पटना: प्रदेश भर में छठ की तैयारियां अंतिम चरण पर है.लोकआस्था का महापर्व छठपूजा के तीसरे दिन राजधानी के सभी गंगा घाटों और तालाबों को सार्वजनिक कर दिया गया है. श्रद्धालु भगवान भास्कर को अस्ताचलगामी अर्घ्य देने के लिए घाटों पर पहुंचने लगे हैं. वहीं, दूसरी ओर छठ माता की प्रतिमाओं का निर्माण भी अंतिम चरण में है. कारीगरों के हाथ तेजी से चल रहे हैं. प्रतिमाओं को अंतिम आकर्षक रूप देने में कारीगर जुटे हुए हैं.
प्रशासन है सजग
राजधानी पटना में छठ को लेकर जिला प्रशासन ने शानदार व्यवस्था की है. प्रशासन ने किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए जगह-जगह पर कई वाच टावर, कंट्रोल रूम, फायरबिग्रेड, एनडीआरएफ, खोया-पाया केंद्र, शौचालय, छठव्रतियों के लिए कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम बनाया गया है.
आज दिया जा रहा है पहला अर्घ्य
आज छठ पर्व पर पहला अर्घ्य दिया जाएगा. यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. इस समय गंगा जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है. माना जाता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है. संध्या समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं.
छठ पूजा तिथि और शुभ मुहूर्त
2 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय-17:35:42
अर्घ्य देने की विधि
बांस की टोकरी में सभी सामान रखें. सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.
छठ पूजा का महत्व
शाम को अर्घ्य देने के पीछे मान्यता है कि सुबह के समय अर्घ्य देने से स्वास्थ्य ठीक रहता है. दोपहर के समय अर्घ्य देने से नाम और यश होता है और वहीं शाम के समय अर्घ्य देने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसके अलावा माना जाता है कि भगवान सूर्य शाम के समय अपनी प्रत्युषा के साथ होते है. जिसका फल हर भक्त को मिलता है.
छठ पूजा की पौराणिक कथा
छठ पूजा के कई कथाएं हैं. जिनमें से मुख्य कथा के रूप में महर्षि कश्यप और राजा की कथा सुनाई जाती है. इस कथा के अनुसार एक राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी. राजा और रानी काफी दुखी थे. एक दिन महर्षि कश्यप के आशीर्वाद से राजा और रानी के घर संतान उत्पन्न हुई. दुर्भ्याग्य से राजा और रानी के यहां जो संतान पैदा हुई थी वो मृत अवस्था में थी और इस घटना से राजा और रानी बहुत दुखी हुए.इसके बाद राजा और रानी आत्महत्या करने के लिए एक घाट पर पहुंचे और जब वो आत्महत्या करने जा रहे थे तभी वहां ब्रह्मा की मानस पुत्री ने उन्हें दर्शन दिया. राजा और रानी को अपना परिचय देते हुए उस देवी ने अपना नाम छठी बताया और उनकी पूजा अर्चना करने की बात कही. राजा ने वैसा ही किया और उसको संतान का सुख प्राप्त हुआ. कार्तिक मास के शुक्ला पक्ष को यह घटना घटी थी.
हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा पर्व है छठ
बता दें कि पूरे प्रदेश में लोक आस्था का पर्व धूमधाम से मनाई जाती है. हिन्दू धर्म में इसे सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. इसमें व्रती चार दिनों को व्रत रहते हैं. वहीं, मिथिला पांचांग के अनुसार इस बार षष्ठी को अपराह्न 5:30 में सूर्यास्त होगा. उसके पहले सायंकालीन अर्घ्य दे देना है. जबकि सप्तमी को पूर्वाह्न 6:32 में सूर्योदय होगा. उसी समय प्रातःकालीन अर्घ्य देना है.