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पटना में थियेटर की विरासत संभाल रही बेटियां, हर मंच पर बटोर रही तालियां

विरासत को संभालना मुश्किल नहीं होता, लेकिन दुश्वार जरूर होता है. खासकर ऐसी विरासत जो लीक से हटकर हो. दरअसल, राजधानी पटना में सांस्कृतिक गतिविधियों में एक थियेटर की विरासत को बेटियां ही संभाल (Daughters handling legacy of theater in Patna ) रही हैं. यह बहुत आसान काम नहीं है. ऐसी बेटियों के कंधे पर ही इस सांस्कृतिक विरासत को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है.

बेटियां संभाल रही पटना में थियेटर की विरासत
बेटियां संभाल रही पटना में थियेटर की विरासत
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Published : Nov 29, 2022, 9:19 AM IST

पटना: बिहार की राजधानी पटना सांस्कृतिक गतिविधियों (Cultural Activities in Patna ) का केंद्र रहा है. लेखन, साहित्य सृजन से लेकर थिएटर तक पटना की आत्मा रही है. थियेटर की दुनिया से ही बिहार से कई ऐसे कलाकार भी निकले जो बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. इनमें पुंज प्रकाश, विनीत कुमार, संजय मिश्रा से लेकर पंकज त्रिपाठी तक के नाम शामिल हैं. अहम बात यह कि पटना की नाट्य मंचन की इस दुनिया को दूसरी पीढ़ी के रूप में बेटियां भी संभाल रही हैं.

ये भी पढ़ेंः बिहार आर्ट थियेटर में अंतिम दिन नाटक 'मुद्राराक्षस' का किया गया मंचन

कालिदास रंगालय की विरासत उज्ज्वला के हाथः बिहार में सांस्कृतिक केंद्र का मक्का कहे जाने वाले कालिदास रंगालय को करीब-करीब हर वह शख्स जानता है, जो जरा सा भी सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि रखता है. इस रंगालय की स्थापना 1982 करीब हुई थी. रंगालय के संस्थापक सदस्य अनिल कुमार गांगुली वैसे लोग में से हैं जिनकी दूसरी पीढ़ी उनके विरासत को संभाल रही है. दरअसल अनिल कुमार गांगुली की बेटी उज्जवला गांगुली पटना रंगमंच की दुनिया की उन बड़ी अभिनेत्रियों की कतार में शुमार हैं जो अपने अद्भुत अभिनय से समा बांध देती हैं.

पांच साल की उम्र में थियेटर से जुड़ीः उज्ज्वाला अभी एक जिम्मेदार मां की भी भूमिका निभाती हैं. वहीं दूसरी तरफ थिएटर के प्रति उनका प्रेम खत्म भी नहीं होता है. उज्ज्वला बताती हैं कि मुझे स्पष्ट रूप से याद नहीं, लेकिन मेरे पेरेंट्स बताते हैं कि जब मैं 5 या 6 साल की थी तब पहली बार थिएटर से मेरा जुड़ाव हुआ था. एक बार शुरुआत हुई तो फिर लगातार थिएटर में काम कर रही हूं.

उज्ज्वला के लिए थियेटर मंदिर के समानः उज्ज्वला बताती हैं कि उनके पिता जी का यह विचार था कि पहले पढ़ाई पूरी करो. उसके बाद जॉब करो, फिर थिएटर के बारे में सोचो. क्योंकि इसमें पैसे नहीं हैं और जब पैसे नहीं है तो परिवार को नहीं पाला जा सकता. इतनी पढ़ाई के बाद अगर फुल टाइमर थिएटर आर्टिस्ट बनोगी तो कोई फायदा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि थिएटर के प्रति एक जुनून है. पहले दादाजी, फिर पिताजी और अब मैं. उज्ज्वाला कहती हैं कि थिएटर उनके लिए मंदिर के समान है, जहां एक दिन भी पूजा न करूं तो लगता है कुछ छूट रहा है.

