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डॉ. सुधांशु आज भी मरीजों की हिंदी में लिखते हैं पर्ची

मरीजों की परेशानियों को देखते हुए डॉ सुधांशु ने हिंदी में लिखने का संकल्प ले लिया. लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी को अपनी लाइफ स्टाइल में बदल डाला है. वह अंग्रेजी को ज्यादा महत्व देते हैं.

पर्ची लिखते डॉ सुधांशु
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Published : Sep 14, 2019, 3:40 PM IST

पटना: बदलते परिवेश में एक ओर जहां नई-नई टेक्नोलॉजी का इजाद हो रहा है. अंग्रेजी इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि हर चीज में अंग्रेजी का जोर पड़ गया है. तो वहीं दूसरी तरफ पटना हाईकोर्ट अस्पताल में कार्यरत डॉ सुधांशु आज भी मरीजों की पर्ची हिंदी में ही लिखते हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि हिंदी हमारे दिल में है. हिंदी हर भाषाओं की जननी है और हिंदुस्तान की भाषा है. इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाने की जरूरत है.

मरीजों को होती थी परेशानी
डॉ सुधांशु जब 1983 में पीएमसीएच में पढ़ाई कर रहे थे, तो अपने सीनियर डॉक्टरों को अंग्रेजी में उसके डायग्नोसिस का तरीका लिखते थे. तब मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. मरीज दूसरों से वह पर्ची पढ़ाने के लिए देते थे. ऐसे में उसी वक्त से उन्होंने संकल्प किया कि जब भी मैं कभी पर्ची लिखूंगा, तो दवा खाने के तरीके और सारे डायग्नोसिस हिंदी में ही लिखूंगा. ताकि मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके. दवाई का नाम तो अंग्रेजी में होता ही है, लेकिन दवा खाने का तरीका हिंदी मे लिखेंगें. तब से आज तक वह हिंदी मे ही मरीजों की पर्ची लिखते है.

Dr. Sudhanshu writes prescriptions in Hindi
मरीज की पर्ची लिखते डॉ सुधांशु

अंग्रेजी को ज्यादा तरजीह देते हैं लोग
मरीजों की परेशानियों को देखते हुए डॉ सुधांशु ने हिंदी में लिखने का संकल्प ले लिया. लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी को अपने लाइफ स्टाइल में बदल डाला है. वह अंग्रेजी को ज्यादा महत्व देते हैं. हर चीज में अंग्रेजी को ही ज्यादा तरजीह देते हैं. ऐसे में उन सब को डॉक्टर सुधांशु से प्रेरणा लेने की जरूरत है कि हिंदी भाषी देश में और खासकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों से ज्यादा से ज्यादा हिंदी में बात करनी चाहिए.

डॉ सुधांशु से खास बातचीत

हिंदी बोलने वाले को कम पढ़ा लिखा समझा जाता है
बहरहाल आज हिंदी दिवस है और पूरे देश भर में हिंदी दिवस को लेकर कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. इन सभी कार्यक्रम में हिंदी भाषा को आगे ले जाने और उसे ग्रहण करने के लिए तरह-तरह के संकल्प लिए जा रहे हैं. लेकिन जिस तरह से 21वीं सदी में अंग्रेजी लाइफस्टाइल सिर चढ़कर बोल रहा है. वहां हिंदी बोलने वाले को कम पढ़ा लिखा समझा जाता है. जबकि अंग्रेजी बोलने वाले को ज्यादा पढ़ा लिखा माना जाता है. ऐसे में जरूरत है हर किसी को हिंदी भाषा को तरजीह देने की.

पटना: बदलते परिवेश में एक ओर जहां नई-नई टेक्नोलॉजी का इजाद हो रहा है. अंग्रेजी इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि हर चीज में अंग्रेजी का जोर पड़ गया है. तो वहीं दूसरी तरफ पटना हाईकोर्ट अस्पताल में कार्यरत डॉ सुधांशु आज भी मरीजों की पर्ची हिंदी में ही लिखते हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि हिंदी हमारे दिल में है. हिंदी हर भाषाओं की जननी है और हिंदुस्तान की भाषा है. इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाने की जरूरत है.

मरीजों को होती थी परेशानी
डॉ सुधांशु जब 1983 में पीएमसीएच में पढ़ाई कर रहे थे, तो अपने सीनियर डॉक्टरों को अंग्रेजी में उसके डायग्नोसिस का तरीका लिखते थे. तब मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. मरीज दूसरों से वह पर्ची पढ़ाने के लिए देते थे. ऐसे में उसी वक्त से उन्होंने संकल्प किया कि जब भी मैं कभी पर्ची लिखूंगा, तो दवा खाने के तरीके और सारे डायग्नोसिस हिंदी में ही लिखूंगा. ताकि मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके. दवाई का नाम तो अंग्रेजी में होता ही है, लेकिन दवा खाने का तरीका हिंदी मे लिखेंगें. तब से आज तक वह हिंदी मे ही मरीजों की पर्ची लिखते है.

