट में दिए गए तो हाईकोर्ट ने बराबरी का फैसला दिया. 2016 से 2017 में इतने प्रमाण दिए कि जिसकी आधार पर कोई संशय नहीं है कि वहां पर कोई मंदिर नहीं था. जो मामला कोर्ट में चल रहा है जिसमें हम लोगों ने कोर्ट के सामने ठोस सबूत भी पेश किए हुए हैं.
सवाल 02: इस विवाद को इतने लंबा खींचने के लिए कौन जिम्मेदार हैं?
जवाब : इस प्रश्न का जवाब देते हुए आचार्य किशोर कुणाल ने कहा कि पहले तो लोगों ने सोचा कि मुसीबत आएगी इसलिए सब लोग चाहते थे कि कोर्ट का फैसला नहीं हो. इसलिए फैसला टलते जाए. किसी एक व्यक्ति या संस्था किसी अदालत को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है. हर लोग चाहते थे कि मामला टलता जाए. वहां पर कोई विधि व्यवस्था नहीं थी. यदि कोर्ट का फैसला आ जाता तो लोग परिणाम से डर रहे थे कि वहां पर खून खराबा होगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जितने जजेज का जो उनका फैसला आया, जिनको जितनी शिकायत करनी हो आलोचना करनी है वह कर लें. लेकिन उस फैसले के बाद देश में शांति भंग नहीं हुई. कोर्ट का फैसला लोगों को सर्वमान्य हो गया था.
सवाल 03: आपने ठोस सबूत की बात की तो कोर्ट फैसले में विलंब क्यों हो रहा है?
जवाब : ठोस सबूत के सवाल पर आचार्य किशोर कुणाल बताते हैं कि 1990 में कोई ठोस सबूत नहीं थे. लेकिन 2010 में कुछ सबूत मिले जो कोर्ट के सामने रखा और कोर्ट ने बराबरी का फैसला दिया. अभी तो 2019 में हम लोगों ने जो कुछ भी ठोस सबूत मिला. उस पर कोर्ट में फेस किए हैं. उस पर कोई विचार नहीं किया है. अगर कोर्ट इस साक्ष्य पर विचार करता है तो संभव उनका फैसला राम जन्म भूमि के पक्ष में ही आएगा.
सवाल 04: राजनीतिक पार्टी हो या कोर्ट सहमति के आधार पर फैसले का पक्षधर हैं. लेकिन इतना लंबा समय इसके पीछे क्या कारण हो सकती है?
जवाब : आचार्य किशोर कुणाल बताते हैं कि 2011 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई ऐसे में समान विवाद जो सुप्रीम कोर्ट में फाइल की गई थी उसका नंबर दो हजार अट्ठारह में आया है. सुप्रीम कोर्ट में मामला नंबर के आधार पर ही चलता है. अपील नंबर के अनुसार इसमें कोई विलंब नहीं हुआ है. 2018 में अपने नंबर के अनुसार अयोध्या विवाद मामले का नंबर आया हुआ है. लेकिन देश को जल्दी है हिंदूओं को जल्दी है. इसलिए उनको लगता है कि फैसले में विलंब हो रहा है. फैसला सही हो देर से आए. लेकिन दुरुस्त फैसला आए. क्योंकि सबसे बड़ा न्यायालय है. इसलिए न्यायालय से कोई गलती फैसला होगा, फिर किसी अंतिम व्यक्ति को न्याय नहीं मिल पाएगा.
क्या है अयोध्या विवाद
अयोध्या विवाद को सालों हो गए हैं, लेकिन अभी तक इसका समाधान नहीं निकल पाया है. विवाद ज्यों का त्यों बना हुआ है. साल 1989 में राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद जमीन विवाद का ये मामला पहली बार इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था.
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसल सुनाया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था...
· अयोध्या के विवादित स्थल को रामजन्मभूमि करार दिया था.
· हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था.
· इस जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया था.