चार साल की उम्र में पहली बार किया थियेटरः महात्मा गांधी के नाम से मशहूर राजधानी के फेमस थिएटर आर्टिस्ट सुरेश कुमार हज्जू की बेटी स्वधा हज्जु भी वैसी लड़कियों में से हैं जो विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. स्वधा के पिता सुरेश कुमार हज्जु की सबसे बड़ी पहचान महात्मा गांधी की वेशभूषा है. स्वधा बताती हैं कि चार या पांच साल की थी, तब पहली बार इससे जुड़ी थी. कई वरिष्ठ लोगों के साथ काम किया. उस वक्त से ही थियेटर से मेरा जुड़ाव है. वह बताती हैं कि उनके पिताजी भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित नाटक विदेशिया का प्ले करते थे. वह बटोही का करैक्टर करते थे. जब भी वह रिहर्सल के बाद घर आते थे, मुझे कंधे पर बैठाकर सारे डायलॉग्स को याद करते थे. बस उसी वक्त से थिएटर से लगाव हो गया. स्वधा बताती हैं कि थिएटर उनके लिए जुनून है.

थिएटर पिता के जैसा हैःअपने विद्रोही नाटकों के लिए फेमस अजय कुमार की बेटी आरती भी उन कलाकारों में शामिल हैं जो अपनी परंपरा को दूसरी पीढ़ी तक बखूबी ले जा रही है. आरती बताती हैं कि मेरे जीवन में थिएटर बहुत मायने रखता है. घर में थिएटर का माहौल था. पापा थिएटर करते थे. पटना के बहुत सारे रंगकर्मी मेरे पैतृक गांव में नाटक करने जाते थे. मेरे ही घर पर रहते थे. उनको देख और सुनकर लगाव हो गया. हालांकि, आरती यह भी बताती हैं कि जब पिताजी थे, तब तो किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन अब जब पिताजी नहीं है तो दिक्कत है. वह यह भी कहती है कि हर चीज से लड़ते झगड़ते आज बागी बन गई हूं. आरती सीधे कहती हैं कि थिएटर मेरे लिए उनके पिता जैसा है.

आरती के हिस्से में है कई उपलब्धियांः पटना में लड़कियों ने न केवल अपनी अलग पहचान बनाई है, बल्कि उन्होंने कई अवार्ड भी हासिल किए हैं. आरती ने 'हम कहां जा रहे हैं', 'कंपनी उस्ताद', 'पागलखाना', 'ललकी किरिनिया', 'बड़ा नाटकीय कौन', 'अमली', 'जनता पागल हो गई है', 'विरोध' और 'चरणदास चोर' जैसे नाटकों में अपना अभिनय किया. वहीं दूसरी तरफ 2019-20 में आरती का सिलेक्शन मध्य प्रदेश नाटक विद्यालय में भी हुआ. आरती को 2017-18 में केन्द्र सरकार की तरफ से सीसीआरटी यानी कल्चरल टैलेंट सर्च स्कॉलरशिप के द्वारा स्कॉलरशिप भी प्रदान किया गया था.

कई पुरस्कार मिले चुके हैं उज्ज्वला और स्वधा कोः 150 से भी ज्यादा प्ले में अपनी अदाकारी को बखूबी दिखा चुकी उज्जवला गांगुली वैसे कलाकार में से हैं, जिन्होंने अपनी कला के दम पर अवार्ड भी हासिल किए हैं. 2016-17 में उज्ज्वला को बिहार कला पुरस्कार से नवाजा गया था. उसके पहले 2011 नई दिल्ली में फोक डांस के लिए यंग आर्टिस्ट का भी खिताब दिया जा चुका है. वहीं विदेशिया, बाबू जी, खूबसूरत बला, हैमलेट, बकरी, फॉर्मूला, गदल, गगन घटा घहरानी, सूरजमुखी और हेमलेट, हयबदन, चीयर्स, कफन, अंधायुग, अंधेर नगरी, पालकी पालना और बोलता गधा में अपनी बखूबी नाट्य प्रस्तुति दे चुकी स्वधा भी सीसीआरटी स्कॉलरशिप पा चुकी है. स्वधा को यह स्कॉलरशिप 2016-17 में प्राप्त हुआ था.

