पटना: बिहार में अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू है. शराबबंदी को लेकर विपक्ष कई तरह का आरोप लगाता रहा है. खुलेआम बिक्री की बात भी करता रहा है. वहीं, आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि बिहार में शराबबंदी से 5 हजार से 6 हजार करोड़ राजस्व का नुकसान हो रहा है. विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि राजस्व के नुकसान की भरपाई सरकार को दूध, पनीर, कपड़े और अन्य उपभोक्ता सामग्री बेचकर टैक्स से हो रहा है.
2016 में हुई थी शराबबंदी
बिहार में शराबबंदी के 4 साल पूरे होने वाले हैं. जब 2016 में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा हुई थी तो उस समय बिहार सरकार को सबसे अधिक टैक्स देने वाले विभागों में से एक्साइज एक था. 3500 करोड़ का राजस्व सरकार को प्राप्त हो रहा था. गरीब राज्य होने के बावजूद नीतीश कुमार ने शराब बंदी का बड़ा फैसला लिया. सरकार की ओर से कहा जाता है कि जितना शराब बिकने से टैक्स आता था, उससे ज्यादा दूध, पनीर आदि के बेचे जाने से आ रहा है.
क्या कहा अर्थशास्त्री ने?
अर्थशास्त्री पी पी घोष का कहना है कि जिन लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है, उन्होंने दूध और अन्य खाद्य सामग्रियों के साथ कपड़े में खर्च करना शुरू कर दिया है. उन्होंने कहा कि एक तरह से शराबबंदी से मिलने वाली टैक्स की भरपाई सरकार को अन्य टैक्सों से होने लगी है.
सालाना हो रहा है नुकसान
वहीं, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर रहे अजय झा के अनुसार यह सही है कि शराबबंदी के कारण सरकार को बड़ा नुकसान हुआ है. लेकिन शराबबंदी नहीं होने से समाज को जो नुकसान हो रहा था नीतीश कुमार ने संभवत: उसी को देखा होगा. जिसके बाद ये निर्णय लिया गया. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार को हर साल 5000 करोड़ से 6000 करोड़ के राजस्व का नुकसान हो रहा है.
दूध, पनीर और कपड़े की बिक्री कई गुना बढ़ी
बता दें कि बिहार में आद्री ने जो अध्ययन करवाया था, उसमें पता चला कि यहां पर्यटकों पर बहुत ज्यादा असर शराबबंदी का नहीं पड़ा है. क्योंकि यहां धार्मिक रूप से अधिकांश पर्यटक आते हैं. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि साड़ियों की बिक्री 1785 गुना बढ़ गई, पनीर और शहद की बिक्री में 200 से 300 गुना का इजाफा हुआ.
कई टीमों ने किया सर्वे
बिहार में शराबबंदी की चर्चा दूसरे राज्यों में हो रही है और लगातार कई राज्यों की टीम अध्ययन करने पहुंच रही है. पिछले साल राजस्थान की टीम भी अध्ययन करने पहुंची थी. उससे पहले मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों की टीम भी आ चुकी है. लेकिन राजस्थान जैसे राज्यों को शराब से 12500 करोड़ से अधिक का राजस्व आता है. साथ ही पर्यटकों पर भी असर पड़ सकता है और इसीलिए राजस्थान जैसे राज्य की सरकार शराबबंदी का जोखिम नहीं ले पा रही है.