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देश पर आर्थिक मंदी का संकट, अर्थशास्त्री बोले- अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि आंतरिक कारण हैं जिम्मेदार - देश पर आर्थिक संकट

प्रोफेसर ने कहा कि भारत में निजी क्षेत्र के व्यापारियों का भरोसा भारत सरकार से अब धीरे-धीरे उठता जा रहा है. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को अर्थव्यवस्था के लिए अगाह किया था तो सरकार ने उनकी बात को पूरी तरह से नकार दिया था, नतीजतन आज यह हाल हो रहा है.

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Published : Aug 26, 2019, 9:01 PM IST

पटना: भारतीय अर्थव्यवस्था की चर्चा इन दिनों पूरे विश्व में हो रही है. जिस तरह से देश आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रहा है, उस पर विपक्ष से लेकर बड़े-बड़े अर्थशास्त्री तक चिंता जाहिर करने लगे हैं. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार भी देश में उत्पन्न हो रहे आर्थिक संकट पर अपनी चिंता जता चुके हैं.

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने देश में उत्पन्न हालात का जिम्मेदार सरकार को ठहराया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने बिना प्लानिंग किए नोटबंदी और जीएसटी का निर्णय लिया. जिस कारण यह हालात पैदा हुए हैं. वर्तमान हालात के लिए अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि आंतरिक कारण जिम्मेदार हैं.

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'रोजगार को महत्व नहीं देती मोदी सरकार'
डीएम दिवाकर मंदी को लेकर सरकार पर नाराज दिखे. उन्होंने कहा कि इस सरकार को आर्थिक जगत की समझ नहीं है. ये सरकार रोजगार को महत्व नहीं देती. अर्थव्यवस्था के संचार को महत्व नहीं देती है. जिसका नमूना बिना सोचे-समझे देश पर नोटबंदी और जीएसटी थोप देना है. इससे छोटे-छोटे व्यवसाय खत्म होते चले गए और भारतीय अर्थव्यवस्था आज बेहाल है.

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'गलत साबित हुआ नोटबंदी और जीएसटी का फैसला'
प्रोफेसर ने यह भी कहा कि हमारे देश की इकॉनमी छोटे और मंझले उद्योगपतियों के सहारे चल रही थी. लेकिन, सरकार ने जिस तरह से बिना सोचे समझे देश में नोटबंदी लागू की, इससे उन उद्योगपतियों का हाल बुरा होता गया. वहीं, नोटबंदी के 1 साल पूरा होते ही, सरकार ने देश भर में जीएसटी लागू कर दी. इससे स्थिति और खराब हो गई. हर क्षेत्र में छटनी का दौर शुरू हो गया.

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पैसा नहीं है तो खरीदारी कहां से होगी?
डीएम दिवाकर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा फॉर्मल इकॉनमी पर चल रहा है, जो पूरी तरह खत्म हो गई. यदि लोगों का रोजगार खत्म होगा तो बाजार की हलचल भी खत्म हो ही जाएगी. इसी कारण हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, क्योंकि लोगों के पास रोजगार नहीं है तो बाजार में समान बिकेंगे नहीं.

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बेरोजगारी

पूर्व गवर्नर ने पहले ही जताई थी चिंता
प्रोफेसर ने कहा कि भारत में निजी क्षेत्र के व्यापारियों का भरोसा भारत सरकार से अब धीरे-धीरे उठता जा रहा है. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को अर्थव्यवस्था के लिए अगाह किया था तो सरकार ने उनकी बात को पूरी तरह से नकार दिया था, नतीजतन आज यह हाल हो रहा है.

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रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर

सरकार और छोटे उद्योगपतियों के बीच टकराव
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का मानना है कि सरकार ने जिस तरह से देश में जीएसटी लागू किया, उससे छोटे उद्योगों की कमर टूट गई. वह आगे व्यापार करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं. उद्योग सरकार और उद्योगपतियों के बीच विश्वास से चलता है. लेकिन, वर्तमान में सरकार और छोटे उद्योगपतियों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है.

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'इतिहासकार को गवर्नर बनाना गलत फैसला'
डीएम दिवाकर की मानें तो भारत सरकार ने जिसे आरबीआई का गवर्नर बनाया है, उन्हें अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान नहीं है. वह अर्थशास्त्री नहीं है बल्कि एक इतिहासकार हैं. उन्हें अर्थशास्त्र की नॉलेज नहीं होने के कारण ही आज भारत में आर्थिक संकट आन पड़ी है.