"जब मैं 5 या 6 साल की थी तब पहली बार थिएटर से मेरा जुड़ाव हुआ था. एक बार शुरुआत हुई तो फिर लगातार थिएटर में काम कर रही हूं. थिएटर के प्रति एक जुनून है. पहले दादाजी, फिर पिताजी और अब मैं. थिएटर मेरे लिए मंदिर के समान है, जहां एक दिन भी पूजा न करूं तो लगता है कुछ छूट रहा है" -उज्ज्वला गांगुली, रंग कर्मी

पहले से बहुत आया है अंतरः स्वधा के पिता और बिहार के वरिष्ठ नाट्य कलाकार सुरेश कुमार हज्जु कहते हैं, 1979-80 के दौर में जब मैं इस से जुड़ा था, तब का माहौल एकदम अलग था. तब थिएटर करने वाले गिने-चुने लोग थे. सुरेश बताते हैं कि जब उस वक्त हम लोग थिएटर करते थे तो डोनेशन मांगते थे. सड़क पर निकल कर पांच - 10 रुपये एकत्र करते थे. उसके अनुसार नाटक तैयार किया जाता था. बहुत ही अच्छा काम होता था. उस वक्त लोग बहुत बढ़िया से थिएटर देखते थे. तैयारी भी बेहतर होती थी. क्योंकि क्रिएटिव वर्क होता था.

बेटियों से है उम्मीदः सुरेज कुमार हज्जु बताते हैं कि आज प्रोजेक्ट ज्यादा आ गए हैं. प्रोजेक्ट की तरफ लोग ज्यादा जा रहे हैं. उनके अनुसार यह हो रहा है कि पैसा मिलेगा तो काम करेंगे, नहीं तो नहीं करेंगे. बेटियों के थिएटर करने को लेकर हज्जू बताते हैं, मेरी बेटी चार साल से ही इस लाइन में है. इससे वह धीरे-धीरे डेवेलप कर रही है. आज एक अभिनेत्री के रूप में वह स्थापित हो चुकी है. वह विरासत को लेकर बढ़ेगी, इतनी तो उम्मीद है.

"मेरी बेटी चार साल से ही इस लाइन में है. इससे वह धीरे-धीरे डेवेलप कर रही है. आज एक अभिनेत्री के रूप में वह स्थापित हो चुकी है. वह विरासत को लेकर बढ़ेगी, इतनी तो उम्मीद है" - सुरेश कुमार हज्जु, वरिष्ठ रंगकर्मी

पटना: बिहार की राजधानी पटना सांस्कृतिक गतिविधियों (Cultural Activities in Patna ) का केंद्र रहा है. लेखन, साहित्य सृजन से लेकर थिएटर तक पटना की आत्मा रही है. थियेटर की दुनिया से ही बिहार से कई ऐसे कलाकार भी निकले जो बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. इनमें पुंज प्रकाश, विनीत कुमार, संजय मिश्रा से लेकर पंकज त्रिपाठी तक के नाम शामिल हैं. अहम बात यह कि पटना की नाट्य मंचन की इस दुनिया को दूसरी पीढ़ी के रूप में बेटियां भी संभाल रही हैं.

ये भी पढ़ेंः बिहार आर्ट थियेटर में अंतिम दिन नाटक 'मुद्राराक्षस' का किया गया मंचन

कालिदास रंगालय की विरासत उज्ज्वला के हाथः बिहार में सांस्कृतिक केंद्र का मक्का कहे जाने वाले कालिदास रंगालय को करीब-करीब हर वह शख्स जानता है, जो जरा सा भी सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि रखता है. इस रंगालय की स्थापना 1982 करीब हुई थी. रंगालय के संस्थापक सदस्य अनिल कुमार गांगुली वैसे लोग में से हैं जिनकी दूसरी पीढ़ी उनके विरासत को संभाल रही है. दरअसल अनिल कुमार गांगुली की बेटी उज्जवला गांगुली पटना रंगमंच की दुनिया की उन बड़ी अभिनेत्रियों की कतार में शुमार हैं जो अपने अद्भुत अभिनय से समा बांध देती हैं.