Dr. Sudhanshu writes prescriptions in Hindi
मरीज की पर्ची लिखते डॉ सुधांशु

अंग्रेजी को ज्यादा तरजीह देते हैं लोग
मरीजों की परेशानियों को देखते हुए डॉ सुधांशु ने हिंदी में लिखने का संकल्प ले लिया. लेकिन आज भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अंग्रेजी को अपने लाइफ स्टाइल में बदल डाला है. वह अंग्रेजी को ज्यादा महत्व देते हैं. हर चीज में अंग्रेजी को ही ज्यादा तरजीह देते हैं. ऐसे में उन सब को डॉक्टर सुधांशु से प्रेरणा लेने की जरूरत है कि हिंदी भाषी देश में और खासकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों से ज्यादा से ज्यादा हिंदी में बात करनी चाहिए.

डॉ सुधांशु से खास बातचीत

हिंदी बोलने वाले को कम पढ़ा लिखा समझा जाता है
बहरहाल आज हिंदी दिवस है और पूरे देश भर में हिंदी दिवस को लेकर कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. इन सभी कार्यक्रम में हिंदी भाषा को आगे ले जाने और उसे ग्रहण करने के लिए तरह-तरह के संकल्प लिए जा रहे हैं. लेकिन जिस तरह से 21वीं सदी में अंग्रेजी लाइफस्टाइल सिर चढ़कर बोल रहा है. वहां हिंदी बोलने वाले को कम पढ़ा लिखा समझा जाता है. जबकि अंग्रेजी बोलने वाले को ज्यादा पढ़ा लिखा माना जाता है. ऐसे में जरूरत है हर किसी को हिंदी भाषा को तरजीह देने की.

Intro: हिंदी दिवस पर विशेष:-

डॉ सुधांशु आज भी हिंदी में लिखते हैं मरीजों को पर्ची,
पटना हाईकोर्ट अस्पताल में कार्यरत हैं डॉ सुधांशु


Body:बदलते परिवेश में एक और जहां नई नई टेक्नोलॉजी का इजाद हो रहा है और अंग्रेजी इस कदर सिर चढ़कर बोल रही है कि हर चीज में अंग्रेजी का जोर पड़ गया है
लेकिन पटना हाईकोर्ट अस्पताल में कार्यरत डॉ सुधांशु आज भी मरीजों की पर्ची हिंदी में ही लिखती है, ईटीवी भारत पर खास बातचीत में उन्होंने कहा कि हिंदी हमारी दिल में है, हिंदी हर भाषाओं की जननी है और हिंदुस्तान की भाषा है इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाने की जरूरत है
1983 में पीएमसीएच में जब पढ़ाई कर रहे थे तो अपने सीनियर डॉक्टरों को अंग्रेजी में उसके डायग्नोसिस का तरीका लिखते थे तो मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था,मरीज दूसरों से वह पर्ची पढ़ाने के लिए देते थे, ऐसे में उसी वक्त से उन्होंने संकल्प किया कि जब भी मैं कभी पर्ची लिखूंगा दवा खाने का तरीके और सारे डायग्नोसिस हिंदी में ही लिखूंगा, ताकि मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके, दवाई का नाम तो अंग्रेजी में होता ही है, लेकिन दवा खाने का तरीका हिंदी मे लिखेंगें,तब से आज तक हिंदी मे ही मरीजों की पर्ची लिखते है,
मरीजों की परेशानियों को देखते हुए डॉ सुधाकर ने हिंदी में लिखने के लिए संकल्प ले लिया लेकिन कई ऐसे लोग आज भी हैं जो अंग्रेजी को अपने लाइफ स्टाइल में बदल डाला है और अंग्रेजी को महत्व देते है, हर चीज में अंग्रेजी को ही ज्यादा तरजीह देते नजर आते हैं ऐसे भी उन सबों को डॉक्टर सुधाशु से प्रेरणा लेने की जरूरत है, कि हिंदी भाषी देश में और खासकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों से ज्यादा से ज्यादा हिंदी में व्यवहार करनी चाहिए


Conclusion:बहरहाल आज हिंदी दिवस है और पूरे देश भर में हिंदी दिवस को लेकर कई तरह के कार्यक्रम का आयोजन कर हिंदी भाषा को इसे आगे ले जाने और उसे आत्मसात करने के लिए तरह-तरह के संकल्प लेते नजर आ रहे हैं
मगर जिस कदर 21वीं सदी में अंग्रेजी लाइफस्टाइल में सिर चढ़कर बोल रहा है, वहां हिंदी को नजरअंदाज कर दिया जाता है, और हिंदी बोलने वाले को कम पढ़ा लिखा समझा जाता है, अंग्रेजी बोलने को ज्यादा पढ़ा लिखा माना जाता है, ऐसे में जरूरत है हर किसी को हिंदी मेंभाषा को तरजीह देने की


बाईट:--डॉ सुधांशु, चर्मरोग विशेषज्ञ, हाईकोर्ट अस्पताल
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