पटना: ड्रग तस्करी का मामला शुरू से काफी गंभीर व चिंतनीय रहा है. इसपर नकेल कसने के लिए पुलिस और खुफिया एजेंसियां हमेशा ही एक्टिव मोड में रहती हैं. इसके बावजूद इनपर लगाम लगाना मुश्किल होता जा रहा है. खास कर कोरोना के लॉकडाउन के दौरान इनकी गतिविधि ज्यादा बढ़ गई है और ये तेजी से नशीले पदार्थों की तस्करी कर रहे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर एक्टिव तस्कर
वैसे तो ये समस्या देशव्यापी है और इसपर लगाम लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर चौकसी बढ़ी रहती है. अगर हम बिहार की बात करें तो नेपाली सीमा से तस्करी के मामले आए दिन सामने आते रहते हैं. यहां कोरोना महामारी के दौरान भी नशीले पदार्थों का गोरख धंधा करने वाले लोग काफी एक्टिव हैं. वहीं, पुलिस और नारकोटिक्स डिपार्टमेंट की तरफ से उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया जा रहा है.
शराबबंदी के बाद बढ़ा ड्रग्स का काला धंधा
बिहार में शराबबंदी के बाद नशे के कारोबारियों ने नए बाजार सजाने की कोशिश की है. बिहार पुलिस के मुताबिक शराबबंदी लागू होने के पहले गांजा, चरस और अफीम की खपत राज्य में न के बराबर थी. वर्ष 2016 के अप्रैल में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद इनके साथ-साथ हेरोइन की बरामदगी लगातार हो रही है.
नशीले पदार्थों की उपज, तस्करी और खरीद-बिक्री के खिलाफ कार्रवाई करने वाली राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों की चुनौती बढ़ चुकी है. सामान्य दिनों में प्रतिदिन राज्य के किसी न किसी थानाक्षेत्र से गांजे की किसी बड़ी खेप की बरामदगी होती रहती है.
2017 में कुल 531 मामले दर्ज
इस मामले में आर्थिक अपराध इकाई के अपर पुलिस महानिदेशक जितेंद्र सिंह गंगवार ने ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत की. इस दौरान बताया कि नशीले पदार्थों की तस्करी को लेकर वर्ष 2017 में कुल 531 मामले दर्ज किए गए थे. शराबबंदी के पहले राज्य में नशीले पदार्थों की तस्करी का आंकड़ा कभी भी सौ की संख्या को पार नहीं कर पाया था.
शातिराना तरीके से चलता है गोरखधंधा
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट की मानें तो समय-समय पर बिहार और झारखंड के कई जिलों में अफीम के पौधे को नष्ट किया जाता है. इनका कहना है कि गंगा के उस पार के कुछ जिलों और झारखंड के बाराचट्टी में अफीम की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जिसे नष्ट किया जाता रहा है. इसके बावजूद इस गोरख धंधे में संलिप्त लोग व्यवसाय करने से बाज नहीं आते हैं. ये नए-नए तरीकों से वाहनों के जरिए नशीली पदार्थों का व्यवसाय करते हैं. कभी ट्रक तो कभी छोटे वाहनों तो कभी बसों और ट्रेनों के माध्यम से बिजनेस करते रहते हैं.
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के लिए चुनौतिपूर्ण रहा लॉकडाउन
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के बिहार झारखंड के ज्वाइंट डायरेक्टर कुमार मनीष की मानें तो पिछले 6 महीने लॉकडाउन के दौरान डिपार्टमेंट के लिए काफी चुनौतिपूर्ण रहे. सोशल डिस्टेंस मेंटेन करते हुए हमलोग नशीले पदार्थों के गोरखधंधे में संलिप्त लोगों को पकड़ने में कामयाब रहे हैं.