· जिसमें ने एक हिस्सा हिंदू महासभा को दिया गया जिसमें राम मंदिर बनना था.
· दूसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था.
· विवादित स्थल का तीसरा निरमोही अखाड़े को दिया गया था.
बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या विवाद का आपसी बातचीत से हल निकालने के लिये गत आठ मार्च 2019 को मध्यस्थता समिति गठित की थी. न्यायालय ने समिति की कार्यवाही को बेहद गोपनीय रखने की हिदायत देते हुए इसकी मीडिया कवरेज पर पाबंदी लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने मध्यस्थता पैनल को अपनी रिपोर्ट पहले 18 जुलाई 2019 को सौंपने को कहा था, मगर बाद में उसकी अवधि 31 जुलाई तक बढ़ा दी.
किशोर कुणाल का अयोध्या विवाद से संबंध:
इस फैसले के बाद दिसंबर में हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया, तब से यथास्थिति बरकरार है. इस बीच बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के पूर्व चेयरमैन किशोर कुणाल को राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद में एक पक्षकार बनाया गया. श्री राम जन्म भूमि पुनरोद्धार समिति की ओर से अयोध्या विवाद के मुकदमे में किशोर कुणाल पक्षकार हैं.
किशोर कुणाल की किताब: 'अयोध्या रीविजिटेड'
1972 बैच के पूर्व आईपीएस आचार्य किशोर कुणाल ने 'अयोध्या रीविजिटेड' किताब लिखी है. इस किताब में राम मंदिर से लेकर बाबरी मस्जिद तक के इतिहास पर कई चौंकाने वाले दावे किए गए हैं.
किताब का फॉर्वर्ड भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेबी पटनायक ने लिखा है और बकौल लेखक फॉर्वर्ड लिखने के लिए उन्होंने 14 महीने का समय लिया. फॉर्वर्ड लिखने से पहले जेबी पटनायक की शर्त थी कि वे मैनुस्क्रिप्ट पूरी पढ़ेंगे और तथ्यों की छानबीन से संतुष्ट होने के बाद ही लिखेंगे.
कौन हैं किशोर कुणाल:
12 जून 1950 में आचार्य किशोर कुणाल का जन्म मुजफ्फरपुर में हुआ था. उन्होंने इतिहास और संस्कृत भाषा में पढ़ाई पूरी की. किशोर कुणाल सेवानिवृत भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी और संस्कृत अध्येता हैं. वे बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष और महावीर मन्दिर न्यास के सचिव भी हैं. साथ ही पटना के ज्ञान निकेतन नामक प्रसिद्ध विद्यालय के संस्थापक भी हैं.
किशोर कुणाल का कार्यकाल
किशोर कुणाल ने 20 साल की उम्र में आईपीएस क्वालीफाई कर लिया था. 1972 में कुणाल गुजरात कैडर में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बने. उनकी पहली पोस्टिंग आनंद में पुलिस अधीक्षक के रूप में थी.1978 तक वह अहमदाबाद के पुलिस उपायुक्त बने. 1983 में मास्टर की डिग्री पूरा होने के बाद कुणाल को पटना में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था.
2001 में लिया वॉलेंट्री रिटायरमेंट
पुलिस करियर के दौरान कुणाल को अयोध्या विवाद पर विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बीच मध्यस्थता करने के लिए प्रधानमंत्री वीपी सिंह के द्वारा विशेष ड्यूटी (अयोध्या) पर अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था. लेकिन भगावन के प्रति गहरी भक्ति होने के कारण किशोर कुणाल 2001 में अपनी स्वेच्छा से भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त ले लिया.
2008 में सामुदायिक और सामाजिक सेवाओं में उनके योगदान के लिए उन्हें भागवान महावीर पुरस्कार मिला. आचार्य कुणाल यह पुरस्कार पाने वाले बिहार-झारखंड के पहले व्यक्ति हैं.