पटना: राजधानी के आईएमए हॉल में शनिवार को विश्व संवाद केंद्र ने आद्य पत्रकार देवर्षि नारद मुनि समिति कार्यक्रम का आयोजन किया. इसका मुख्य विषय गिलगित और बलतिस्तान (पीओके) की महत्ता था. इसमें पत्रकारों को सम्मानित किया गया साथ ही आज की पत्रकारिता से क्षेत्रीय भाषा के विलुप्त होने पर भी चर्चा की गई.
'गिलगित और पीओके सिर्फ नाम के पाकिस्तान में'
इस अवसर पर नेहरू मेमोरियल म्यूजियम लाइब्रेरी के निर्देशक शक्ति सिन्हा ने गिलगित—बलतिस्तान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गिलगित कभी भी पाकिस्तान का अंग नहीं रहा है. जिन्ना ने भी कहा था कि गिलगित एक स्वतंत्र राज्य था, गिलगित और पीओके सिर्फ नाम के पाकिस्तान के कब्जे में हैं. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के बारे में सबसे अधिक गलतफहमी भारत के लोगों के मन में है. कार्यक्रम में नवादा के पत्रकार रविंद्र नाथ उर्फ भैया जी, पूर्णिया के अखिलेश चंद्र और भागलपुर के शशि शेखर को सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार विश्व संवाद केंद्र द्वारा पत्रकारिता के लिए समर्पित लोगों को दिया जाता है.
लोक भाषा से दूर हो रहा मीडिया
इसमें वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर, प्रवीण बागी के अलावा संस्थान के अध्यक्ष और विधायक संजीव चौरसिया सहित अनेक पत्रकार शामिल थे. इसके साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में स्थानीय भाषा को लेकर विद्वानों ने चर्चा भी की. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी के पत्रकारों को लोकल शब्दों की जानकारी नहीं है. इसके लिए किसी बाहरी ताकत को जिम्मेवार ठहराने के बजाय हर व्यक्ति को लोक भाषा का प्रयोग करना शुरू कर देना चाहिए. इससे हम अपनी जड़ों से जुड़े रह सकते हैं. कई विद्वानों ने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे मीडिया लोक भाषाओं से दूर होता जी रही है और इसका संरक्षण जरूरी है.