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शक्तिकांत दास, गवर्नर

पिछले 70 सालों में नहीं हुए ये हालात
अर्थशास्त्री ने नीति आयोग के सवाल का समर्थन करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले 70 सालों में कभी ऐसे नहीं चरमराई थी, जो मौजूदा हालात हैं. सरकार अब मंदी को दबाना चाह रही है, इसलिए निजी क्षेत्र के साथ-साथ अब सरकारी क्षेत्रों में भी छंटनी का दौर शुरू होने वाला है. भारत सरकार में सबसे बड़ा सरकारी सेक्टर रेलवे भी अब 55 वर्ष की आयु से ऊपर होने वाले कर्मचारियों को रिटायरमेंट देने की तैयारी कर रहा है.

अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने दी जानकारी

अर्थशास्त्रियों की चिंता पर वित्त विभाग ने कुछ हिस्सों में मंदी की मार झेलने के लिए निर्णय तो लिया है. लेकिन, अर्थशास्त्री इस निर्णय पर भी अब सवाल उठा रहे हैं. उनका मानना है कि वित्त विभाग से जो निर्णय लिए गए हैं, उससे रोजगार उत्पन्न नहीं होगा. यदि सरकार को आर्थिक मंदी से बचना है तो हर क्षेत्र में रोजगार मुहैया कराना होगा और छोटे उद्योगपतियों को अपने विश्वास में लेना होगा. जिससे देश में आर्थिक मंदी की स्थिति उत्पन्न ना हो पाए.

पटना: भारतीय अर्थव्यवस्था की चर्चा इन दिनों पूरे विश्व में हो रही है. जिस तरह से देश आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रहा है, उस पर विपक्ष से लेकर बड़े-बड़े अर्थशास्त्री तक चिंता जाहिर करने लगे हैं. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार भी देश में उत्पन्न हो रहे आर्थिक संकट पर अपनी चिंता जता चुके हैं.

एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने देश में उत्पन्न हालात का जिम्मेदार सरकार को ठहराया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने बिना प्लानिंग किए नोटबंदी और जीएसटी का निर्णय लिया. जिस कारण यह हालात पैदा हुए हैं. वर्तमान हालात के लिए अंतरराष्ट्रीय नहीं बल्कि आंतरिक कारण जिम्मेदार हैं.

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'रोजगार को महत्व नहीं देती मोदी सरकार'
डीएम दिवाकर मंदी को लेकर सरकार पर नाराज दिखे. उन्होंने कहा कि इस सरकार को आर्थिक जगत की समझ नहीं है. ये सरकार रोजगार को महत्व नहीं देती. अर्थव्यवस्था के संचार को महत्व नहीं देती है. जिसका नमूना बिना सोचे-समझे देश पर नोटबंदी और जीएसटी थोप देना है. इससे छोटे-छोटे व्यवसाय खत्म होते चले गए और भारतीय अर्थव्यवस्था आज बेहाल है.

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'गलत साबित हुआ नोटबंदी और जीएसटी का फैसला'
प्रोफेसर ने यह भी कहा कि हमारे देश की इकॉनमी छोटे और मंझले उद्योगपतियों के सहारे चल रही थी. लेकिन, सरकार ने जिस तरह से बिना सोचे समझे देश में नोटबंदी लागू की, इससे उन उद्योगपतियों का हाल बुरा होता गया. वहीं, नोटबंदी के 1 साल पूरा होते ही, सरकार ने देश भर में जीएसटी लागू कर दी. इससे स्थिति और खराब हो गई. हर क्षेत्र में छटनी का दौर शुरू हो गया.

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पैसा नहीं है तो खरीदारी कहां से होगी?
डीएम दिवाकर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा फॉर्मल इकॉनमी पर चल रहा है, जो पूरी तरह खत्म हो गई. यदि लोगों का रोजगार खत्म होगा तो बाजार की हलचल भी खत्म हो ही जाएगी. इसी कारण हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, क्योंकि लोगों के पास रोजगार नहीं है तो बाजार में समान बिकेंगे नहीं.

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बेरोजगारी

पूर्व गवर्नर ने पहले ही जताई थी चिंता
प्रोफेसर ने कहा कि भारत में निजी क्षेत्र के व्यापारियों का भरोसा भारत सरकार से अब धीरे-धीरे उठता जा रहा है. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को अर्थव्यवस्था के लिए अगाह किया था तो सरकार ने उनकी बात को पूरी तरह से नकार दिया था, नतीजतन आज यह हाल हो रहा है.

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रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर

सरकार और छोटे उद्योगपतियों के बीच टकराव
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का मानना है कि सरकार ने जिस तरह से देश में जीएसटी लागू किया, उससे छोटे उद्योगों की कमर टूट गई. वह आगे व्यापार करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं. उद्योग सरकार और उद्योगपतियों के बीच विश्वास से चलता है. लेकिन, वर्तमान में सरकार और छोटे उद्योगपतियों के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है.

