पटना: पटना हाइकोर्ट (Patna High Court) ने चिकित्सा लापरवाही से मरीज की जान लेने के आरोप को पिछले 7 साल से झेल रहे एक डॉक्टर को राहत दी है. जस्टिस संदीप कुमार ने डॉ नवीन कुमार के विरुद्ध दायर हुई प्राथमिकी को रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि मरीजों के परिजनों द्वारा लगाए गए डॉक्टर के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के आरोप की जांच बिना किसी मेडिकल विशेषज्ञ टीम को गठित किए, बगैर ही पुलिस द्वारा आनन-फानन में याचिकाकर्ता डॉक्टर को चिकित्सा लापरवाही से मौत की अपराधिक घटना का अभियुक्त बना दिया.
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जान लेने का आरोप झेल रहे डॉक्टर को मिली राहत: उन पर चार साल तक अनुसंधान करते रहना सुप्रीम कोर्ट के न्याय आदेशों का और बिहार चिकित्सक सुरक्षा कानून का स्पष्ट उल्लंघन है. इस अवैध प्राथमिकी से डाक्टर न सिर्फ असुरक्षित रहेंगे, बल्कि उनका उत्पीड़न भी होता है. याचिकाकर्ता के वकील अंशुल ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में ही अपने एक न्याय निर्देश दिया था. इसमें यह स्पष्ट कर दिया था कि डाक्टरों के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के अपराधिक घटना को दर्ज करने से पहले अभियोजन को चिकित्सा विशेषज्ञ की एक टीम गठित कर यह जांच करवाना जरूरी है. टीम की रिपोर्ट आने के बाद ही चिकित्सा लापरवाही के मामलें पर आरोप अभियोजन अपनी कार्रवाई आगे बढ़ा सकती है.
पटना हाईकोर्ट ने डॉक्टर ने दी राहत: ये घटना फरवरी 2015 की है. निशांत निश्चल नाम के एक युवक को गंभीर अवस्था में याचिकाकर्ता के पटना सिटी स्थित नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था. घायल युवक का एक हाथ बुरी तरह टूटा हुआ था. याचिकाकर्ता डॉक्टर ने फौरन प्राथमिक उपचार किया और टूटे हुए अंग पर प्लास्टर चढ़ाते हुए हड्डी के ऑपरेशन की सलाह दी. घायल युवक के परिजन ने एक दिन बाद घायल युवक को ऑपरेशन कराने के लिए लाए. ऑपरेशन के दौरान ही युवक की हालत खराब हुई. जिसे देखकर याचिकाकर्ता डॉक्टर ने उसे इमरजेंसी सेवा में भर्ती करने हेतु राजेश्वर अस्पताल रेफर किया. मरीज की बिगड़ती हालत को देखकर उसको इमरजेंसी में भर्ती कराने के बजाय वे हंगामा करने लगे. इस तरह से काफी समय बर्बाद करने के बाद जब मरीज को वे अस्पताल पहुंचाये, तो वह मृत पाया गया.
पटना हाईकोर्ट ने दी राहत: मृतक युवक के परिजनों ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान खुद से एनेस्थीसिया का इस्तेमाल घायल मरीज पर किया और इसी कारण मरीज की जान गई. इस आरोप के मद्देनजर खाजकलां थाना में, डॉक्टर नवीन पर एफआईआर दर्ज किया गया और 4 वर्ष से अधिक समय तक पुलिस अनुसंधान ही करती रही. इस दौरान याचिकाकर्ता डॉक्टर कई बार उत्पीड़न का शिकार हुआ. 2019 में पटना हाईकोर्ट ने इस अपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए थाना से कांड की केस डायरी और मृतक युवक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को तलब करते हुए पुलिस की आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दिया था.