पटना: कोरोना वायरस के खतरों को देखते हुए कई महीनों से न्यायालय में कामकाज लगभग ठप पड़े हैं. न्यायालय में काम करने वाले गैर-वेतन भोगी कर्मियों की स्थिति रोजाना बद-से-बद्तर होती जा रही है. उनके सामने अब रोजी-रोटी की समस्या आन पड़ी है. वर्चुअल कोर्ट ही वकीलों की जीविका का साधन बन पा रहा है.
अधिवक्ता हैं दाने-दाने को मोहताज!
बिहार के न्यायालयों में लंबित केसों की संख्या पहले से ही ज्यादा है. उसपर से कोरोना काल में केस की संख्या और बढ़ गई. हाई कोर्ट में दो लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. कोविड काल में 16 जून तक 8676 केस इस वर्चुअल तरीके से निपटाए गए हैं.
मुंशी और कोर्ट क्लर्क की स्थिति बेहद दयनीय
न्यायालय में हर रोज 6000 से 7000 वकील आते हैं. कुल मिलाकर 10 हजार वकीलों का रजिस्ट्रेशन है. लॉकडाउन के दौरान हाईकोर्ट से जुड़े वैसे कर्मी परेशान हैं, जिन्हें वेतन नहीं मिल पा रहा है. रोज कमाने-खाने वाले वकील, मुंशी और कोर्ट क्लर्क की स्थिति बेहद दयनीय है.
वर्चुअल कोर्ट ही कमाई का जरिया
पिछले कुछ वक्त से हाईकोर्ट में वर्चुअल कोर्ट चल रहे हैं. लेकिन उनमें बहुत कम मामलों की सुनवाई हो रही है. वैसे मामलों की सुनवाई की जा रही है, जिनमें आरोपी जेल में हों. वर्चुअल कोर्ट से सीनियर एडवोकेट थोड़ी बहुत कमाई कर पा रहे हैं. लेकिन, मुंसिफ कोर्ट के क्लर्क और जूनियर वकीलों को कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है.
कमाई से पूरी तरह महरूम क्लर्क और मुंशी
पटना हाईकोर्ट में औसतन 5 हजार मामले दर्ज होते हैं. उनमें 200 से 300 मामले बेल से जुड़े होते हैं. लेकिन कोरोना काल में ये आंकड़ा घटकर 25 से 30 तक पहुंच गया है. कोर्ट क्लर्क और मुंशी सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं. उन्हें केस फाइलिंग के एवज में मेहनताना मिलता था, लेकिन केस फाइल नहीं होने के वजह से वो कमाई से पूरी तरह महरूम हो गए हैं. सामान्य स्थिति में इनकी कमाई रोज 300 से 500 रुपये तक हो जाती थी. जूनियर अधिवक्ता अपनी क्षमता के हिसाब से हर रोज 500 से 1000 रुपये तक की कमाई कर लेते थे. मिडिल लेवल के अधिवक्ताओं की कमाई हजार रुपए से लेकर 3000 रुपये तक हर रोज हो जाती थी. वहीं वरिष्ठ अधिवक्ताओं की कमाई हजारों में होती थी.
बार काउंसिल ने की मदद की पेशकश
मौजूदा हालातों में बार काउंसिल की ओर से वकीलों को 2000 रुपये देने के आश्वासन मिले हैं. पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और को-ऑर्डिनेशन कमेटी के कन्वीनर राजीव कुमार का कहना है कि अधिवक्ताओं की स्थिति बेहद दयनीय है. वो ना तो किराया दे पा रहे हैं ना ही बच्चों की फीस जमा कर पा रहे हैं. सरकार की ओर से भी उन्हें अब तक कोई सहायता नहीं मिली है. जब तक कोर्ट रेगुलर नहीं हो जाता है, तब तक इनकी परेशानी भी कम नहीं होगी.
'अधिवक्ताओं के लिए मदद का कोई ऐलान नहीं'
अधिवक्ता शांतनु कुमार का कहना है कि वकील सबसे ज्यादा परेशान हैं. केस फाइलिंग नहीं होने की वजह से उन्हें एक भी पैसे की आय नहीं हो रही है. केंद्र और बिहार सरकार की ओर से भी अधिवक्ताओं के लिए मदद का ऐलान नहीं किया गया है. कंपनियां बंद हैं, ऐसे में उनसे जुड़े मामले भी कोर्ट तक नहीं पहुंच रहे हैं.
वर्चुअल कोर्ट ने लगाया रोजी-रोटी पर ग्रहण
जूनियर वकील भी सीनियर का सहयोग करते हैं. इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. लेकिन लॉकडाउन और वर्चुअल कोर्ट ने इनकी रोजी रोटी पर भी ग्रहण लगा दिया है. इन लोगों की कमाई बिल्कुल खत्म हो गई है. बार काउंसिल की ओर से आश्वासन मिला था, लेकिन अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ.
वर्चुअल कोर्ट की कार्यप्रणाली से 95% काम ठप
वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार भी वर्चुअल कोर्ट से संतुष्ट नहीं है. उनके मुताबिक इस तरह की मौजूदा कार्यप्रणाली से काम करते हुए भी पटना हाईकोर्ट में 95% काम ठप पड़ा है. इससे महज नाम के लिए काम हो रहे हैं.
सरकार से राहत पैकेज की मांग
जाहिर है इस वक्त पूरा देश कोरोना काल में मुश्किल दौर से गुजर रहा है, वकील और न्यायिक कार्यों से जुड़े तमाम लोग भी आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं. इनकी सरकार से राहत पैकेज की मांग है, लेकिन ये फिलहाल मुमकिन नहीं दिख रहा है. ऐसे में आगे का समय कैसे कटेगा, ये सोचकर इनकी चिंता और बढ़ जाती है.