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'इतिहासकार को गवर्नर बनाना गलत फैसला'
डीएम दिवाकर की मानें तो भारत सरकार ने जिसे आरबीआई का गवर्नर बनाया है, उन्हें अर्थशास्त्र का कोई ज्ञान नहीं है. वह अर्थशास्त्री नहीं है बल्कि एक इतिहासकार हैं. उन्हें अर्थशास्त्र की नॉलेज नहीं होने के कारण ही आज भारत में आर्थिक संकट आन पड़ी है.

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शक्तिकांत दास, गवर्नर

पिछले 70 सालों में नहीं हुए ये हालात
अर्थशास्त्री ने नीति आयोग के सवाल का समर्थन करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले 70 सालों में कभी ऐसे नहीं चरमराई थी, जो मौजूदा हालात हैं. सरकार अब मंदी को दबाना चाह रही है, इसलिए निजी क्षेत्र के साथ-साथ अब सरकारी क्षेत्रों में भी छंटनी का दौर शुरू होने वाला है. भारत सरकार में सबसे बड़ा सरकारी सेक्टर रेलवे भी अब 55 वर्ष की आयु से ऊपर होने वाले कर्मचारियों को रिटायरमेंट देने की तैयारी कर रहा है.

अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने दी जानकारी

अर्थशास्त्रियों की चिंता पर वित्त विभाग ने कुछ हिस्सों में मंदी की मार झेलने के लिए निर्णय तो लिया है. लेकिन, अर्थशास्त्री इस निर्णय पर भी अब सवाल उठा रहे हैं. उनका मानना है कि वित्त विभाग से जो निर्णय लिए गए हैं, उससे रोजगार उत्पन्न नहीं होगा. यदि सरकार को आर्थिक मंदी से बचना है तो हर क्षेत्र में रोजगार मुहैया कराना होगा और छोटे उद्योगपतियों को अपने विश्वास में लेना होगा. जिससे देश में आर्थिक मंदी की स्थिति उत्पन्न ना हो पाए.

Intro:देश में आर्थिक मंदी सरकार की नीतियों पर अर्थशास्त्री उठा रहे हैं सवाल पटना के एन सिन्हा इंस्टिट्यूट के अर्थशास्त्री प्रोफेसर डीएम दिवाकर ने सरकार द्वारा लिए गए निर्णय नोटबंदी और जीएसटी को मान रहे हैं आर्थिक मंदी का मूल कारण---


Body:पटना--- भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब चर्चा जोरों से पकड़ने लगी है दुनिया के कई देश में अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है विपक्ष से लेकर बड़े-बड़े अर्थशास्त्री अपनी चिंता जताने लगे हैं नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी देश में उत्पन्न हो रहे आर्थिक मंदी पर अपनी चिंता जता चुके हैं एन सिन्हा इंस्टिट्यूट के प्रोफ़ेसर और अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने देश में उत्पन्न हुए अर्थव्यवस्था का खस्ताहाल का जिम्मेदार सरकार को ही मान रहे हैं। अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने सरकार के द्वारा लिए गए नोटबंदी और जीएसटी का निर्णय पर सवाल उठाने लगे हैं डीएम दिवाकर ने कहा कि दुर्भाग्य है इस देश का जो हमने ऐसी सरकार चुनी है जिसका आर्थिक जगत की कोई समझ नहीं है यह सरकार रोजगार को महत्व नहीं देता है अर्थव्यवस्था के संचार को महत्व नहीं देता है जिसका नमूना बिना सोचे समझे देश पर नोटबंदी और जीएसटी थोप दी जिससे छोटे छोटे व्यवसाय थे वह खत्म होते चले गए और भारतीय अर्थव्यवस्था आज हाल बुरा हो गया है।

हमारे देश की इकनॉमिक छोटे मंझले उद्योगपति के सहारे चल रहा था जिससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी टिकी हुई थी लेकिन सरकार में जिस तरह से बिना सोचे समझे देश में नोटबंदी लागू कर दी और यह छोटे मंझले उद्योगपति का हाल बुरा होते गया और यह लोग समाप्ति के कगार पर आ गए नोटबंदी के 1 साल पूरा होते हैं सरकार ने देश भर में जीएसटी लागू कर दी इससे बच्चे कूचे मंझले छोटे उद्योगपति समाप्त हो गए और हर क्षेत्र में छटनी का दौर शुरू हो गया देश में रोजगार धीरे धीरे समाप्त होते गई इसलिए आज देश की अर्थव्यवस्था का हाल बुरा होते जा रहा है।