पांच साल की उम्र में थियेटर से जुड़ीः उज्ज्वाला अभी एक जिम्मेदार मां की भी भूमिका निभाती हैं. वहीं दूसरी तरफ थिएटर के प्रति उनका प्रेम खत्म भी नहीं होता है. उज्ज्वला बताती हैं कि मुझे स्पष्ट रूप से याद नहीं, लेकिन मेरे पेरेंट्स बताते हैं कि जब मैं 5 या 6 साल की थी तब पहली बार थिएटर से मेरा जुड़ाव हुआ था. एक बार शुरुआत हुई तो फिर लगातार थिएटर में काम कर रही हूं.

उज्ज्वला के लिए थियेटर मंदिर के समानः उज्ज्वला बताती हैं कि उनके पिता जी का यह विचार था कि पहले पढ़ाई पूरी करो. उसके बाद जॉब करो, फिर थिएटर के बारे में सोचो. क्योंकि इसमें पैसे नहीं हैं और जब पैसे नहीं है तो परिवार को नहीं पाला जा सकता. इतनी पढ़ाई के बाद अगर फुल टाइमर थिएटर आर्टिस्ट बनोगी तो कोई फायदा नहीं होगा. उन्होंने कहा कि थिएटर के प्रति एक जुनून है. पहले दादाजी, फिर पिताजी और अब मैं. उज्ज्वाला कहती हैं कि थिएटर उनके लिए मंदिर के समान है, जहां एक दिन भी पूजा न करूं तो लगता है कुछ छूट रहा है.

चार साल की उम्र में पहली बार किया थियेटरः महात्मा गांधी के नाम से मशहूर राजधानी के फेमस थिएटर आर्टिस्ट सुरेश कुमार हज्जू की बेटी स्वधा हज्जु भी वैसी लड़कियों में से हैं जो विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. स्वधा के पिता सुरेश कुमार हज्जु की सबसे बड़ी पहचान महात्मा गांधी की वेशभूषा है. स्वधा बताती हैं कि चार या पांच साल की थी, तब पहली बार इससे जुड़ी थी. कई वरिष्ठ लोगों के साथ काम किया. उस वक्त से ही थियेटर से मेरा जुड़ाव है. वह बताती हैं कि उनके पिताजी भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित नाटक विदेशिया का प्ले करते थे. वह बटोही का करैक्टर करते थे. जब भी वह रिहर्सल के बाद घर आते थे, मुझे कंधे पर बैठाकर सारे डायलॉग्स को याद करते थे. बस उसी वक्त से थिएटर से लगाव हो गया. स्वधा बताती हैं कि थिएटर उनके लिए जुनून है.

थिएटर पिता के जैसा हैःअपने विद्रोही नाटकों के लिए फेमस अजय कुमार की बेटी आरती भी उन कलाकारों में शामिल हैं जो अपनी परंपरा को दूसरी पीढ़ी तक बखूबी ले जा रही है. आरती बताती हैं कि मेरे जीवन में थिएटर बहुत मायने रखता है. घर में थिएटर का माहौल था. पापा थिएटर करते थे. पटना के बहुत सारे रंगकर्मी मेरे पैतृक गांव में नाटक करने जाते थे. मेरे ही घर पर रहते थे. उनको देख और सुनकर लगाव हो गया. हालांकि, आरती यह भी बताती हैं कि जब पिताजी थे, तब तो किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन अब जब पिताजी नहीं है तो दिक्कत है. वह यह भी कहती है कि हर चीज से लड़ते झगड़ते आज बागी बन गई हूं. आरती सीधे कहती हैं कि थिएटर मेरे लिए उनके पिता जैसा है.

आरती के हिस्से में है कई उपलब्धियांः पटना में लड़कियों ने न केवल अपनी अलग पहचान बनाई है, बल्कि उन्होंने कई अवार्ड भी हासिल किए हैं. आरती ने 'हम कहां जा रहे हैं', 'कंपनी उस्ताद', 'पागलखाना', 'ललकी किरिनिया', 'बड़ा नाटकीय कौन', 'अमली', 'जनता पागल हो गई है', 'विरोध' और 'चरणदास चोर' जैसे नाटकों में अपना अभिनय किया. वहीं दूसरी तरफ 2019-20 में आरती का सिलेक्शन मध्य प्रदेश नाटक विद्यालय में भी हुआ. आरती को 2017-18 में केन्द्र सरकार की तरफ से सीसीआरटी यानी कल्चरल टैलेंट सर्च स्कॉलरशिप के द्वारा स्कॉलरशिप भी प्रदान किया गया था.

