पटना(बाढ़): शारदीय नवरात्रि के पहले दिन बाढ़ के अलखनाख मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जारी है. अहले सुबह से ही भक्तों की भीड़ गंगा नदी उमड़ने लगी. दुर्गा सप्तशती के पाठ और कलश स्थापना के लिए भक्त स्नान के बाद साथ गंगा जल को पात्रों में भरकर अपने साथ घर ले गए. गंगा स्नान के बाद लोगों ने मंदिरों में पूजा-अर्चना भी किया.
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना
अलखनाख मंदिर के पुजारी सोनू पांडे ने बताया कि नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा के ही नौ अलग अलग रूपों की पूजा अर्चना की जाती है. हर दिन एक अलग स्वरूप देवी मां को समर्पित होता है. जिनमें सबसे पहले आराधना होती है शैलपुत्री माता की. सोनू पांडे ने बताया किअगर विधि विधान से पूजा अर्चना कर देवी को प्रसन्न कर दिया जाए तो मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है.
मां शैलपुत्री की पौराणिक कथा
नवरात्रि के पहले दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना की जाती है. धार्मिक जानकारों की माने तो मां शैलपुत्री को पर्वत राज हिमालय की बेटी कहा जाता है. मां शैलपुत्री अपने पूर्व के जन्म में देवी सती के रूप जानी जाती थी और वे भगवान भोलेनाथ की पत्नी थी.
पौराणिक कथाओं के अनुसार बार देवी सती के पिता ने भगवान शिव का अपमान करने के उद्देश्य से एक यज्ञ का आयोजन किया. जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रण दिया. लेकिन केवल अपने दामाद भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा. जिससे कुपित होकर देवी सती ने खुद को यज्ञ कुंड में छलांग लगाकर खुद को भस्म कर लिया था. देवी सती ही अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में हिमालय राज के घर में जन्म लिया और भगवान शिव से उनका विवाह हुआ. मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना से अच्छा स्वस्थ्य और समाज में मान-सम्मान बढ़ता है.