पटना: जेडीयू और बीजेपी की दोस्ती काफी पुरानी है. 2005 और 2010 बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें, तो बेहतर तालमेल के कारण ही बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी. लेकिन 2015 की दुश्मनी ने 2020 विधानसभा चुनाव में मुश्किलें खड़ी कर दी है. प्रदेश के कई सीटों पर पेंच फंसता दिख रहा है.
प्रदेश के दीघा, कल्याणपुर, पिपरा, मधुबन, बोचहा, बगहा, नौतन, बैकुंठपुर, अमनौर, बिहार शरीफ, बाढ़, वारसलीगंज, झाझा और गोह ये 14 सीटें 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू के पास थी और जीती भी थी. लेकिन 2015 में इस पर भाजपा विजय रही, इनको लेकर बीजेपी और जदयू के बीच पेंच फंसा है. इस तरह बेनीपुर, जीरादेई, महनार, राजगीर और अगिगांव शामिल 2010 में बीजेपी के पास थी. लेकिन 2015 में जदयू के उम्मीदवार विधायक बने. इसको लेकर तकरार है.
ऐसे बेनीपुर के विधायक गोपाल जी ठाकुर दरभंगा से लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. वहींं, राजगीर के सत्यदेव नारायण आर्य राज्यपाल बन चुके हैं. इन सीटों को बीजेपी के लिए छोड़ना मुश्किल नहीं है. जेडीयू और बीजेपी को लोजपा के आने से भी कई सीटों पर समझौता करना होगा.
2010 तक चला नीतीश का सिक्का
भाजपा और जदयू के बीच 2005 से लेकर 2010 तक सीटों को लेकर कभी विवाद नहीं हुआ. नीतीश कुमार ने अपने मन के अनुसार गठबंधन में हमेशा रणनीति बनाने में सफलता पाई है. बीजेपी नेताओं की नाराजगी का भी कोई असर नहीं हुआ. लेकिन इस बार मुश्किल बढ़ी हुई है.
2015 में बीजेपी अलग चुनाव लड़ी थी. नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ थे तो कई ऐसी सीटे हैं, जिस पर पहले जदयू लड़ती रही है अब वो बीजेपी के पास आ गई है. बीजेपी लड़ती रही है वो जदयू के पास चली गई है. अगर 2010 के फार्मूले पर बीजेपी में जदयू में पेंच फंसा, तो दोनों दलों को कई सीटें छोड़नी होगी. 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐसी 24 सीटों पर जीती थी, जिन पर जदयू दूसरे नंबर पर था. इस तरह जदयू की जीत वाली 25 सीटों पर भाजपा दूसरे नंबर पर थी.
जदयू और बीजेपी का रिजल्ट
फरवरी 2005 विधानसभा चुनाव में जदयू 138 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 55 सीट जीती और वोट प्रतिशत 14.55 रहा. लेकिन फिर 2005 के ही अक्टूबर के चुनाव में 139 सीटों पर लड़ी और 88 सीट जीती, वोट प्रतिशत बढ़कर 20.46% हो गया. अक्टूबर 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 141 सीट लिया और 115 पर जीत हासिल की. वोट प्रतिशत बढ़कर 22.58% हो गया. अक्टूबर 2015 में जो चुनाव हुआ, जेडीयू महागठबंधन के साथ थी. उसमें सीट घटकर 101 हो गया और 71 सीटों पर जीती. वोट 16.83% रह गया.
वहीं, भारतीय जनता पार्टी फरवरी 2005 में 103 सीटों पर चुनाव लड़ी और 37 सीट पर जीत हासिल की. वोट प्रतिशत 10.97 रहा. अक्टूबर 2005 के चुनाव में 102 सीटों पर लड़ी और 55 सीट पर जीती, वोट प्रतिशत बढ़कर 15.65% रहा. अक्टूबर 2010 के चुनाव में 102 सीटों पर लड़ी और 91 जीती. वोट प्रतिशत बढ़कर 16.49% हो गया.अक्टूबर 2015 में 157 सीटों पर चुनाव लड़ी और 53 जीती. वोट 24.42% हो गया.
'दोस्ती का नाम ही है कुर्बानी'
आंकड़ों के देखने से ही ये साफ लग रहा है कि जब-जब जदयू और बीजेपी साथ चुनाव लड़ी. दोनों को फायदा हुआ. लेकिन इस बार लोजपा के वजह से भी सीटों के बंटवारे में परेशानी आ रही है. ऐसे जदयू के वरिष्ठ नेता और विधान पार्षद गुलाम रसूल बलियावी का कहना है नीतीश कुमार पहले भी सीटों के बंटवारे में किसी तरह का विवाद नहीं होने दिए हैं.
उन्होंने कहा कि दोस्ती का नाम ही है कुर्बानी देना और कुर्बानी लेना होता है. वहीं, बीजेपी के अनुसूचित जाति और जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष अजीत चौधरी का कहना है कि एनडीए में सीटों के बंटवारे में कोई परेशानी नहीं होने वाली है. एनडीए का निर्माण लोगों के विकास के लिए है. ऐसे में बीजेपी के शीर्ष नेता कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सम्मान जरूर करेंगे.
किसको फायदा और किसको नुकसान होगा!
2005 से 2010 तक के चुनाव में जदयू का सीट लगातार बढ़ता गया है. हालांकि लालू के साथ महागठबंधन के दौरान 2015 में सीट घटकर 101 पहुंच गया. वहीं, बीजेपी जब भी जदयू के साथ रही, हमेशा कम सीट पर चुनाव लड़ी है. केवल पिछले लोकसभा चुनाव को छोड़कर, जिसमें बीजेपी- जदयू ने बराबर- बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा.
2010 से इस बार स्थिति बदली हुई है, लोजपा भी अभी एनडीए में है. जीतन राम मांझी की भी इंट्री हो रही है. इस बार जदयू के 110 से 115, बीजेपी के 100 से 105 और शेष लोजपा को लेकर चर्चा में है. नीतीश कुमार मांझी को अपने कोटे से हिस्सा दे सकते हैं. अब ऐसे में कई सीटिंग सीटों पर जदयू और बीजेपी को भी समझौता करना पड़ेगा.