डीएम दिवाकर ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा फॉर्मल इकनोमिक पर चल रहा है जो पूरी तरह खत्म हो गई यदि लोगों का रोजगार खत्म हो गया तो बाजार की हलचल खत्म होती जाएगी जिससे हमारा अर्थव्यवस्था चरमरा गई है क्योंकि लोगों के पास रोजगार नहीं होगा तो बाजार में समान बिकेंगे नहीं हमारी अर्थव्यवस्था टिक नहीं पाएगी। नोटबंदी का माल देश तो झेल ही रहा था लेकिन सरकार ने बिना सोचे समझे जीएसटी भी लागू कर दिया जीएसटी लागू तो हो गया लेकिन जीएसटी का सर्कुलेशन छोटे उद्योगपतियों का छे छे माह का रिटर्न सरकार ने नहीं दिया जिससे यह लोग समाप्ति के कगार पर पहुंच गए हमारे देश में क्रेडिट मूल्यों पर लोगों से पैसा लेकर सरकार देश चला रही है भारत में निजी क्षेत्र के जो व्यापारी थे उनका भारत सरकार से अब धीरे-धीरे विश्वास उठते जा रहा है जब पूर्व गवर्नर रघु राजन ने सरकार को अर्थव्यवस्था को लेकर आगाह किया था तो सरकार ने उनकी बात को पूरी तरह से नकार दिया था।
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर का मानना है कि सरकार ने जिस तरह से देश में जीएसटी लागू किया है उसे छोटे उद्योग की कमर टूट गई है और वह आगे व्यापार करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं इसे देश में सरकार और उद्योग का एक विश्वास खत्म होते जा रहा है उद्योग सरकार और उद्योगपतियों के बीच विश्वास से चलता है लेकिन सरकार और छोटे उद्योगपति के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है। और रोजगार धीरे धीरे समाप्ति की ओर जा रहा है भारत सरकार ने आरबीआई के जो गवर्नर बनाए हैं उन्हें कोई अर्थशास्त्र का ज्ञान नहीं है वह अर्थशास्त्री नहीं है बल्कि एक इतिहासकार हैं उन्हें अर्थशास्त्र का कोई नॉलेज नहीं है स्थिति को देख नहीं पा रहे हैं।

डीएम दिवाकर ने नीति आयोग के द्वारा उठाए गए सवाल पर समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने ठीक कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले 70 सालों में ऐसा कभी भी नहीं हुआ है जो अब की स्थिति बनी हुई है। सरकार अब मंदी को दबाना चाह रही है निजी क्षेत्र तो निजी क्षेत्र अब सरकारी क्षेत्रों में भी छंटनी का दौर शुरू होने वाला है भारत सरकार में सबसे बड़ा सरकारी सेक्टर रेलवे में भी भारत सरकार ने 55 वर्ष की आयु से ऊपर होने वाले कर्मचारियों को अब रिटायरमेंट देने की तैयारी कर रहा है इससे अंदाजा यहीं लगाया जा सकता है कि हमारी देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल है।

डीएम दिवाकर मानते हैं कि यह कोई मंदिर विदेशी नहीं बल्कि देसी आर्थिक मंदी से देश गुजर रहा है 2008 में जब सारी दुनिया में मंदी का दौर शुरू हुआ था तो उस समय भी हमारे देश की स्थिति ऐसी नही आया जो अब आया है उस समय हमारे देश में डी मोट लाइजेशन नहीं हुआ था जिससे हमारी अर्थव्यवस्था कुछ हद तक ठीक थी लेकिन वर्तमान सरकार ने जनधन योजना के माध्यम से मोट लाइजेशन करके देश का खस्ता हाल कर दिया है।

अर्थशास्त्रियों के चिंता पर वित्त विभाग ने कुछ हिस्सों में मंदी के मार झेलने के लिए सरकार ने वित्त विभाग के माध्यम से निर्णय तो लिया है लेकिन अर्थशास्त्री इस निर्णय पर भी अब सवाल उठा रहे हैं उनका मानना है कि वित्त विभाग से जो निर्णय लिए गए हैं उससे रोजगार उत्पन्न नहीं होगा यदि सरकार को आर्थिक मंदी से बचना है तो हर क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराना होगा और छोटे उद्योग पतियों को अपने विश्वास में लेना होगा जिससे देश में आर्थिक स्थिति उत्पन्न ना हो पाए।


बाइट--- डी एम दिवाकर ,अर्थशास्त्री





Conclusion:etv भारत के लिए अरविन्द राठौर की रिपोर्ट
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