पटना समेत पूरे बिहार में नशीले पदार्थों का गोरखधंधा लॉकडाउन के दौरान भी लगातार जारी है. गांजा, अफीम, ब्राउन शुगर, ओपियम जैसे नशीले पदार्थ की सप्लाई लॉकडाउन में लगातार जारी है और इसी कड़ी में नशीले पदार्थों की खेप को ट्रकों में छिपाकर नॉर्थ इंडिया से बिहार झारखंड समेत दूसरे राज्यों में पहुंचाया जा रहा है. लेकिन कुमार मनीष की मानें तो इन्हें पहले की पकड़ लिया गया.
पुलिस रेड में पकड़ाए नशीले पदार्थ
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट की मानें पूरे लॉकडाउन में अलग-अलग जगहों पर छापेमारी कर 2413.8 किलो गांजा, चरस 53.9 किलो और 7.9 किलो ओपियम के साथ अन्य नशीले पदार्थों को जब्त किया गया है. साथ ही नारकोटिक्स डिपार्टमेंट ने छापेमारी के दौरान 32 तस्करों के साथ इसकी सप्लाई करने वाले ट्रक ड्राइवरों को भी गिरफ्तार किया है.
लॉकडाउन में स्थानीय तस्करों को मिला बाजार
लेकिन नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के ज्वाइंट डायरेक्टर कुमार मनीष का कहना है कि यातायात बाधित होने की वजह से सामान्य दिनों की तुलना में कमी आई है. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर पर ज्यादा चौकसी होने की वजह से बाहर से आने वाले नशीले पदार्थों पर रोक जरूर लगी है लेकिन राज्यों में उत्पादित होने वाले गांजे और ओपियम जैसे पदार्थों की तस्करी में बढ़ोतरी हुई है. पकड़े गए नशीले पदार्थों का मूल्य करोड़ों में लगाया जा रहा है.
बिहार में लॉकडाउन के साथ-साथ बाढ़ की समस्या भी उत्पन्न है. कयास लगाया जा रहा है कि इसका फायदा उठाकर तस्कर इन पदार्थों के भंडारण में सफलता हासिल कर रहे हैं. हालांकि इसपर उन्होंने कहा कि हमारे सूचना तंत्र से इस तरह की कोई जानकारी नहीं आई है.
कोरोना के कारण जांच में बाधा
कोरोना की वजह से नारकोटिक्स डिपार्टमेंट को भी इंटर डिस्ट्रिक्ट जांच करने में परेशानी हो रही है. हालांकि इनका कहना है कि हमारे पास संसाधन की कोई कमी नहीं है. सिर्फ लॉकडाउन नियमों का पालन करते हुए जांच की तीव्रता पर थोड़ा असर पड़ा है. उन्होंने कहा हमारे पास जो डाटा है उसमें उसके मुताबिक सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन में नशीली पदार्थ के कारोबार में कमी आई है.
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के आंकड़े-
डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में महज 2.020 किलो चरस बरामद किया गया था, जबकि वर्ष 2015 में 31.500 किलो चरस बरामद हुआ था. लेकिन वर्ष 2016 में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद चरस का प्रचलन बढ़ने लगा. ब्यूरो ने वर्ष 2016 में 114.05 किलो और वर्ष 2017 में 130.03 किलो चरस बरामद किया.
यही हाल हीरोइन का भी है. डिपार्टमेंट ने बताया कि वर्ष 2017 में 1.900 किलो हेरोइन की बरामदगी की गई थी, लेकिन वर्ष 2018 के पहले ही 5 महीने में बिहार के विभिन्न स्थानों से 3.2 किलो हेरोइन बरामद किया गया था. कुछ ऐसा ही हाल नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे बिहार के साथ सीमावर्ती जिलों का भी है. बिहार के रास्ते नशीले पदार्थों की खेप नेपाल भेजी जाती रही है और वहां से भी आती रही है.
वर्ष | मात्रा (चरस) |
2014 | 2.020 किलो |
2015 | 31.5 किलो |
2016 | 114.05 किलो |
2017 | 130.03 किलो |
वर्ष | मात्रा (हेरोइन) |
2017 | 1.9 किलो |
2018 | 3.2 किलो |