कई पुरस्कार मिले चुके हैं उज्ज्वला और स्वधा कोः 150 से भी ज्यादा प्ले में अपनी अदाकारी को बखूबी दिखा चुकी उज्जवला गांगुली वैसे कलाकार में से हैं, जिन्होंने अपनी कला के दम पर अवार्ड भी हासिल किए हैं. 2016-17 में उज्ज्वला को बिहार कला पुरस्कार से नवाजा गया था. उसके पहले 2011 नई दिल्ली में फोक डांस के लिए यंग आर्टिस्ट का भी खिताब दिया जा चुका है. वहीं विदेशिया, बाबू जी, खूबसूरत बला, हैमलेट, बकरी, फॉर्मूला, गदल, गगन घटा घहरानी, सूरजमुखी और हेमलेट, हयबदन, चीयर्स, कफन, अंधायुग, अंधेर नगरी, पालकी पालना और बोलता गधा में अपनी बखूबी नाट्य प्रस्तुति दे चुकी स्वधा भी सीसीआरटी स्कॉलरशिप पा चुकी है. स्वधा को यह स्कॉलरशिप 2016-17 में प्राप्त हुआ था.

"जब मैं 5 या 6 साल की थी तब पहली बार थिएटर से मेरा जुड़ाव हुआ था. एक बार शुरुआत हुई तो फिर लगातार थिएटर में काम कर रही हूं. थिएटर के प्रति एक जुनून है. पहले दादाजी, फिर पिताजी और अब मैं. थिएटर मेरे लिए मंदिर के समान है, जहां एक दिन भी पूजा न करूं तो लगता है कुछ छूट रहा है" -उज्ज्वला गांगुली, रंग कर्मी

पहले से बहुत आया है अंतरः स्वधा के पिता और बिहार के वरिष्ठ नाट्य कलाकार सुरेश कुमार हज्जु कहते हैं, 1979-80 के दौर में जब मैं इस से जुड़ा था, तब का माहौल एकदम अलग था. तब थिएटर करने वाले गिने-चुने लोग थे. सुरेश बताते हैं कि जब उस वक्त हम लोग थिएटर करते थे तो डोनेशन मांगते थे. सड़क पर निकल कर पांच - 10 रुपये एकत्र करते थे. उसके अनुसार नाटक तैयार किया जाता था. बहुत ही अच्छा काम होता था. उस वक्त लोग बहुत बढ़िया से थिएटर देखते थे. तैयारी भी बेहतर होती थी. क्योंकि क्रिएटिव वर्क होता था.

बेटियों से है उम्मीदः सुरेज कुमार हज्जु बताते हैं कि आज प्रोजेक्ट ज्यादा आ गए हैं. प्रोजेक्ट की तरफ लोग ज्यादा जा रहे हैं. उनके अनुसार यह हो रहा है कि पैसा मिलेगा तो काम करेंगे, नहीं तो नहीं करेंगे. बेटियों के थिएटर करने को लेकर हज्जू बताते हैं, मेरी बेटी चार साल से ही इस लाइन में है. इससे वह धीरे-धीरे डेवेलप कर रही है. आज एक अभिनेत्री के रूप में वह स्थापित हो चुकी है. वह विरासत को लेकर बढ़ेगी, इतनी तो उम्मीद है.

"मेरी बेटी चार साल से ही इस लाइन में है. इससे वह धीरे-धीरे डेवेलप कर रही है. आज एक अभिनेत्री के रूप में वह स्थापित हो चुकी है. वह विरासत को लेकर बढ़ेगी, इतनी तो उम्मीद है" - सुरेश कुमार हज्जु, वरिष्ठ रंगकर्मी

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